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देहरादून: प्रकृति की गोद में बसा एक स्वर्गिक स्वप्न।

आलेख

देहरादून: प्रकृति की गोद में बसा एक स्वर्गिक स्वप्न।

✍️✍️राघवेंद्र चतुर्वेदी

देहरादून:यह नाम मात्र उच्चारित होते ही मन-मस्तिष्क में हिमालय की शीतल छाँव, सदाबहार वनों की सिहरन, कलकल बहती धाराओं की मधुर गूंज और हवाओं में घुली अद्भुत स्फूर्ति का आभास होने लगता है। यह नगर मात्र एक भूगोलिक संरचना नहीं, बल्कि प्रकृति के साज-सज्जा की वह अनुपम भेंट है, जो हर आगंतुक को अपने मोहपाश में बाँध लेती है।

हिमालय की गोद में बसे इस नगर की सुंदरता शब्दों के दायरे से परे है। जब सूर्य की प्रथम किरणें इसकी पर्वतमालाओं को स्वर्णाभा से आलोकित करती हैं, तो समूचा परिदृश्य एक दिव्य आभा से दमक उठता है। सदाबहार चीड़ और देवदार के वृक्षों की सघन छाँव में लिपटा यह नगर मानो किसी कल्पनातीत चित्रकार की कूची से रचित एक स्वप्नलोक हो।

देहरादून केवल एक शहर नहीं, बल्कि कुदरत की नयनाभिराम रचनाओं का एक अनमोल संग्रह है। सहस्त्रधारा के चमत्कारी सल्फर जलकुंड, टपकेश्वर महादेव की पवित्र गुफाएँ, मालदेवता की सुरम्यता और गूंजते झरनों की लयकारी, इस नगर को धरती पर एक जीवंत स्वर्ग बना देती हैं। यहाँ की हरियाली में बहती ठंडी बयार तन-मन को ऐसी शीतलता प्रदान करती है, मानो प्रकृति स्वयं अपने करकमलों से आत्मा को सांत्वना दे रही हो।

मसूरी की पर्वत मालाओं की गोद में खेलता यह नगर रात के समय जब जगमगाती रोशनी से आलोकित होता है, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे तारों ने स्वयं धरती पर उतरकर अपना बसेरा बना लिया हो। वसंत ऋतु में जब बुरांश के लाल फूल पहाड़ियों पर खिलते हैं, तो सम्पूर्ण नगर एक स्वर्णिम स्वप्नलोक में परिवर्तित हो जाता है।

देहरादून केवल प्राकृतिक सौंदर्य का धनी ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत का भी संगम स्थल है। यह नगर पौराणिक काल से लेकर आधुनिक भारत के गौरवमयी इतिहास का साक्षी रहा है। रामायण काल में यही वह भूमि थी, जहाँ गुरु द्रोणाचार्य ने अपनी शिक्षा का केंद्र स्थापित किया था, और कालांतर में यह विद्या और ज्ञान की स्थली बन गई।

भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) और लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी (LBSNAA) की भव्यता, फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (FRI) की शाही वास्तुकला, और दून स्कूल जैसी प्रतिष्ठित संस्थाएँ इसे बौद्धिक चेतना की राजधानी का स्वरूप प्रदान करती हैं। पलटन बाजार और राजपुर रोड की गलियों में समाई आधुनिकता और पारंपरिकता की अनोखी जुगलबंदी इसे और भी मनमोहक बना देती है।

यहाँ की आबोहवा में केवल शीतलता ही नहीं, बल्कि पहाड़ी संस्कृति की भीनी-भीनी सुगंध भी घुली हुई है। उत्तराखंडी व्यंजनों की सोंधी खुशबू, खासकर गहत की दाल, झंगोरे की खीर और आलू के गुटके, हर भोजन प्रेमी के हृदय को संतृप्त कर देते हैं। बाल मिठाई और सिंगोरी का स्वाद जब मुख में घुलता है, तो यह नगर और भी प्रिय लगने लगता है।

देहरादून केवल एक जगह नहीं, बल्कि एक अनुभूति है, जो शांति की तलाश करने वालों को आत्मीय स्पर्श देती है, रोमांच प्रेमियों को नये आयाम प्रदान करती है, और हर आगंतुक को प्रकृति के वैभव का साक्षात्कार कराती है। यहाँ की सड़कों पर चलते हुए ऐसा लगता है जैसे हर मोड़ पर एक नयी कविता जन्म ले रही हो, हर पर्वत एक नई कहानी कह रहा हो, और हर झरना अपने संगीत से मन की सभी थकान को हर लेने को तत्पर हो।

देहरादून को केवल देखा नहीं जाता, इसे महसूस किया जाता है—हृदय की गहराइयों में, आत्मा की शांति में, और प्रकृति के अद्वितीय आलिंगन में। जो एक बार इस नगर की गोद में आ जाता है, वह इसे अपने भीतर संजो लेने को विवश हो जाता है, बार-बार लौट आने की तीव्र इच्छा लिए हुए।

राघवेन्द्र चतुर्वेदी (बनारस)

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