आलेख
पिताजी तुम भी ना…
हरदेव नेगी
बचन सिंह पिछले कुछ दिनों से अस्त व्यस्त से थे, क्योंकि अपने सबसे छोटे बेटे की शादी की व्यवस्था में लगे हुए हुए थे, पछले एक महीने मे तीन चक्कर शहर से गाँव की तरफ लगा चुके थे,,, बच्चन सिंह का मानना था कि दिशा – ध्याणियों को ऐंसे कार्ड देकर बुलाना ठीक नहीं है, घर -घर जाकर निमंत्रण देना ठीक है, और अच्छा भी लगता है, आखिर उन्होंने भी हमारे घर आकर अपने मांगल कार्यों का न्यौता दिया है,,, मैं नहीं गया तो उनको बुरा लगेगा,,, बचन सिंह पेशे से मास्टर थे, 58 साल की उम्र में भी पूरा जिम्मा कार्य का उठा रखा था,,, बचन सिंह के दो बेटी व दो बेटे थे,, बड़ा लड़का बैंगलौर में साफ्टवेयर इंजिनियर व दूसरे नंबर की बेटी बैंक क्लर्क थी, और तीसरे नंबर की बेटी समिक्षा अधिकारी सबसे छोटा वाला बेटा इंटर कॉलेज का लैक्चरर,, पर घर कार्य में कोई भी हाथ बटाने के लिए आगे नहीं आता है,,, बच्चों की माँ भी बचन सिंह की तरह मेहनतकश नहीं थी, बस हर बात पर एक ही धारंणा थी पैंसे देकर दो चार मजदूर और रख लो निपट जायेगा कि काम,,,, बाकी तीनों की शादी भी बड़े धूम धाम से की थी, छोटे वाली शादी में कोई कसर ना रहे इसलिए दिन भर काम काज में लगे रहते थे।
बचन सिंह ने अपने जीवन में बहुत खरड़ी खाई थी, पिताजी मिस्त्री का काम करते थे, मुश्किल से 6 भाई बहनों के परिवार का लालन पालन होता था, उस जमाने में कैंसे करके बचन सिंह को पढ़ाया होगा बचन सिंह के पिताजी ने ये बात हमेशा जहन में रहती थी, अपने भले दिनों में बुरों दिनों की भी याद जरूर रखते थे,,, बचन सिंह परिवार में सबसे बड़े थे, जैंसे ही बचन सिंह नौकरी लगे तो अपने और भाई बहनों को भी पढ़ाया लिखाया और काबिल बनाया, बहनों की शादी भी अच्छे घरों में करवाई,,, अपने जीवन की आधा कमाई अपनों पर ही खर्च कर दी थी,, बचन सी घरवाली को ये बात पसंद नहीं थी,, पर बचन सिंह उसकी बात व तानों को चाय की तरह घूँट देते थे,,,
दो लाख में वैडिंग प्वोंइंट बुक किया, व घर के पास का एक होटल भी बुक किया, जिससे कि गाँव से आने वाले पुरुषों को वहाँ रहने की व्यवस्था कर रखी थी, बाकी दिशा – ध्यांणियों को घर में पूरी व्यवस्था थी,,, बचन सिंह की घरवाली भी आज शौपिंग के लिए बाजार जा रखी थी, उसके पास एक उस जमाने का गुलोबंद था, फिर भी अपनी जिद्द पर अड़ी रही और एक नया सोने का हार लिया,,, मेंहदी, हल्दीहाथ व रिसैप्सन के लिए 5-10-15 हजार की तीन अलग अलग साड़ियाँ ली,,, लड़कों ने भी अपने लिए मान्यवर से मेहंदी व हल्दी हाथ के लिए स्पेशल ब्रांडेड कुर्ते मान्यवर से खरीदे, तथा रिसैप्सन के लिए रैमंड से 15 हजार के सूट, व दुल्हे ने 40 हजार की सेरवानी मान्यवर से ली,,,, वहीं बचन सिंह ने एक जोड़ी सैंडल व व अपने पुराने पहचान के दुकानदार से दो जोड़ी कुर्तों का कपड़ा लिया वही सिलवाया,,, बेटियाँ भी जब अपने मायके पहुँची तो माँ को बता रही थी इस बार हमने अपने भाई की शादी के लिए इतने हजार की शौपिंग की,,,, पर किसी ने भी शादी की व्यवस्था के बारे में पिताजी से जिक्र नहीं किया,,, कि मेहमान नवाजी कैंसे होगी, दिशा धियांणियों के लिए कपड़े व लिफाफे कैंसे करके देने हैं,, वो बिलकुल बिना परवाह के मस्त थे,
बचन सिंह बच्चों को देखकर सोच रहे थे आज तो पिताजी हैं भविष्य में इनका काम ऐंसे ही चलेगा,,, क्या पैंसे से सब कुछ खरीद लेंगे मेरे बच्चे,,, भगवान जैंसे तैंसे ये कार्य निपट जाये मुझसे बस,, फिर टेनशन खत्म,,, मेंहदी की रात की तैयारियाँ होने लगी, उधर काॅक्टेल पार्टी वालों की व्यवस्था भी शुरु हो रही थी काॅक्टैल में सबको मंहगी शराब चाहिए, लोकल तो कोई पीता नहीं ऐंसे मौके पर, 60 सत्तर सजार उस पर अलग खर्चा,,,
