आलेख
धरती पर देवदूत।
(डॉक्टर्स डे 1जुलाई)
“नीरज कृष्ण“
“न आत्मार्थम न अपि कामार्थम अतभत दयां प्रति / वतर्ते चिकित्सायां स सर्वम इति वतर्ते॥
अर्थात् “धन और किसी खास कामना को लेकर नहीं, बल्कि मरीज की सेवा के लिए, दया भाव रखकर कार्य करता है, वो सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक होता है।” आचार्य चरक की सदियों पहले कही गई यह बात कोविड महामारी के दौर में डॉक्टरों ओर कोरोना योद्धाओं के जीवन के संदर्भ में बेहद सटीक दिख रही है।
एक डॉक्टर और वैद्य भगवान का रूप होता है, वैसे तो हमारे यहां ये सदियों से माना जाता रहा है। लेकिन भीषण कोरोना महामारी में दुनियाभर के लोंगो ने इसे एहसास किया है। करीब तीन वर्षों से देश और दुनिया भर के डॉक्टर एक-एक जान को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे है। अपनी जान को जोखिम में डाल रहे हैं। उनके साथ-साथ उनके परिवार भी इस जोखिम को उठा रहे हैं। इस अदृश्य वायरस से मानवता की रक्षा करते करते देश- दुनिया के सैकड़ों डॉक्टरों ने कोरोना वायरस से लोंगो को बचाते बचाते अपने प्राण त्यागे हैं। वीर जवानों की तरह कर रहे मानवता की रक्षा इनका समर्पण भी देश की रक्षा में शहीद हुए जवानों से कम नहीं है।
चेचक, टीबी, स्वाइन फ्लू ऐसे कई महामारी उदाहरण है। ये वो दौर था जब स्वास्थ्य संसाधनों के मामले में आज के मुकाबले काफी अभाव था। किसी भी आपदा से जूझने या फिर व्यवस्था के सुचारू संचालन में आधारभूत ढांचे की अहम भूमिका होती है। जब कोविड अन्य देशों को प्रभावित कर रहा था, तब भारत ने भी अपनी ओर से सघन निगरानी शुरू कर दी थी। लेकिन इसका फैलाव होने लगा तो देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। कोविड एक ऐसी महामारी के रूप में सामने आई, जिसका न कोई इलाज था और ना ही दवा। ऐसे में विविधता से भरे और आबादी के लिहाज से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश भारत के लिए इसका मुकाबला करना किसी जंग से कम नहीं था।
कोरोना की पहली लहर के दौरान जब देश में पीपीई किट समेत अन्य संसाधनों का अभाव था तब भी हमारे डॉक्टर पीछे नहीं हटे वो लगातार मानवता की रक्षा में जुटे रहे। जैसे सीमा पर सैन्य संसाधनों के अभाव में भी सेना के जवान दुश्मनों से लोहा लेते रहे हैं। जब जब महामारी का संकट आया, डॉक्टरों ने जीवन दांव पर लगाया बीमारी नई ज़रूर है लेकिन मानवता की रक्षा में जुटे दुनिया भर के डॉक्टरों का ये इरादा नया नहीं है। दुनिया भर में जब जब इस तरह की महामारी आई है। डॉक्टरों ने अपने जीवन को दांव पर लगा मानवता की रक्षा की।
1 जुलाई को इसलिए मनाया जाता है राष्ट्रीय डॉक्टर्स डे डॉक्टरों के इसी त्याग और समर्पण भाव को लेकर भारत में हर साल 1 जुलाई को राष्ट्रीय डॉक्टर्स डे मनाया जाता है। इस दिन को महान स्वतंत्रता सेनानी व भारतरत्न डॉ.विधान चंद्र राय को भी याद किया जाता है। विधान चंद्र राय एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ एक अच्छे डॉक्टर भी थे। आजादी के बाद उन्होंने अपने जीवन को बतौर डॉक्टर मानव सेवा के लिए समर्पित कर दिया था।
फरवरी 1961 को उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रल’ से सम्मानित किया गया। 1967 में दिल्ली में उनके सम्मान में डर. बी.सी. रॉय स्मारक पुस्तकालय की स्थापना हुई और 1976 में उनकी स्मृति मेकेन्द्र सरकार द्वारा ड. बी.सी. रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार की स्थापना की गई। संयोगवश डा. रॉय का जन्म और मृत्यु एक जुलाई को ही हुई थी। उनका जन्म 1 जुलाई 1882 को पटना में हुआ था और मृत्यु 1 जुलाई 1962 को इृदयाघात से कोलकाता में हुईं थी।
