उत्तराखण्ड
शिव महापुराण के आयोजन से अनुसूचितजाति के 60 परिवारों ने किया बहिष्कार।
संवादसूत्र देहरादून/ उत्तरकाशी: मोरी ब्लॉक के बिंगसारी गांव में आयोजित शिव महापुराण के आयोजन से अनुसूचितजाति के 60 परिवारों ने बहिष्कार किया है। परंतु शिव महापुराण के आयोजन में अनुसूचित जाति के परिवारों ने किसी भी तरह का विघ्न डालने से मना किया है। अनुसूचित जाति के परिवारों ने कहा कि भिस्तेतु महाराज उनका देवता है। इसलिए देवता के इस अनुष्ठान में किसी तरह का विवाद नहीं करना चाहते हैं। इसी कारण गांव में पहुंची पुलिस को भी उन्होंने वापस भेज दिया था।
अनुसूचितजाति के परिवारों ने कहा कि शिव स्वरूप में पूजे जाने वाले भिस्तेतु महाराज उनके इष्ट देवता हैं।
15 वर्ष पहले जब शिव महापुराण हुआ था तब अनुसूचित जाति के 11 व्यक्तियों को वर्णी में बिठाया गया था। कोरोना काल में शिव मंदिर में पाठ का आयोजन हुआ तो उसमें भी अनुसूचित जाति का व्यक्ति वर्णी में बैठा था। वार्षिक पूजा में भी डेढ़ माह तक देवता की पूजा की जिम्मेदारी अनुसूचित जाति के परिवारों के पास होती है। जिसके लिए अनुसूचित जाति के परिवार किसी पंडित को पूजा के लिए नियुक्त करते हैं। साथ ही मंदिर और देवता से संबंधित सभी परंपराओं का निर्वहन करते हैं। डेढ़ माह तक पूजा करने के बदले पंडित को दक्षिणा देते हैं। अनुसूचित जाति के परिवारों ने कहा कि जब दो महीने पहले से शिव पुराण के आयोजन की तैयारियां चल रही थी। तो उन बैठकों में अनुसूचित जाति के स्याणे को भी वर्णी में बैठने को लेकर चर्चा हुई थी। किसी भी व्यक्ति ने विरोध नहीं किया। परंतु सोमवार को जब शिव महापुराण का आयोजन शुरू हुआ तो अनुसूचित जाति के व्यक्ति और उनके स्याणे को वर्णी में नहीं बैठने दिया गया। जिसके बाद अनुसूचित जाति के व्यक्तियों ने अपने खाने के तंबू को उखाड़ डाला और भोजन बनाने के लिए एकत्र की गई लकड़ियों को भी जला डाला। बिंगसारी गांव निवासी प्रदीप कुमार ने कहा कि अनुसूचित जाति के प्रत्येक परिवार ने शिव महापुराण आयोजन में पांच-पांच हजार रुपए और एक-एक मण चावल दिए हैं। जिसको अनुसूचित जाति के परिवारों ने वापस नहीं लिया है। शिव महापुराण में ढोल बजाने की परंपरा का निर्वहन अनुसूचित जाति के परिवार कर रहे हैं। कई सवर्ण परिवार और स्याणे उनके समर्थन में भी है।