उत्तराखण्ड
मंजू काला की किताब “बैलेड्स ऑफ इंडियाना” का हुआ विमोचन।
किताब ‘बैलेड्स आफ इंडियाना’अल्मंडा टू चेट्टीनाड पितृसत्तात्मक समाज में अपना घर और बच्चों की देखभाल करने के बाद पुरुष के सारे बंधों को सहनशीलता पूर्वक सहकर अपनी शक्ति का समर्थन किये बिना पुरुष को निरंतर यह आभास कराना कि तुम श्रेष्ठ हो। :पूर्व महानिदेशक अनिल रतूड़ी

नदियों को रास्ता बनाने या दिखाने की आवश्यकता नहीं होती है। वह स्वयं अपना रास्ता ढूंढ लेती हैं।कुछ कर गुजरने के जूनून की पराकाष्ठा को चरितार्थ करने और धरातल पर इसकी सुखद परिणति को कल मैंने जीवंत अनुभव किया।पांच साल की कड़ी मेहनत के उपरांत अंततोगत्वा बड़ी दीदी मंजू काला की किताब ‘बैलेड्स आफ इंडियाना’अल्मंडा टू चेट्टीनाड भाग -1 एवं भाग -2 का हिमांतर प्रकाशन के तत्वावधान (प्रकाशक शशी मोहन रवाल्टा) में विमोचन हुआ।विशेष अतिथि पूर्व महानिदेशक अनिल रतूड़ी,मुख्य सचिव आयुक्त राधा रतूड़ी,महावीर रवाल्टा,
डा० सुधारानी(पूर्व कुलपति उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय हरिद्वार)ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।मंच का संचालन असिस्टेंट प्रोफेसर (वर्धा)प्रकाश उप्रेती जी ने किया। किताब के विमोचन के साथ ही विशिष्ट अतिथियों के द्वारा हिमांतर ने साहित्यकारों का सम्मान किया।

देहरादून का पूरा प्रतिष्ठित लेखक वर्ग पुस्तक विमोचन में उपस्थित था।मेरा भी सौभाग्य था कि इन सभी सुधी जनों को सुनने का मौका मिला। विशिष्ट अतिथि अनिल रतूड़ी ने किताब से संबद्ध प्रभावपूर्ण वक्तव्य दिया।उनके अनुसार, ”किताब डायरी भी है,रिपोतार्ज भी है,यात्रा वृतांत भी है,संस्मरण भी है,कहानी भी है और जो इन सब को बनाता है वह लेखिका की किताब में लिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत की संस्कृति एक Iceberg की तरह है जिसे लेखिका ने पकड़ने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि मंजू काला कि किताब ‘बैलेड्स आफ इंडियाना’अल्मंडा टू चेट्टीनाड पितृसत्तात्मक समाज में अपना घर और बच्चों की देखभाल करने के बाद पुरुष के सारे बंधों को सहनशीलता पूर्वक सहकर अपनी शक्ति का समर्थन किये बिना पुरुष को निरंतर यह आभास कराना कि तुम श्रेष्ठ हो, “अलमंडा टू चेट्टीनाड” इस संदर्भ में भी लेखिका की बड़ी उपलब्धि है कि दुर्भाग्यवश इस पितृसत्तात्मक समाज में अपना घर और बच्चों की देखभाल करने के बाद पुरुष के सारे बंधों को सहनशीलता पूर्वक सहकर अपनी शक्ति का समर्थन किये बिना पुरुष को निरंतर यह आभास कराना कि तुम श्रेष्ठ हो, के बावजूद इतनी वृहद किताब दो खंडों में लिखना प्रशंसनीय है वह भी ऐसे विषय पर जिसे समेटना और जिसका समावेश बहुत मुश्किल है।”
मुख्य आयुक्त राधा रतूड़ी ने किताब के संदर्भ में कहा कि इस किताब में विशाल भारत की विविधता,प्रत्येक अंचल के भूगोल, इतिहास खान-पान,वस्त्र-जेवर,गीत,संगीत उससे जुड़ी कथाओं का अद्भुत विवरण है।इन किताबों को स्कूल,कालेज में रखे जाने के साथ -साथ इन पर शोध होना चाहिए।”
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुधारानी ने कहा “ लोक जीवन से शुरू करके,अपनी मिट्टी की सुगंध से शुरू करके लेखनी को विराट आयाम देना ही इस पुस्तक की विशेषता है।
उन्होंने कहा मंजू काला की किताब का अंग्रेजी में भी अनुवाद होना चाहिए ताकि आज के युवा इस किताब को पढ सकें। सुधा रानी ने कहा लोक-संस्कृति मनुष्य के साथ-साथ चलती है।किताब में चित्र भारतीय संस्कृति की संपदा के मूर्त रूप का परिचय कराती हैं। यह लेखक की संवेदना ही जो कहां कब उभरकर उसकी लेखनी को साकार कर दे यह स्वयं लेखक को भी नहीं पता होता है।
यह किताब विविधता में एकता का दर्शन कराती है।
विशिष्ट अतिथि महावीर रवाल्टा ने कहा, “मंजू काला कि किताब बौद्धिक आतंक नहीं उनके गहन दृष्टिकोण का प्रदर्शन है।”उन्होंने कहा लिखने के लिए बौद्धिकता नहीं दृष्टि समृद्ध होना ज़रूरी है।महावीर रवाना ने हिमांतर पत्रिका की आरंभिक यात्रा,उसका समाज में योगदान उसका उद्देश्य, किताब के विषयों उसमें लिखने वाले साहित्यकारों से सभी को अवगत कराया। साथ ही कम पाठक होने के बावजूद किताबों के छपने में वृद्धि को समाज के लिए अच्छा संकेत बताया।उन्होंने यह भी कहा कि आज के समय में संवेदनाओं को खोजने की समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
कार्यक्रम के संचालक प्रकाश उप्रेती ने कहा, “इस किताब से होकर गुजरना कालसी से कर्नाटक तक के भूगोल को सिर्फ़ नापना नहीं है।इस किताब से गुजरना वह यात्रा है जहां आप भीतर से समृद्ध होते चले जाते हैं। समृद्ध होना सांस्कृतिक तौर पर समृद्ध होना है।समृद्ध होना आहार -व्यवहार, वैचारिक तौर पर समृद्ध होना है। समृद्ध होना उस लोक थाती को जानना है जिसे हम धीरे-धीरे भूलते जा रहे हैं।यह समृद्ध होना उस जगह-स्थान वहां की बौद्धिक संपदा से भी परिचित होना है। मंजू काला कि किताब भारत के उन हिस्सों में ले जाती है जिनकी अपनी खूबसूरती है।”
लेखिका की बहिन सुनीता भट्ट पैन्यूली ने बताया कि लेखिका ने अपनी किताब के बारे में अपने लोक-जीवन, अपनी संस्कृति,अपने परिवेश अपने परिवार, विशेषकर अपने पिताजी जिनको उन्होंने यह किताब समर्पित की है जिन्होंने उनको लिखने के लिए प्रेरित किया और अपनी लोक-माटी,संस्कृति के सानिध्य के साथ लिखने के लिए विविध रंग दिये, पर अपना वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि पुस्तक विमोचन में बहुत से लेखक मित्रों से बात हुई।उनकी किताबें और आजकल क्या लिख रहे हैं पर हम सब ने परस्पर चर्चा की।