अन्य देशों में डॉक्टर्स डे अलग-अलग दिन आयोजित किया जाता है। डॉक्टर्स डे की शुरुआत दुनिया में सबसे पहले अमेरिका के जॉर्जिया से हुई थी। 30 मार्च, 1933 को फिजिशियन यानी डॉक्टर्स के सम्मान के लिये यह दिन तय करने का विचार यूडोरा ब्राउन एलमंड ने दिया था। इसके बाद 30 मार्च, 1958 को अमेरिका के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव्स ने यूडोरा ब्राउन एलमंड के विचार को स्वीकार कर लिया। अमेरिकी राज्य जॉर्जिया में पहली बार मार्च 1933 में डॉक्टर्स डे मनाया गया था। यह दिन चिकित्सकों को कार्ड भेजकर तथा मृत डॉक्टरों की कब्रों पर पूल चढ़ाकर मनाया जाता था। अमेरिका में यह दिवस 30 मार्च को ईरान में 23 अगस्त को तथा क्यूबा में 3 दिसम्बर को मनाया जाता है
चूंकि चिकित्सकों को पृथ्वी पर भगवान का रूप माना गया है, इसलिए समाज की भी उनसे यही अपेक्षा रहती हैं कि वे अपना कर्तव्य ईमानदारी और पूरी निष्ठा के साथ निभाएं। हालांकि निजी अस्पतालों के कुछ चिकित्सकों पर मरीजों और उनके परिजनों के साथ लापरवाही और लूट के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। दरअसल निजी चिकित्सा तंत्र है लेकिन फिर भी इस दीगर सच को भी नकारा नहीं जा सकता कि कोरोना हो या कैंसर, हृदय रोग, एड्स, मधुमेह इत्यादि कोई भी बीमारी, छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी बीमारियों से चिकित्सक ही करोड़ों लोगों को उल्नारते हैं। चूंकि चिकित्सक प्रायः मरीज को मौत के मुंह से भी बचाकर ले आते हैं, इसीलिए चिकित्सकों को भगवान का रूप माना जाता रहा है। चिकित्सा केवल पैसा कमाने के लिए एक पेशा मात्र नहीं है बल्कि समाज के कल्याण और उत्थान का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। इसीलिए चिकित्सक को सदैव सम्मान की नजर से देखने वाले समाज के प्रति उनसे भी समर्पण की उम्मीद की जाती है।
वर्तमान तथ्य यही है कि हर काल और दुनिया के हर हिस्से में, हर वर्ग में अच्छे और बुरे हर तरह के लोग होते हैं। डॉक्टरों का वर्ग भी इससे अछूता नहीं है, फिर भी दो साल से जारी कोरोना महामारी की अवधि में हमने देखा है कि डॉक्टरों ने अपने साथ ये विशेषण – कि ‘वे धरती का भगवान होते हैं’- को चरितार्थ किया है। भगवान एक बार जीवन देकर धरती पर भेजता हे, डॉक्टर उसी मानव को बार-बार देता है जीवन। इस महामारी के दौरान जब मरीज को उसके निकटतम रिश्तेदार मित्र व पड़ोसी छूते तक नहीं थे, डॉक्टरों ने उस वक्त उनकी रात-दिन सेवा की है और उन्हें भला चंगा किया है।
किसी भी आपदा से जूझने या फिर व्यवस्था के सुचारू संचालन में आधारभूत ढांचे की अहम भूमिका होती है। जब कोविड अन्य देशों को प्रभावित कर रहा था, तब भारत ने भी अपनी ओर से सघन निगरानी शुरू कर दी थी। लेकिन इसका फैलाव होने लगा तो देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी। कोविड एक ऐसी महामारी के रूप में सामने आई, जिसका न कोई इलाज था और ना ही दवा। ऐसे में विविधता से भरे और आबादी के लिहाज से दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश भारत के लिए इसका मुकाबला करना किसी जंग से कम नहीं था।
