आलेख
गाँधी जी (पुण्यतिथि)
कनिष्क कुमार
पहली गोली लगते ही आगे बढ़ने के लिए उठा हुआ गांधी जी का पैर रुक गया।
हैरत से फटी हुई आंखें लिए समय भी वहीं थम गया , मानो वो पुरजोर प्रयास कर रहा हो , अपने सामने लड़खड़ाते हुए शरीर को वापस उसके अतीत यानि ४ सितंबर १८८८ ( 4 – 9 – 1888 ) मे ले जाने की , जब वो मात्र अठ्ठारह वर्ष की आयु मे अपने सधे हुए कदमों व दृढ़ इरादों के साथ अपनी पत्नी कस्तूरबा और उनकी गोद मे अपने नन्हे मासूम बालक की और देखे बिना बम्बई बन्दरगाह की तरफ बढ़ रहे थे।
जहां से उन्होंने अंग्रेज़ी राष्ट्र की विदेशी जमीन इंग्लैंड की और रवानगी भरी , जिसकी बादशाहत का साम्राज्य लगभग सारी दुनिया को अपनी गिरफ्त मे किए हुए बैठा था ।
और जिन्होंने आगे चलकर बिना हथियार उठाये अपने दुर्बल शरीर के बावजूद शक्तिशाली अंग्रेज़ी साम्राज्य को धराशायी कर देने मे गांधी नामक उस कील की भूमिका निभाई , जो जब अंग्रेज़ी हुकूमत के सीने पर ठोकी गई , तो लहू का एक भी मामूली कतरा बहाये बिना ही अंग्रेज़ी तानाशाहों के सीने के भीतर से आजादी खींच कर बाहर ले आई ।
तभी दूसरी गोली की आवाज समय के कानों मे गूंजी , उसने हमेशा की तरह स्नेहमयी मुद्रा मे प्रणाम के लिए उठते हाथों को उन क्षणों मे निढाल होते हुए अपने सीने को पकड़ते हुए देखा , और फिर तीसरी गोली ने तो मानो राष्ट्र के सीने को ही छलनी कर दिया।
भरी हुई आंखों के साथ समय ने भी पलकों को मूंंद लिया , उसे मालूम था कि वो एक ऐसे शरीर को अपनी आंखों के सामने दम तोड़ते देख रहा , जिसके जैसा दूसरा कोई और वो कभी न देख पायेगा।
गांधीजी की हत्या का समाचार जैसे ही सरदार पटेल को मिला , उन्हें जबर्दस्त हृदयघात हुआ , सीने पर हृदय के बिल्कुल ऊपर हाथ रखकर सोचेंगे तो यकीनन , यकीन करेंगे की जब कोई अपना दुनिया से जाता है , तो उससे अपार स्नेह रखने वाले को ही उसके शोक मे हृदयघात आता है। और ये हृदयघात इस बात को अत्यंत भावनात्मक रूप से साबित करता है कि पटेल भी जानते और मानते थे की महात्मा गांधी का होना देश और दुनिया के लिए कितना आवश्यक था , और यही बात सुभाष चंद्र बोस ने भी अपने जवानों को सम्बोधित करते हुए कही थी , कि हम मे भले कितने मतभेद हों लेकिन आजादी प्राप्त करने के बाद सबकुछ भूला कर अंततः गांधी जी के विचारों और उनकी विचारधारा पर पर ही आगे बढ़ना होगा , क्योंकि उसके अलावा कोई भी और रास्ता मानवता को जिंदा नहीं रख सकता , और अगर मानवता न रही , तो मानव जाति भी नहीं बचेगी।