आलेख
एक स्कूल माता पिता के लिए भी हो…….
【राघवेंद्र चतुर्वेदी】
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि यदि आपका बच्चा कम नंबर लाता है तो उसकी तुलना पड़ोस वाले या फूफा चाचा ताऊ के बच्चों से मत कीजिए। उसको मार्गदर्शन की जरूरत है। कोई भी बच्चा पढ़ाई के दौरान सभी विषयों में एक साथ फेल नहीं होता । उसका रिपोर्ट कार्ड चेक कीजिए आपको स्वयं पता चल जाएगा उसकी रूचि किस विषय में है।
एक स्कूल माता पिता के लिए भी होना चाहिए…….
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि शादी ब्याह कोई गुड्डे गुड़िया का खेल नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी है।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि शादी सिर्फ़ शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए नहीं होती है।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि यदि एक नवविवाहित शादी शुदा जोड़े के रूप में आपने जीवन में प्रवेश किया है और माता पिता की जिम्मेदारी उठाने के लिए अभी सक्षम नहीं है तो अपने क्षणिक मनोरंजन के लिए एक नये जीवन को दुनिया में मत लाइए।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि आपके अपने सपने अधूरे रह गये वो आपका भाग्य था आपकी किस्मत थी अब उन सपनों को अपने बच्चों पर मत लादिए।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि यदि आपका बच्चा आपसे कुछ कहना चाहता है तो उसको सुनिए । उसको चुप मत कराइए। उसको हर बात पर डांटिए मत । अपने व्यवसायिक और कार्यक्षेत्र का ग़ुस्सा अपने बच्चों पर मत निकालिए । आपका ये रवैया उस बच्चे को आपसे दूर कर देगा ।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि खुद का गौरव और यश समाज में बढ़ाने के लिए बच्चों को बलि का बकरा मत बनाएं।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि यदि उनके जीवन में एक से ज्यादा औलादें हैं तो सभी को परस्पर प्रेम और ममता देने का प्रयास करें।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि लड़की सिर्फ दूसरों का वंश बढ़ाने वाली मशीन नहीं है।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि शादी विवाह जीवन के अंग मात्र है। ये संपूर्ण जीवन नहीं है जिनके बिना आप जी नहीं सकते ।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि प्रत्येक बच्चे को स्वतंत्र रूप से अपना भविष्य चुनने का अधिकार है बस माता पिता उनका मार्गदर्शन कर प्रोत्साहित करें ताकि बच्चा दिशाहीन न हो ।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि घर का बड़ा लड़का हो या बड़ी लड़की हो उसका भी अपना जीवन है उनका भी भविष्य है उनको भी ममता दुलार और मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है।उनका इस्तेमाल सिर्फ स्वार्थ सिद्ध करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि सुख दुःख में आपका अपना बेटा या बेटी ही काम आएंगे। ये समाज थूकने भी नहीं आएगा ।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि बच्चे के पैदा होते ही उम्र के पायदान चढ़ने के साथ साथ अपने त्याग और बलिदान के गीत न गुनगुनाएं वरना वो बच्चे छोटी उम्र से ही मां बाप के एहसानों तले दबकर सिसकारियां भरने लगते हैं।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि बच्चों को रिश्तेदारी पट्टीदारी और फालतू परंपराओं ( जिसकी उन्हें आवश्यकता नहीं) उससे दूर रखा जाए । उन्हें इन सब चक्करों में ना उलझाया जाए।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि बच्चे को अपने पैदा किया है तो उस पर विश्वास करना सीखिए। चंद रिश्तेदार और समाज के ठेकेदारों के कहने में आकर बच्चों पर अविश्वास न दिखाएं क्योंकि यही वो कड़ी है जहां से बच्चे रास्ता बदलना शुरू कर देते हैं।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि अपने बच्चे के माता पिता होने के साथ साथ उसके आदर्श भी बनिए। बच्चे के भीतर डर या भय का माहौल मत रखिए अन्यथा बच्चा आपसे सत्य नहीं कह पाएगा ।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि सिर्फ स्कूल भेज देने से आप जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाते । आपको अपने बच्चों को वक्त देना चाहिए ताकि वो आपके साथ स्वतंत्र रूप से दुःख वेदना कष्ट को साझा कर सकें।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि बच्चों के ऊपर ज्यादा नंबर(Marks) ज्यादा प्रतिशत (Percentage) लाने का दबाव नहीं बनाना चाहिए इससे उनका मानसिक संतुलन प्रभावित होता है।