स्विटजरलैण्ड के प्रख्यात मनोवैज्ञानिक तथा मनोचिकित्सक कार्ल गुस्ताव जंग ने एक बार कहा था कि दवाईयां बीमारियों का इलाज करती हैं लेकिन मरीजों को केवल डॉक्टर ही ठीक कर सकते हैं। डनका यह उद्धरण मौजूदा समय में तो सर्वाधिक प्रासंगिक नजर आता है। किसी भी मरीज की बीमारी कौ गंभीरता को देखते हुए उसके इलाज के लिए उपयुक्त दवाओं का चयन डॉक्टर ही करता है। कनाडा के सुप्रसिद्ध डॉक्टर विलियम ऑस्लरने कहा था कि एक अच्छा डॉक्टर बीमारी का इलाज करता है जबकि महान् डॉक्टर उस मरीज का इलाज करता है जिसे बीमारी है डॉक्टर लोगों को विभिन्न प्रकार की घातक बीमारियों से निजात दिलाने में पूरी ताकत लगा देते हैं।
डॉक्टरों की ही बदौलत महामारी के इस दौर में करोड़ों लोगों का जीवन बचाया जा सका है। ऐसे में महामारी के दौरान चौबीसों घंटे सेवा प्रदान करने के लिए ही डॉक्टर्स डे के माध्यम से सभी डॉक्टरों तथा चिकित्सा पेशेवरों के प्रति आभार व्यक्त करने का प्रयास किया जाता है। वैसे भारत के अलावा अन्य देशों में भी डॉक्टरों को सम्मान दिया जाता है। ऐसे में डॉक्टर्स डे हमें स्मरण कराता है कि डॉक्टरों की हमारे जीवन में कितनी अहम भूमिका रहती है। कई बार कुछ गंभीर मरीजों के मामलों में लाख कोशिशों के बावजूद डॉक्टर सफ्ल नहीं हो पाते और ऐसे कुछ अवसरों पर बिना उनकी किसी गलती के उन्हें ऐसे मरीज के परिजनों का गुस्सा भी झेलना पड़ता है। हालांकि ऐसे अधिकांश मामलों में मरीज की हालत ही इतनी गंभीर होती है कि डॉक्टर चाहकर भी मरीज के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाते। बहरहाल आज अगर देश कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप से निजात पाने में सफ्ल हुआ है तो इसमें बड़ा योगदान हमारे डॉक्टरों का ही है। यही नहीं देश की स्वास्थ्य सुविधाओं को सुधारने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई है। इसलिए हमें भी किसी भी रुप में उनके प्रति हिंसक या विरोधी भावना नहीं रखनी चाहिए।
कोई शक नहीं सम्मान के हकदार है डॉक्टर्स आज महज कुछ मुट्ठी भर लोग जिनके पैसे कमाने की चाहत की वजह से ये पवित्र पेशा शक की निगाहों में है। लेकिन आज भी डॉक्टर्स हमारे लिए इस धरती पर देवतुल्य है। इंसान के भेष में भगवान का रूप है। कुछ मुट्ठी भर लोगों की वजह से हमें इन्हें शक की निगाहों से नहीं सम्मान के भाव से देखना चाहिये। उन्हें उनके त्याग और समर्पण का सम्मान किया जाना चाहिए।
पूरे देश में डॉक्टरों के प्रति मान्यता ही बदल गई। इसी प्रसंग में डॉक्टरों ने भी अपने भीतर एक नये व्यक्तित्व को ढूंढा है। जब कोविड महामारी के दोर में जब सब कुछ थम गया, ऐसे में डॉक्टर हो या मेडिकल क्षेत्र में शोध करने वाले वैज्ञानिक और अन्य कोरोना योद्धा ही उम्मीद की किरण बनकर उभरे जो मानवता की सेवा करने में देश के साथ खड़े हैं। कोरोना पीड़ितों की सेवा करते हुए इन दो वर्षों में सैंकड़ों डॉक्टरों व नर्सों ने संक्रमित होकर जान तक दे दी। डॉक्टर समुदाय के प्रति देश कभी भी ऋण चुका नहीं सकेगा।
कोविड की शुरुआत से लेकर अब तक बिना रूके, बिना थके, बिना छुट्टी लिए कोरोना योद्धा देश की सेवा में डटे हुए हैं। पहली बार किसी सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र को इतनी प्राथमिकता दी है, जो कोविड के खिलाफ जंग में सहायक साबित हो रही है। स्वास्थ्य क्षेत्र पर खासा ध्यान दिया जाने लगा है और देश के नीतिगत ओर राजनैतिक एजेंडे में भी पहली बार स्वास्थ्य सेक्टर को सर्वोच्च प्राथमिकता मिली है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कोविड काल में पेश किया गया देश का आम बजट जो दूरगामी सोच के साथ लाया गया है ओर स्वास्थ्य के बजट में 137 फीसदी की बढ़ोतरी केंद्र सरकार की दीर्घकालिक सोच का परिचायक है।
ओषबधं जाह्नवीतोयं वेद्यो नारायणो हरिः।