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प्रतीक्षाओं के पल
राकेश राज
अच्छा सुनो ना…..
यूँ तो प्रेम की सर्वोत्तम अनुभूतियों से लबरेज़ हैं
तुम्हारे प्रतीक्षाओं के ये पल….
लेकिन ये प्रतीक्षाएँ….सीमाएं मांगती हैं..!!!!
न जाने कब छंटेंगे….अन्तस् में छाए…
अवसाद और पीडाओं के ये सभी बादल…..
न जाने कब गूंजेगी….
मेरे घर की देहरी पे…..
तुम्हारे आनें की दस्तक……
न जाने कब….
नाम लिक्खुंगी मैं अपना…
तुम्हारे नाम के साथ….
और मुस्कुरा लूँगी उस एहसास पे….!!
तुम्हारे बिन…के जैसे एक पहेली सी हो जाती हूँ मैं….
एक अधूरी सी कल्पना ….. और जिसे तुम पूर्ण करते हो बस तुम…!!
तुम्हारे बिन के जैसे नायाब उलझनों की मुक्कमल किताब सी हो जाती हूँ मैं…!!!
तुम्हारे बिन..के जैसे उम्मीद की अर्गलाओं के भीतर सिसकती आह! …जैसे अतीत की मञ्जूषा में दबा हुआ कोई दर्द…के जैसे भरे सहरा में अपने अस्तित्व को सिद्ध करता हुआ चिनार का कोई दरख़्त..!!
तुम्हारा साथ… युगों में परिवर्तित कर देता है….पल भर की इस मधु-बेला को ….!!!
तुम्हारे साथ की पूर्णता….रिक्त करती है मुझे….. उलझनों के झंझावातों से….मुक्त करती है मुझे भव के भ्रम जाल से….!!!
तुम्हारा साथ ….के जैसे डायरी के दो पन्नो के पैरहन से झांकती गुलाब की सूखी पंखुडियां…और उन पंखुड़ियों से रेशा रेशा रिसता तुम्हारा इश्क़….जो बारहा….गुम सा कर जाता है मुझे….तुम्हारे यादों की पुरवाई में….!!!
तुम्हारा साथ … के जैसे जेठ की ताप में हो शीतल मेघों का आच्छादन…!!!!
तुम्हारा साथ….के जैसे गिलहरी सी धीरे धीरे उतरती….जाड़ों की परितप्त धुप….!!!
तुम्हारा साथ…..के जैसे सरसों के फूल सरीखे शासनपत्र पर प्रकृति के हस्ताक्षर समान ओस की खिंची हुई रेखाएं…!!
तुम्हारा साथ ….के जैसे क्षितिज के धरातल पर चलता हुआ कोई चाँद….!!!
अच्छा सुनो न….
अबकी जो आना….
तो बैठना कुछ देर…मेरे सिरहाने…!!!
सौंप देना मेरी अंजुरी में …..अपने बाकी बचे हुए तमाम वक़्त ….!!!
के कहनी है तुमसे….
कई सारी….अनकही ….अनसुनी….अनसुलझी सी कहानीयां…!!!
सुनानी है तुम्हे…..
तुम्हारे बिन गुजारे एक एक पल की व्यथाएं……!!!!
साझा करनी है तुमसे….
हर एक ख्वाब….जो देखी है मैंने उनींदी आँखों से ….!!
दिखानी है तुम्हें….
तुम्हारे आलिंगन के लिए आकुल नयनों से बहते नीर…
और उस नीर से सिंचित ख्वाबों के अंश….
जिसे मेरी यादों के झीने जालों में छोड़ जाते थे तुम..!!!
राकेश राज ….….✍️