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“जिंदगी न मिलेगी दोबारा “

आलेख

“जिंदगी न मिलेगी दोबारा “

दीपशिखा गुसाईं “दीप”

मैं और जीना नहीं चाहता हूं। मैं यहां रहना नहीं चाहता हूं। मैं यह नहीं कर सकता। यह बहुत तकलीफ देता है। यह बहुत कठिन है।अपने अपनों की उम्मीद पर खरा नहीं उतरा, सफल नहीं हुआ परीक्षा में,,,,,

   आजकल लगातार बढ़ती आत्महत्या की खबरें अक्सर ब्यथित कर जाती हैं,,क्यों न हम अपने आस पास जब कोई इस तरह के लोगों के विचार पढ़ते या मिलते क्यों न उनको समझने की कोशिश करें।
   
   मैं और जीना नहीं चाहता हूं। मैं यहां रहना नहीं चाहता हूं। मैं यह नहीं कर सकता। यह बहुत तकलीफ देता है। यह बहुत कठिन है।अपने अपनो की उम्मीद पर खरा नही उतरा, सफल नही हुआ परीक्षा में।।

  हमने अपने जीवन में इस तरह के शब्दों को कितनी बार सुना है। विभिन्न उम्र के लोगों से, विभिन्न जेंडर के लोगों से, विभिन्न नस्ल के लोगों से और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में। वही शब्द, एक जैसी उदासी। निराशा के साथ एक विशिष्ट स्वर जुड़ा होता है। सपाट, मंद और खालीपन के अहसास से भरा।
    आत्महत्या की खबरों को सुनकर एक जाना-पहचाना आंतरिक डर लगने लगता है, जब भी सुनती हूँ या पढ़ती हूँ तो सतर्क हो जाती हूं और समझ जाती हूं कि यह बाहें चढ़ाकर तैयार हो जाने का समय है,,एक इंसान और स्त्री होने के नाते, मेरे पास सवालों की एक सूची है, जो मेरे दिमाग में तैरने लगती है, और कोशिश करती हूँ दर्द के उस स्तर का मूल्यांकन करने की जिससे लोग गुजर रहे हैं।
    एक मनुष्य के रूप में, तब संवेदनाएं हावी हो जाती हैं। हमें कोशिश करनी चाहिए आखिर उस इंसान को जरूरत किस चीज की है,अगर आपके आस पास कोई ऐसा इंसान हो जो बेहद निराश लग रहा हो तो पूछिये उससे कि उसका अंतिम लक्ष्य क्या है? उसको क्या लगता है कि मरने के बाद क्या होता है? आप कल जाएंगे ? आपको कैसा लगेगा ? जब आप मर चुके होंगे, तो इससे क्या अलग महसूस - होगा, जो आप अभी महसूस कर रहे हैं ?'
   एक बार किसी से पूछे थे कुछ सवाल जो डिप्रेशन में था और लगा शायद ये कभी भी जीवन लील सकता अपनी,, जवाब मिला तब कि जीवन मे 'अंधेरा - और शून्य होगा, कोई भावना नहीं होगी, - कोई अस्तित्व नहीं होगा' से लेकर 'मैं स्वर्ग में रहूंगा' तक।
   तब सांत्वना के लिए ही कहा 'ठीक है, अगर आप नहीं जानते तो कैसे गारंटी दे सकते हैं कि वह इससे बेहतर होगा? क्या होगा. अगर वह और बदतर हुआ तो ? क्या आपके अधिकांश डर सच साबित नहीं हुए, तो आप उनसे बच निकले- आपने उनको पार कर लिया। हो सकता है कि आपने कुछ सीखा भी हो या साहसी बनने की अपनी क्षमता को मजबूत किया हो।
   यदि कभी आप अपने अतीत पर नजर डालें, तो देखेंगे कि आपके जीवन में कई डर बुरे पल आये होंगे। हम देखते हैं कि कई बच्चे या अन्य लोग गहरी पीड़ा से गुजर रहे होते।
और तब हम नहीं जानते, आगे क्या होने वाला है। पर उन्हें इतना समझा सकते कि इतनी दूर तक का सफर तय किया है तो आगे भी बुरा ही होगा हम कैसे जान सकते ये सब,,
    मेरा मानना है कि मनुष्य के रूप में हमारी आधारभूत भावना शांति है। मनुष्य का अनुभव संघर्ष और चुनौती से भरा है। हम दुख भोगने के लिए अभिशप्त नहीं हैं।बल्कि मैं मानती हूं कि हम कठिनाई का सामना करना सीखें और उम्मीद को स्टीयरिंग व्हील के रूप में इस्तेमाल करें, जो हमारा मार्गदर्शन करे ... यह जानते हुए कि रोशनी की किरण ठीक सामने नहीं है, पर कहीं आसपास है।
   जितना अधिक हम इस विश्वास को पुख्ता करते हैं और अपनी कार्यप्रणाली को नियोजित करते हैं, उतनी ही जल्दी हम उस शांति की ओर लौटने में सक्षम होते हैं, जो नीचे की परतों में छिपी होती है।
   अगली बार जब आप महसूस करें कि आप किसी भावना में फंस गए हैं, या जो कभी न खत्म होने वाले अनुभव की तरह लगता है, तो सोच-विचार करें- इससे क्या होगा। इससे मुझे क्या मिल सकता है। इससे मुझमें कौन-सी क्षमताएं विकसित होंगी और मैं । खुद की मदद किस तरह कर पाऊंगा। इस दर्द के उस तरफ किस तरह की सुंदरता है। आप इन - सवालों से जूझिए मत, बल्कि उनके सामने समर्पण कर दीजिए।
  खुद के अंदर जिज्ञासा पैदा होने दीजिए। अपने आप को खुला रखिए। आप नहीं जानते कि कोई दिन आपके लिए कौन- से अचम्भे लेकर आ जाए। शायद वह दिन आज हो सकता है, जो सब कुछ बदल दे। या शायद कल। हो सकता है कि आपको उस दिन के बारे में पता नहीं हो, लेकिन जब वह दिन आएगा, आप उसके तैयार रह सकते हैं।

दीप

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