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शिव सायुज्य हो गया एक अनन्य शिवभक्त।

आलेख

शिव सायुज्य हो गया एक अनन्य शिवभक्त।

【कविता भट्ट मैठाणी】

रोज सुबह ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में जिसकी मंत्रमुग्ध कर देने वाली स्वरलहरियों से हमारे दिन की शुरुआत होती, जिसे सुनकर लगता कि प्रभु से साक्षात्कार हो रहा है, वो हम सबका प्रिय मय्या (मृत्युंजय को प्यार से सब मय्या कहते थे)अचानक ही चुपचाप हम सबसे दूर चला गया, ये बात हम सबके लिए अविश्वसनीय और असहनीय थी।

मृत्युंजय

यूं तो एक दिन सबको इस नश्वर शरीर को छोड़कर, इस संसार से चले जाना है, पर कुछ लोगों का जाना यूं लगता है जैसे बहुत कुछ रीत सा गया हो। प्रिय भुला मृत्युंजय का जाना भी बहुत कुछ सूना कर गया हमारे भीतर। रोज सुबह ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में जिसकी मंत्रमुग्ध कर देने वाली स्वरलहरियों से हमारे दिन की शुरुआत होती, जिसे सुनकर लगता कि प्रभु से साक्षात्कार हो रहा है, वो हम सबका प्रिय मय्या (मृत्युंजय को प्यार से सब मय्या कहते थे)अचानक ही चुपचाप हम सबसे दूर चला गया, ये बात हम सबके लिए अविश्वसनीय और असहनीय थी। हिरेमठ परिवार पर अचानक दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा था, किंतु ये दुख सिर्फ हिरेमठ परिवार का निजी दुख न रहकर संपूर्ण केदारघाटी और हर उस व्यक्ति का दुख है जो एक बार भी मृत्युंजय से मिला होगा। क्योंकि वो सबका था और सब उसके । छोटी सी उम्र में ही एक बड़ी ज़िन्दगी जी है मृत्युंजय ने। और इस छोटी सी अवधि में जो उससे मिला, जिसने उसे सुना वो सब हमेशा के लिए मृत्युंजय के होकर रह गए।

केदारनाथ धाम के भूतपूर्व मुख्य पुजारी पूज्य श्री गुरुलिंग जी हिरेमठ व श्रीमती सुमित्रा देवी के चार पुत्रों में तीसरे पुत्र मृत्युंजय का जन्म 29 अक्टूबर 1986 को ऊखीमठ में हुआ था । बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के मृत्युंजय की शिव में बड़ी आस्था थी। ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर परिसर में बचपन गुजरा, गर्मियों की छुट्टियां पिताजी के साथ केदारनाथ , विश्वनाथ मंदिर गुप्तकाशी या मध्यमहेश्वर में गुजरती थी। प्रारंभिक शिक्षा सरस्वती शिशु मंदिर ऊखीमठ से और फिर 12वीं तक रा० इ० का० ऊखीमठ में शिक्षा ग्रहण कर के कर्नाटक के गुलबर्गा की HKES Institute Of Pharmacy से बी० फार्मा० व एम० फार्मा० करने के पश्चात तीन वर्ष तक रुड़की की फार्मा कंपनी में और एक वर्ष हरिद्वार में नौकरी की।किंतु महादेव की भक्ति में लीन मृत्युंजय का मन तो केवल महादेव में ही रमा था, कहीं और जगह कैसे लगता । घर आकर बड़े भाई केदारनाथ के मुख्य पुजारी श्री शंकर लिंग हिरेमठ से कहा कि मुझे नौकरी नहीं करनी है, महादेव की सेवा में रहना है। अब महादेव के परम भक्त की बात भला कौन टाल सकता था, भाई ने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी, और मृत्युंजय ने आजीवन ब्रह्मचर्य का संकल्प लेकर महादेव की सेवा को ही अपने जीवन का परम उद्देश्य बना दिया।