गाँव से आये हुए मेहमानों का आदर सत्कार व उनको बैगों को बचन सिंह ने एक कमरे में स्पेशल रखा था, जिससे विदा करते वक्त परेशानी ना हो, गाँव से जब बचन सिंह की छोटी भुलि व दोनों भाई आये तो उन्होंने बचन सिंह के साथ हाथ बटाना शुरु किया,,, शाम को मेंहदी रस्म के लिए सब तैयार हो गये, बचन सिंह ने भी नया एक कुर्ता पहना,,, और एक छोटा काला बैग अपने कंधे पर लटका दिया जिसमें रुपये थे जाओ आये हुए मेहमानों के स्वगत के समय के लिए पिठांई के दौरान दी जाने वाली भैंट व अन्यकार्यों के लिए रखे कुछ पैंसे और गोदरेज की चाबी,, जब बच्चों ने पिताजी को नये कुर्ते में देखा तो चिड़ने लग गये,,, और कहने लगे “पिताजी तुम भी ना”, ये क्या पहना है बाबर आजम के जमाने का कुर्ता,, तुम क्या नेतागिरी करने जा रहे हो,,, कुछ तो ढंग का पहनों,, तब तक बच्चों की माँ बोली तेरे पिताजी तो सब जगह ऐंसे ही रहते हैं,,, फटेहाल,,, लोग क्या कहेंगे………..! प्लीज कल रिसैप्सन में ढंग का सूट पहनना,,, ऐंसे चंदा मांगने वाला बैग लटकाकर मत आना शादी में,,,, बेटियाँ भी भाई और माँ हाँ की हाँ मिला रही थी,,, ! और ये क्या सैंडल पहने हैं कुछ तो ढंग लेते पापा आप,, एक ही दिन तो आता है कुछ ढंग का पहनने का उसमें भी वही पुराना।
बच्चों की बातेझ सुनकर बचन सिंह कुछ घबरा गये और गुस्सा पीकर बच्चों से कहा, कि तुमने किसी मेहमान से चाय पानी के लिए पूछा, सेवा सौंळी लगाई, बेटा बोला पिताजी वो चाय पानी हलवाई का आदमी पूछेगा हम क्यूँ पूछें? बेटे वो हलवाई वाला मेरे घर का सदस्य नहीं है वो सिर्फ रिसैप्सन में पूछेगा, घर में जो भी मेहमान आता है उसको घर वाले ही पूछते हैं, तुम मेहमान बनकर आ रखे हो, मैं देख रहा हूँ तुम मे से किसी ने अभी तक एक गिलास पानी का नहीं उठाया, बस तुम्हारा फोटो खींचना जाने,, और तुम्हारे कपड़े,,, यहीं तक तुम सीमित है,,, रति भर भी सहयोग नहीं है ना तुम्हारा ना तुम्हारी माँ का,,,,, मेहमान आ रखे हैं उनका सामान कहाँ रखना है, विदा करते समय उनके बैग मिठाइ रखनी है लिफाफा देना है ये सब तुम्हारी माँ को करना चाहिए था जो कि अच्छा लगता है, पर क्या करें तुम्हारी माँ तो खुद के आदर सत्कार में लगी है, लोग क्या कहेंगे? बेटों तुम शिक्षित जरूर हो पर साक्षर नहीं,,,,,
अरे यार पिताजी तुम भी हर बात पर लैक्चर देने लग जाते हो,,, आज तो मूड़ औफ ना करो,,, अरे रहने दो तुम्हारे पिताजी ही जानते हैं दुनियादारी मैं तो कुछ नहीं जानती,,, इन्होंने तो हमेशा बेजती करवानी हैं,,, खुद को तो एक कुर्ता पैजामा में दिन काट रहे हो और मुझे भी सस्ते से कपड़ों में,,, ! एक ढंग का सूट पहन लेते तेरे पिताजी तो क्या बुरा होता,,, कहाँ लेकर जायेंगे ये इतने पैंसे? ,,,,, ! ठीक है भग्यवान मैं तो कंजूस हूँ तभी इतना लाखों खर्च कर रहा हूँ, पर जो तू इतना सज धज रही है इस उम्र में वो पैंसा कहाँ से आ रहा? शौक भी उम्र के साथ सही लगता है,,, पर क्या कहना तुमको, तुम सब अंबानी के घर पैदा हो रखे हो तो मैं क्या करूँ?।
बेटे ने कहा ” पिताजी तुम भी ना” हमेशा ऐंसे रोते रहोगे,,,,
बचन सिंह ने कहा बेटे यहाँ सबसे सस्ता और सबसे महंगा भी मै ही हूँ, सबसे सस्ते सैंडल मेरे जरूर हैं मगर सबसे मंहगी नीव मेरी ही है,,,
इतना कहकर बचन सिंह कमरे से बाहर चले गये,,,
हरदेव नेगी गुप्तकाशी(रुद्रप्रयाग)