आलेख
छठ पर्व: आस्था,विश्वास और स्वच्छता का प्रतीक।
सुनीता भट्ट पैन्यूली
जल-लहरियों में आस्था और विश्वास के रंगों में सजी, श्रंगार-विन्यास में दिव्य, व्रतधारी स्त्रियां, दूर पहाड़ों पर नीम-कुहासे को पछाड़ कर आसमान की पहली सीढ़ी चढ़ आये सूरज की ओर मुंह किये हुए छठ के पारंपरिक गीत गाती हुई स्त्रियों को पिछले साल मैने भी देखा। यही अनुभूति हुई मुझे कि जो भी आस्था के गीत व भजन ये स्त्रियां गा रही हैं, संभवतः सूर्य भगवान के आचार-व्यवहार से इन्होंने यही सीखा होगा कि अंधकार अस्थाई है। निश्चित ही अंधकार के बाद प्रकाश का अवतरण होगा ।
जल-लहरियों में आस्था और विश्वास के रंगों में सजी, श्रंगार-विन्यास में दिव्य, व्रतधारी स्त्रियां, दूर पहाड़ों पर नीम-कुहासे को पछाड़ कर आसमान की पहली सीढ़ी चढ़ आये सूरज की ओर मुंह किये हुए छठ के पारंपरिक गीत गाती हुई स्त्रियों को पिछले साल मैने भी देखा। यही अनुभूति हुई मुझे कि जो भी आस्था के गीत व भजन ये स्त्रियां गा रही हैं, संभवतः सूर्य भगवान के आचार-व्यवहार से इन्होंने यही सीखा होगा कि अंधकार अस्थाई है। निश्चित ही अंधकार के बाद प्रकाश का अवतरण होगा । सूर्य डूबेगा ज़रूर लेकिन पुनःः दैदीप्यमान होगा नयी उम्मीद और नयी आशा की किरण लेकर।
एक विहंगम दृश्य, भोर की पौ फटती है और पीत स्वर्ण हो जाती है संपूर्ण प्रकृति अर्थात नदी, पोखर, सरोवर, तालाब के तटों पर बदलते मौसम की शीत बयार से विरत असंख्य श्रद्धालु सूर्य भगवान के दर्शन हेतु आतुर हैं। जहां महिलायें सर्द-सुबह की परवाह किये बिना, मांग से नाक तक लंबा सिंदूर काढ़े संपूर्ण श्रंगार ओढ पहनकर पानी में अर्ध रूप से भीगते हुए, खड़े होकर, प्रकृति जनित फल एवं सब्जियां तथा पारंपरिक मिठाईयां ठेकुआ व खाजा को बांस के सुप्पे या टोकरी में भरकर सूर्य भगवान को अर्घ्य देती हैं।
जहां श्रद्धा व कृतसंकल्पता होती है, मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। मनोकामनाओं के फलीभूत होने हेतु स्त्रियां छठ व्रत करती हैं। दिवाकर की रश्मियां पहली दफ़ा जब जल धाराओं से टकराती हैं श्रद्धालु उनका आचमन कर भगवान भास्कर को अर्घ्य देकर समस्त मानव कल्याण व उसकी समृद्धि हेतु प्रार्थना व अर्चना करते हैं।
छठ पर्व दीपावली के बाद मनाया जाने वाला प्रकृति पूजा, आस्था और पर्यावरण का पर्व है। यह पर्व नदियों व जलाश्य के तटों व किनारे पर बड़े हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है। छठ पूजा में किसी देवी-देवता की मूर्तियां या मंदिर की पूजा नहीं की जाती बल्कि धरती और जल की पूजा के साथ भगवान सूर्य को अर्घ्य देकर उनके समक्ष समस्त मानव जाति के स्वास्थ्य की कामना वह उन्हें अन्न, जल, ऊष्मा देने के लिए कृतज्ञता प्रकट की जाती है।
छठ पर्व के दौरान प्रयुक्त होने वाली केवल प्रकृति जनित खाद्य वस्तुओं को ही शामिल किया जाता है अथार्त छठ पर्व की आस्था के केंद्र में प्रकृति और सूर्य भगवान हैं जिनके प्रति छठ पर्व को मनाने वाले श्रद्धालुओं द्वारा आभार संप्रेषित किया जाता है।
वास्तव में छठ पर्व स्वच्छता व सफाई का त्यौहार भी है। इस त्योहार के पीछे कहीं न कहीं हमारे पुरखों की जल निधियों को श्रद्धा व आस्था द्वारा सहेजने की मंशा भी उजागर होती है। पर्व से पहले नदियों, तटों, जलाशय पर्व से पहले नदियों, तटों, जलाशयों की साफ-सफाई की जाती है ताकि व्रत-धारी पानी में घंटों खड़े रहकर सूर्य की उपासना कर सकें।
छठ पर्व का एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह भी है कि विटामिन डी के श्रोत भगवान सूर्य को अर्घ्य देने हेतु घंटों जलाशयों में खड़े रहकर शरीर में साल भर तक के लिए विटामिन की भी पूर्ति हो जाती है।
छठ पर्व के बहाने बरसात के बाद जल निधियों में बहकर आये कूड़े की भी सफाई तो हो जाती है किंतु पर्व समापन के बाद स्थिति जस की तस हो जाती है । छठ पूजा के लिए सजाये गये घाट में हर तरफ गंदगी, प्लास्टिक, पोलिथीन व अन्य प्रकृति हंता वस्तुओं से अटी हुई दृष्टिगत होती है।
छठ पर्व का उद्देश्य श्रद्धालुओं द्वारा प्रकृति व पर्यावरण को बचाने के लिए आस्था के साथ सूर्य भगवान की अर्चना व अभ्यर्थना भी है जिसके उपभोग के लिए कृतज्ञता ज्ञापित करना छठ पर्व को मनाने का सर्वोच्च व उज्जवल पक्ष है।
दीपावली के बाद छठ पर्व में छत्तीस घंटे स्वच्छता व पवित्रता और उसके बाद तीन सौ इकसठ दिन वही घाटों पर जस का तस गंदगी भरा माहौल। हर साल छठ पर्व पर देश की नदी, जलाशयों को स्वच्छ बनाने, पुराने जीर्ण-शीर्ण तालाबों को पुनर्जीवित, नयी जल नीधियों का निर्माण उनका संरक्षण व उनमें गंदगी साबुन, प्लास्टिक जाने से रोकने की कृत संकल्पता हो तो छठ पर्व की कीर्ति और यश किसी और ऊंची बुलंदियों को ही छू जायेगी। छठ पर्व हमारी आस्था, प्रकृति और सूर्य पूजा का पर्व है।
आइये हम सभी इसे पर्यावरण संरक्षण और जल श्रोतों की स्वच्छता और संरक्षण के पर्व के रुप में भी मनायें इसी में भी मनायें इसी में छठ पर्व का महत्व एवं सार्थकता है।
सुनीता भट्ट पैन्यूली (देहरादून)