उत्तराखण्ड
मुझे माफ करना
संजीव
कभी तो आइना देखा करो
कभी तो खुद से गुफ्तगू करो
यूं ही लिबास तन से उतार देना
किसी के गले का हार बनना
इसको मोहब्बत कहते हो
तो माफ करना मुझे नहीं हैं,
खुद से नज़रे मिलाते कैसे हो
आइना देख के शरमाते नहीं
अपनी फितरत पे
यूं ही मुस्कराते हो
यूं ही बे लिबास हो जाते हो
इसको मोहब्बत कहते हो
मुझे माफ़ करना मुझे नहीं हैं ,
यूं ही लफ़्ज़ों के जाल देना
किसी को भी दिल में उतार लेना
गर ये मोहब्बत है तो
मुझे माफ़ करना मुझे नहीं हैं,
देखा जाए तो
ये लिबासे ए हुस्न
इक धोखा है
खुद से किया समझौता हैं
गर उतार के इसको
समझते हो ये मोहब्बत है
तो माफ करना मुझे नहीं हैं ,
कभी बे लिबास होकर
आइना देखना
इक सच और इक झूठ
का मायना देखना
बे लिबास होकर
कभी बिस्तर टटोलना
गर ये मोहब्बत है तो
माफ करना मुझे नहीं है..!!
संजीव (देहरादून )