आलेख
मिन क्य कन ?
(गढ़वाली आलेख)
“हरदेव नेगी“
व्यखुनि का बगत ब्वारी ने अपनी सास को च्या का गिलास दिया, सासु च्या का गिलास लेकर डिंड्याळै में चली गयी पीने को, तभी अचानक च्या का गिलास उमा देवी के हाथ से छूट गया,,, मन ही मन संकोच करने लगी अचंणक ये फरकन्द किलै हुई होगी,,, कुछ अपसगुन तो नहीं हो गया,,, या फिर अब उमर हो गई जो मि गिलास भी नहीं थाम पा रही हूँ,,, चार बिसी उमर पर भी उमा देवी पर खूब सक्या थी, साळि – गुठ्यार, गोरू – भैंसो दगड़ी भी चली जाती थी, हात खुटा भी थतराते नहीं थे,,, जब उमा देवी 40 पर थी तभी रान – मूंड (विधवा) हो गई थी, पर पहाड़ की तरह कठोर सरील वाली थी उमा देवी,, खानदानी परिवार की थी, नाक से नाक मिलाकर हिटने वाली, जवैं के जाने के बाद एक भी रुंवासी नहीं हुई,, खुद परिवार को अपने कंधे पर उठाया और बच्चों को पाल पोस कर काबिल बनाया।।। पर इनती कठोर सरील वाली उमा देवी अचानक संकोच क्यूँ करने लगी? ब्वारी को धै लागयी और एक गिलास और च्या का मंगाया, फिर मुंड से सापे को छ्वोड़ खोला और उससे ताते च्या की गिलास पकड़र घुटकने लगी,,, रात को जैंसे ही रोटी बनाने समय चूल्हे पर सरसों के तेल को गरम करने के लिए क्वीलों में रखा और जैंसे ही अपने घुटनों पर तेल मालिस करने के लिये गरम तेल की कटोरी कपड़े के सहारे पकड़ने लगी, वो भी नीचे गिर गया,,, खुद को ही कोसने लगी,, क्य व्हे मि संणि आज,,, च्या की भि फरकंद, और तेल की भी,,,, फिर रात का खाना खाने के बाद सोने चली गयी,,,, रात भर इसी संकोच में नीन्द नहीं आई,,,,,,,,,!
सुबेर उठे, द्यो द्यबतों को अगरबत्ति बाळी और, च्या पीने के लिए खौळा के तिरवाळ मैं बैठ गयी,,,, उधर डाल पर एक कौवा बासने लगा, उमा देवी ने उसे ढुंग्याया,, फिर सवाल किया कि कुछ त् व्हे छैंच?,,,,, सुबेर का घाम गाड तरके पल्या छाला के गाँव पहुँच गया, और बगत भी 10 बजे वाला हो गया,, तभी बाजार से उमेद सिंह दूध देके आ रहा था, बड़े साहस के साथ बोला ऐ बो (बौजी – भाभी) एक रैबार चा आयूँ,,, क्य रैबार द्यूर जी? क्य ब्वन,, कन के ब्वन? बो त्येरी छ्वोटी भुली का सि ब्याळि दोफरा में स्वर्ग बास व्हे गिन बल,,, ये सुनते ही उमा देवी के आँखो में आँसुओं का उमाळ आ गया, धो संणि खुद को थामा और साफा के छोर से आँसू फौंजे,,,, दोफरा का खांणू छ्वोड़ के अपनी भुलि के गाँव को निकल गई, जो लगभग 14 किमी दूर था, पर उमा देवी पैदल का बाटा से चली गई सौंगू भी था,,, गाड़ी से सरील खराब होता था,,, लगभग पाँच किमी सौंगा बाटा हिटकर उमा देवी अपनी छ्वोटि भुलि सरला के गाँव पहुँची,,, सरला की उमर लगभग 70 थी,,, और सरला के “बुड्या” की उमर 75 फर,,,
उमा देवी जैंसे भुलि के घर के चौक के पास पहुँची, देखा कि भुलि ड्येळि मैं सौल लेकर बैठी हुई थी, सूरत उड़ रखी थी,,, चेहरा बिलकुल डुबदा घाम की तरह हो रखा था, सरला की नजर जैंसे दीदी पर पड़ी, हे दीदी – हे दीदी करते हुए सरला का दीदी को भैंटते ही भूत आ गया,,, आँसुओं की बहती गंगा के बीच उमा देवी अपनी भुलि का कपाळ मलास रही थी, सरला रोते हुये बोली, परसी तक ठीक थे, बुखार भी नहीं था, हौळ भी लगाया,,, कखि बटि निरभगी मनखी बिमार नहीं था,,,,,! नाती-ननतिनों को इस्कूल भी छोड़ने जा रहे थे,,,, उमा देवी कहने लगी ना – रो, ना रो, यखि मु तक था उना दाना पानी, तैंका अग्वाड़ी कौन जीता,,, सरील हल्कू मत कर,,,, जांण वाळु चलिगे,,,! सरला के आँसू थम रहे थे,, रोते-रोते ही बोली कन निरदैयी जोग हैं मेरे छ्वोरों के?,,, मुख जातरा करने का जोग- भाग भी नहीं रहा उनका,,,,, रात मा बरमंड पिड़ा ब्वोलि तौन, अर् सुबेर हौंद बार बिस्तरे मा हमेशा ता सुनिन्द स्ये गैनी,,, एक सु दूर बौडर चा एक सु बम्बे,,,,,! परस्यौ तक औला बल घौर,,,, रोते हुई सरला बोली अब मिन क्य कन? उमा देवी ने समझाया क्या त्वेन कन, क्य मिन कन? जु भाग छो लिख्यूँ सु कन वाळान् कैली,,,,,,! भला करम रैन बुड्या जु बिना बिमार, बिना भोग्याँ कु लाड़िक ब्वारी सैंती पाळी अपड़ी जातरा पर चली गे,,,, त्येरु म्येरु जोग एक जन ही हो गया,,,,, मेरा नौनौं ने भी पिताजी का सुख / छत्र छाया नहीं देखी,,,, तेरा नौनौ ने देखि पर आखिरी मुख जातरा नहीं देखी।।।
बअब रो ना,,, सरील झुरो ना,,, उमा ने ब्वारी को धै लगाया और पानी का गिलास भुलि को पिलाया।।और कहा मिन भी क्य कन
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हरदेव नेगी गुप्तकाशी(रुद्रप्रयाग)