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“कैंडल लाइट ख़त”

आलेख

“कैंडल लाइट ख़त”

रचनाकार : राघवेंद्र चतुर्वेदी

कैंडल लाइट ख़त !अरे हां! सही सुना तुमने … क्या हुआ अजीब सा लगा सुनकर! लगेगा ही हुजूर क्योंकि प्राय: कैंडल लाइट डिनर ही सुना गया है तो ताज्जुब तो होगा ही तुम्हें। पर जानती हो आज हम लिखना चाहते हैं एक कैंडल लाइट ख़त जिसमें लिखना है सिर्फ तुम्हें… बेशुमार… .तुम्हें लिखते हुए सोच भी तुम में ही खो सी गई है ।जानती हो! इन रातों का सूनापन ये सन्नाटे बहुत कुछ कहना चाहते हैं पर तुम्हारे खयालों से फुर्सत नहीं मिलती। मोमबत्ती की लौ में तुम्हारी धुंधली सी छवि को कमरे की रौशनी में महसूस कर शब्द खुद ब खुद प्रस्फुटित हो रहे हैं मानो तुम बेहद करीब हो पास बिल्कुल.. यूं जैसे हृदय की धड़कन भी तुम्हें महसूस कर सके। जीवन के इस सफर में तुम्हारा साथ किसी वरदान स्वरूप सा प्रतीत होता है यूं जैसे किसी ने बिन मांगे मुराद पूरी कर दी हो।पता है तुम्हें! जब तुम मुस्कुराती हो तो मानो दूर कहीं पारिजात के पुष्प वर्षा की भांति बिखरने को आतुर हो उठते हैं। हर दुःख दर्द पीड़ा उन पुष्पों में समा तुम से दूर चला जाना चाहता है । जब भी मन उदासी से घिर उठता है बस तुम्हें महसूस कर तुम्हारे एहसासों को जी लेते हैं और फिर से मुस्कुराहट खिल उठती है। कभी कभी मन होता है कि तुम हर पल पास क्यूं नहीं रहती हो ..पर मन तो स्वार्थी है उसे कैसे समझाया जाए वो तो बस इतना कहना चाहता है….

लिफ़ाफा खोलकर ख़त को ज़रा
आहिस्ता से पढ़ना,
हमारे शब्द कोमल हैं
ज़रा आहिस्ता से पढ़ना..

तुम्हें यूं खूबसूरत लिख
जो दिल महसूस करता है,
वहीं जज़्बात लिखे हैं
ज़रा आहिस्ता से पढ़ना..

वो आंखें खूबसूरत सी
जो कहती हैं बहुत बातें,
उन्हीं आंखों को लिखा है
ज़रा आहिस्ता से पढ़ना..

वो होंठों की दो पंखुड़ियां
बड़ी नाजुक कली सी हैं,
उन्हीं होंठों को लिखा है
ज़रा आहिस्ता से पढ़ना…

कि जब तुम बोलती हो कुछ
बहुत प्यारी सी लगती हो,
उसी प्यारी को लिखा है
ज़रा आहिस्ता से पढ़ना..

तुम्हारा साथ पाकर अब
लगे जीवन हमें प्यारा,
वही एहसास लिखा है
ज़रा आहिस्ता से पढ़ना..

बहुत ही खूबसूरत हो
तुम्हें हम कैसे समझाएं,
हमारी जिंदगी तुम हो
ज़रा आहिस्ता से पढ़ना..

जानती हो! जब तुम ख़त को खोल इन शब्दों को पढ़ महसूस कर रही होगी हमें उस पल तुम्हारे खूबसूरत से चेहरे पर आने वाले भावों को भली भांति महसूस कर सकते हैं हम …सुनो! मोमबत्ती की लौ आहिस्ता आहिस्ता कम होते हुए ख़त्म हो बुझने की कगार पर है..तो आज की रात बस तुम्हें महसूस करते हुए कलम को यहीं रोक तुम्हारे एहसासों के संग स्वप्न लोक की यात्रा पर चलते हैं…तुमसे प्रेम हर पल बेशुमार है और रहेगा… तुम्हारा और सिर्फ़ तुम्हारा…

©® राघवेन्द्र चतुर्वेदी (बनारस)

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