उत्तराखण्ड
विदेशों से एमबीबीएस के बाद भी भारत में डॉक्टर बनना नहीं आसान।
संवादसूत्र देहरादून/नई दिल्ली,(पंकज विजय की रिपोर्ट): हर साल भारत में डॉक्टर बनने का सपना देख रहे करीब 8 लाख छात्र मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट ( NEET ) देते हैं। लेकिन देश में सिर्फ करीब 90 हजार मेडिकल सीटें ही उपलब्ध हैं। इनमें एमबीबीएस की करीब 88 हजार सीटें हैं। देश में उपलब्ध कुल एमबीबीएस की सीटों में करीब 50 प्रतिशत सीटें प्राइवेट कॉलेजों में हैं। नीट में काफी हाई स्कोर हासिल करने वाले केवल पांच फीसदी स्टूडेंट्स को ही सरकारी मेडिकल कॉलेजों में दाखिला मिल पाता है। यही वजह है कि हर वर्ष 20 से 25 हजार स्टूडेंट्स मेडिकल की पढ़ाई पढ़ने विदेश जाते हैं। बहुत से ऐसे भारतीय छात्र जिनका देश के प्राइवेट कॉलेजों में एडमिशन हो रहा होता है, वह भारी भरकम फीस के चलते यहां एडमिशन नहीं लेते।
सस्ती फीस के चलते यूक्रेन, रूस और चीन इन छात्रों की पहली पसंद रहते हैं। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन, रूस और चीन के अच्छे कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई में करीब 20 से 35 लाख का खर्च आता है। जबकि भारत में साढ़े चार साल के एमबीबीएस कोर्स की फीस मैनेजमेंट सीट से 30 लाख से 70 लाख तक पड़ती है। अगर एनआरआई कोटे से एडमिशन कराओ तो ये खर्च 90 लाख से 1.6 करोड़ तक पहुंच जाता है।
हर साल यूक्रेन, चीन, रूस जैसे तमाम देशों से भारतीय छात्र एमबीबीएस करते हैं लेकिन विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करके डॉक्टर बनना बेहद टेढ़ी खीर है। इस राह में सबसे बड़ी अड़चन स्क्रीनिंग टेस्ट है जिसे फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन (एफएमजीई) कहा जाता है। भारत में डॉक्टरी करने का लाइसेंस हासिल करने के लिए यह परीक्षा पास करना जरूरी होता है। टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक इस परीक्षा में औसतन 14 से 20 फीसदी बच्चे ही पास हो पाते हैं।
भारत के नियमों के मुताबिक, विदेश से की गई उसी मेडिकल डिग्री को मान्यता होगी जो भारतीय एमबीबीएस डिग्री के समतुल्य होगी। यानी उसकी अवधि 54 महीने होनी अनिवार्य है।
विदेश से एमबीबीएस डिग्री लेने वालों को दो बार एक-एक साल की इंटर्नशिप करनी जरूरी होती है। एक बार विदेश में और दूसरी बार भारत आकर।
भारत के नए नियमों के अनुसार, अंग्रेजी के अलावा अन्य विदेशी भाषाओं में ली गई मेडिकल की डिग्री देश में मान्य नहीं होगी। उन्हीं छात्रों को देश में एग्जिट टेस्ट में बैठने की अनुमति होगी जिनकी पढ़ाई अंग्रेजी में हुई हो। रूस, चीन समेत कई देशों में स्थानीय भाषाओं में ही पढ़ाई हो रही है।