रुड़की में नौकरी के दौरान ही मृत्युंजय ने शिव स्तोत्र” जय शंभुनाथ दिगंबरम्, करुणाकरं जगदीश्वरं” की रचना की।और जिसने भी मृत्युंजय का यह स्तोत्र सुना, वो भावविभोर हो गया। मृत्युंजय की मंत्रमुग्ध कर देने वाली आवाज का ही जादू था कि गांव की वे महिलायें, जिन्हें संस्कृत का कोई ज्ञान न था, वो भी मृत्युंजय के साथ इस स्तोत्र को गुनगुनाती थीं।
छोटी सी उम्र में ही मृत्युंजय ने कई पीठों पर बैठकर प्रवचन भी दिये थे। उनके प्रवचन, भजन, स्तुतियां सुनते हुए यूं लगता ,जैसे साक्षात् मां शारदे उनकी जिह्वा में विराजमान हों। निर्विकार और सबके प्रति समभाव रखने वाले मृत्युंजय के मुखमंडल पर एक दैवीय तेज था‌।उनकी ओजस्वी वाणी और मधुर व्यवहार के कारण वे सबको प्रिय थे।

मृत्युंजय द्वारा गाये गये शिव स्तोत्र, शिव स्तुति,भजन आदि सुनकर सब मंत्रमुग्ध हो जाते थे,और जिसने भी इन्हें सुना है वे सब इन्हें गुनगुनाते हुए मृत्युंजय को याद करते है।
गौमाता को सड़कों पर लाचार और बेबस हालत में देखकर मृत्युंजय का मन अत्यंत द्रवित हो जाता था। गौमाता के लिए एक गौशाला बनवाने का विचार मन में आया ,जिसके लिए भूमि भी देख चुके थे।
मृत्युंजय को बचपन से ही संस्कृत के श्लोक, स्तुतियां, स्तोत्र कंठस्थ थे। मां शारदे और महादेव की ही कृपा थी कि कठिन से कठिन श्लोक, स्तोत्र भी मृत्युंजय को सरल लगते और पल भर में याद हो जाते। संस्कृत भाषा में उनकी रुचि का ही प्रतिफल था कि विज्ञान विषय का छात्र होने के बावजूद संस्कृत महाविद्यालय शोणितपुर से शास्त्री व वृंदावन से आचार्य की शिक्षा भी ग्रहण की। मृत्युंजय की हार्दिक इच्छा थी कि ऊखीमठ में एक संस्कृत पाठशाला खोलकर क्षेत्र के बच्चों व युवाओं को संस्कृत, वेदपाठ, अध्यात्म की शिक्षा दी जाय, उन्हें इसके लिए कहीं बाहर न जाना पड़े।
नंगे पांव केदारनाथ व मध्यमहेश्वर की यात्रा करने वाले मृत्युंजय इस छोटी सी उम्र में ही नौ बार द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा , बावन शक्तिपीठों और हिमालय क्षेत्र के मनणी, पांडव सेरा आदि अनेक स्थलों की यात्रा कर चुके थे।

बाबा केदार, महादेव में अनन्य आस्था रखने वाले मृत्युंजय छठवीं कक्षा से प्रत्येक वर्ष लगातार केदारनाथ व मध्यमहेश्वर में कपाट खुलने व बंद होने पर उपस्थित रहे, कौन जानता था कि अनवरत चलने वाली ये यात्रा अब यहीं थम जायेगी और वर्ष 2024 में बाबा के कपाट खुलने से पहले ही महादेव अपने इस अनन्य भक्त को अपने पास बुला देंगे, और शिव का ये उपासक शिवैक्य हो जायेगा।

19 अप्रैल 2024 की वो काली रात सिर्फ हिरेमठ परिवार को ही नहीं बल्कि संपूर्ण केदारघाटी को एक कभी न भूलने वाला दुख देकर हम सबके प्रिय मय्या को हमसे छीन ले गयी।
आज मृत्युंजय भले ही भौतिक रूप से हमारे साथ नहीं है। किंतु उनकी स्मृतियां सदैव हम सबके साथ रहेंगी। मृत्युंजय की मधुर स्वर लहरियां बाबा केदार के धाम में , केदारघाटी में सदैव गूंजती रहेंगी और उनकी स्मृतियों को चिरकाल तक जीवंत रखेंगी। महादेव के इस अनन्य भक्त को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि🙏🙏🙏

कविता मैठाणी भट्ट, उखीमठ(रुद्रप्रयाग)

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