आलेख
भूली बिसरी यादें जब साथ चलती हैं…
रेडियो की सर्वसुलभता ने हमें हमेशा जोड़कर रखा और हर सफर में कोई साथ हो या न हो पर रेडियो हमेशा साथ निभाता हुआ दिखता है।
अनीता कठैत
वैसे तो इस हफ्ते का दिन किसी न किसी डे के रूप में मनाया जा रहा है और ये भी विचित्र संयोग है कि आज का दिन यानि 13 फरवरी को 2011 से रेडियो दिवस के रूप में मनाया जा रहा है ताकि जागरूकता का संचार अबाध गति से चलता रहे। रेडियो दिवस हम सभी के जीवन में विशेष महत्व रखता है क्योंकि हम सभी की स्मृतियों में इसकी जो जगह है वो कोई नहीं ले सकता है जीवन के वो शुरुआती दिन जब संगीत, समाचार या अन्य घटनाओं के महत्व का ज्ञान नहीं था तब रेडियो के माध्यम से ही गानों की मधुरता को महसूस किया था और गायक गायिकाओं के नामों को पहचाना था उनका आवाजों से और साथ ही समाचार को पढ़ने की विधा को तब समझा था जब महसूस किया था कि प्रभावशाली वाचन कैसे होता है उस वक्त रेडियो हमारे लिए एक गुलदस्ता था जिसमें बहुत तरह के कार्यक्रम फूलों की भांति लगते थे जिन्हे पूरे अहसासों के साथ महसूस करते थे हम।
उस वक्त दूरदर्शन का दायरा सीमित था पर पूरे देश के हर घर में चाहे गांव हो या शहर रेडियो ही हर घर की शान समझा जाता था। मुझे याद है कि जब हम बहुत छोटे थे तो क्रिकेट मैच होने पर किस तरह से घर के बड़े सदस्य रात रात भर कामेंट्री सुनते थे मन कौतूहल से भर जाता था तब सोच का दायरा सीमित था और समझ तो रूचि के साथ बंधा हुई महसूस हुई हमेशा। बदलते दौर में वो समय भी आया जब टीवी का दौर आया तो दृश्य श्रव्य माध्यम की ओर सबका आकर्षित होना लाजमी था पर वो मैच की कामेंट्री के दौरान चौकों छक्कों पर तालियों का बजना आज भी मस्तिष्क पटल पर अंकित है और शायद हमेशा रहेगा भी क्योंकि पुरानी यादें हमेशा साथ रहती हैं।
हर दिन सूचना प्रौद्योगिकी नये नये आयामों को छू रही है इसलिए नये प्लेटफॉर्म उपलब्ध हो रहे हैं लेकिन रेडियो की सर्वसुलभता ने हमे हमेशा जोड़कर रखा और हर सफर में कोई साथ हो या न हो पर रेडियो हमेशा साथ निभाता हुआ दिखता है शायद यही इसकी खूबी है कि अनेक भाषाओं और संस्कृतियों वाले देश को जोड़ने की कला इसे अच्छे से आती है भले ही समय खुशी का हो विपत्ति का……….