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि इमोशनल कार्ड खेलकर पहले लड़के लड़की की शादी करवाना फिर वैसा ही दूसरा इमोशनल कार्ड खेलकर उनसे नाती पोता पैदा करवाना बिल्कुल गलत है ।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि शादी ब्याह जैसे जीवन काल वाले विषय पर बच्चे से स्वतंत्र रूप से बात करें। उससे पूछें कि क्या वो इस जिम्मेदारी के लिए तैयार हैं या नहीं ।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि जिस प्रकार आप स्वयं की बेटी विदा करके दूसरे घर भेजकर ये अपेक्षा करते हैं कि वहां उसे बहू के साथ साथ बेटी जैसा सम्मान मिलेगा उसी प्रकार किसी और की बेटी जब आपके घर बहू बनकर आए तो उसे भी वही सम्मान देने की आवश्यकता है।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि बच्चों पर बोझ की तरह लदने का प्रयास न करें बल्कि उनके लिए छत बनिए । उनके सुख दुःख में सहायक बनिए । आर्थिक न सही पर आपकी एक मीठी वाणी और आपका हाथ अपने सिर पर पाकर उस कमाऊ बच्चे को कम से कम इस बात की तसल्ली तो रहेगी कि दर्द में उसके अपने उसके साथ हैं।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि किसी के भी बहकावे में आकर अपने बच्चों पर शक न करें। तुरन्त कोई फैसला लेने से पहले उसकी सत्यता की जांच कराएं।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि आपका बच्चा गलती करता है तो उसे समाज के सामने शर्मिन्दा मत कीजिए क्योंकि शारीरिक चोट भुलाई जा सकती है पर मानसिक चोट मृत्यु के साथ ही विदा होती है।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि इंसान बनना सीखें। और बच्चों को भी इंसानियत का महत्व बताएं। ईश्वर सभी के भीतर है बस आपको मार्गदर्शन करना होगा।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि बच्चों का मन बेहद कोमल होता है बचपन से ही उनके भीतर किसी भी वजह से भय या डर का माहौल न बनाएं अन्यथा आगे चलकर ये उस बच्चे के लिए फोबिया बन जाएगा ।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि यदि आपका लड़का बिगड़ैल है आंवारा है या आपकी लड़की ऐसी है तो इसका जिम्मेदार सिर्फ वे स्वयं नहीं है बल्कि इसके लिए आप भी कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं और ज्यादा मामलों में ये निष्कर्ष निकलता है कि इनकी शादी कर दो ठीक हो जाएंगे तो ये सोच बिल्कुल गलत है। किसी का बेटा या किसी की बेटी आपके बिगड़ैल बच्चों को सुधारने का साधन नहीं हैं। स्वयं से गलती को सुधारना सीखिए।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि बड़ों का सम्मान करना चाहिए। पर सिर्फ छोटों की ये जिम्मेदारी नहीं कि वो बड़ों का सम्मान करते रहें बल्कि बड़ों की भी ये जिम्मेदारी है कि वो अपने सम्मान की गरिमा को बनाए रखें।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि अपने बच्चे के माहौल और अपने स्वयं के आसपास के माहौल का आंकलन सदैव करते रहिए और जहां से नकारात्मक ऊर्जा या लोग आ रहे हो वो द्वार बंद कीजिए।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि यदि आपका बच्चा कम नंबर लाता है तो उसकी तुलना पड़ोस वाले या फूफा चाचा ताऊ के बच्चों से मत कीजिए। उसको मार्गदर्शन की जरूरत है। कोई भी बच्चा पढ़ाई के दौरान सभी विषयों में एक साथ फेल नहीं होता । उसका रिपोर्ट कार्ड चेक कीजिए आपको स्वयं पता चल जाएगा उसकी रूचि किस विषय में है।
जहां उन्हें सिखाया जा सके कि हर बच्चा एक समान ही पैदा होता है। उसके दिमाग से छेड़छाड़ की शुरुआत घर परिवार और आसपास के माहौल से ही होती है। इस पर ध्यान देना बहुत जरूरी है, और सबसे जरूरी बात अपने बच्चे को प्यार करना सीखिए। हर समय नौकरी/बिजनेस/ दुकानदारी वाला ये जो एक्सक्यूज है न ये देना बंद कीजिए। पैसे की जरूरत सभी को है पर एक वक्त के बाद चिढ़ सी हो जाती है। उस बच्चे को अपने माता पिता के समय उनके प्रेम की बहुत जरूरत है। उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति करना ही आपका कर्तव्य नहीं है। उसे समझिए !
आपका बेटा हो बेटी हो एक हो दो हो चार हो ..सबको परस्पर प्रेम दीजिए। किसी की तुलना मत कीजिए।
सिर्फ बच्चे पैदा कर देने भर से आप सम्मान के लायक नहीं हो जाते बल्कि उस बच्चे के हृदय में अपने लिए वो स्थान बनाइए …उसके मन को जीतिए…उसके मर्म को पढ़ना सखिए !
ऐसे तमाम बातें हैं जो आपके साथ भी घटित हुई होंगी….जिनका कोई अंत नहीं …!
राघवेन्द्र चतुर्वेदी ✍️✍️,बनारस(यूपी)