उत्तराखण्ड
प्रदेश सरकार को खनन की शिकायतों के निस्तारण के लिए सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी की तैनाती का निर्देश।
संवादसूत्र देहरादून/ नैनीताल : हाई कोर्ट ने हरिद्वार में रायवाला से भोगपुर के बीच गंगा नदी में खनन के विरुद्ध दायर मातृसदन की जनहित याचिका पर गुरुवार को सुनवाई की। कोर्ट ने सरकार को खनन की शिकायतों के निस्तारण के लिए सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी या प्रशासनिक अधिकारी की तैनाती का निर्देश दिया। नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा (एनएमसीजी) से पांच जनवरी तक यह स्पष्ट करने के लिए कहा है कि केवल अवैध खनन पर रोक लगाई है या संपूर्ण खनन पर। अगली सुनवाई पांच जनवरी को होगी।
गुरुवार को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि एनएमसीजी ने वर्ष 2018 के आदेश को संशोधित कर दिया है, इसलिए सरकार ने खनन के आदेश दिए। वहीं, अमृतसदन की ओर से कहा गया कि एनएमसीजी ने खनन पर रोक के आदेश को समाप्त नहीं किया है बल्कि उसमें तीन अन्य शर्तें जोड़ दी हैं। पहला रायवाला से भोगपुर तक गंगा में किसी भी तरह का खनन कार्य नहीं होगा। दूसरा अवैध खनन करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई लिए एक सिस्टम बनाया जाय, जिसकी जिम्मेदारी जिलाधिकारी या एसएसपी की होगी। तीसरा रायवाला से भोगपुर तक गंगा के तट से तीन से पांच किलोमीटर के भीतर स्टोन क्रशर के लिए बफर जोन बनाया जाए, जिसका अनुपालन अभी तक नहीं किया गया। इसके विपरीत इन आदेशों का गलत अर्थ निकालकर वर्ष 2019 में खनन की अनुमति दे दी गयी। इस आदेश के स्पष्टीकरण के लिए 2019 में मातृसदन ने एनएमसीजी को एक और प्रत्यावेदन दिया, जिसमें स्पष्ट करते हुए एनएमसीजी ने कहा कि 2018 के नियम यथावत रहेंगे।
हरिद्वार मातृसदन ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि हरिद्वार में रायवाला से भोगपुर के बीच गंगा में नियमों के विरुद्ध खनन किया जा रहा है। इससे गंगा का अस्तित्व खतरे में है। अब खनन कुंभ क्षेत्र में भी किया जा रहा है। केंद्र सरकार ने गंगा को बचाने के लिए एनएमसीजी बोर्ड गठित किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य गंगा को साफ करना व अस्तित्व को बचाए रखना है। एनएमसीजी ने राज्य सरकार को बार-बार खनन न कराने का आदेश दिया। लेकिन प्रदेश सरकार ने उसकी नहीं सुनी। ऐसे में अवैध खनन पर रोक लगाई जाए।