आलेख
“मम्मी की पाठशाला”
संजीत ‘समवेत’
राहुल को स्कूल में पढ़ाई जाने वाली चीजें समझ नहीं आती, वो अक्सर खुद को उलझा हुआ पाता और हर रोज किसी न किसी टीचर की डांट खाता, किसी एक टीचर के सब्जेक्ट में जैसे तैसे रट कर याद कर भी लेता तो दूसरे टीचर के सब्जेक्ट में उसे सुनना ही पड़ता,वो उदास रहने लगा सुबह बेमन स्कूल जाता और चेहरे को लटका कर घर आ जाता, जब उसका रिजल्ट आया तो प्रिंसिपल मैंम ने उसकी मम्मी को स्कूल में बुलाया और कहा – ” आपका बच्चा बिलकुल नालायक है इसे कुछ आता ही नहीं ये देखिये इसके मैथ्स का पेपर इसे यही पता नहीं स्क्वायर कैसा होता है या सर्किल कैसा होता है सब गलत कर रखा है।
मैं ऐसे नालायक बच्चों को स्कूल में नहीं रख सकती इससे हमारे स्कूल का नाम भी ख़राब होगा” राहुल की मम्मी खामोश थी फिर सोच समझ कर उन्होंने कहा- ” जी ठीक ” और वो राहुल को वहां से लेकर चली गयी, प्रिंसिपल मैंम हैरान थी की इन्होने सफाई में कुछ नहीं कहा,
घर पहुंचते ही राहुल मम्मी के पास आया और पूछने लगा- ” मम्मी क्या मैं सच में नालायक हूँ ? क्या मै अब स्कूल नहीं जाऊँगा?
तो मम्मी बोली- ” नहीं बच्चे तुम तो बहुत तेज तुम्हारा एडमिशन मैं दूसरे स्कूल में करवा दूंगी लेकिन उससे पहले तुम्हे मेरे स्कूल में पढ़ना पड़ेगा “
आपके स्कूल में ? राहुल ने पूछा | हाँ मेरे स्कूल में कल से मैं तुम्हे पढ़ाऊंगी , बहुत मजा आएगा। अगले दिन जब मम्मी नाश्ते में ब्रेड सेक रही थी तो उन्होंने राहुल को पास बैठाया और कहा इस ब्रेड को देखो ये चारों साइड से बराबर है न इसी प्रकार की आकृति को स्क्वायर कहते हैं. और देखो जो ये रोटी बनाई है मैंने कैसे बनी है , तो राहुल बोल पड़ा- बिलकुल गोल। तो मम्मी मुस्कुराते हुए बोली बिलकुल सही इसी को कहते है सर्किल, राहुल को बहुत मजा आ रहा था कभी मम्मी उसे पौधों की विशेषताएं बताती तो कभी ग्रहों की कहानी सुनाती तो कभी कहती गिनो जरा आज हमने कितने पौधे लगाए राहुल झट से गिन लेता राहुल घर में रहकर वो सब सीखने लगा जो स्कूल में उसे तकलीफ देता था अब उसे ऐसा महसूस हो रहा था की प्रकृति में मौजूद हर चीज उसे कुछ सिखा रही हो वो मम्मी से बहुत से सवाल करने लगता जैसे आसमान नीला क्यों? बादल सफेद क्यों ? नाव कैसे तैरती ? कुछ सवाल जिनके जवाब मम्मी को आते मम्मी बताती और जिनके जवाब मम्मी को पता नहीं होते मम्मी इंटरनेट की सहायता से पता करके बताती,
इसी दौरान मम्मी ने राहुल का एडमिशन दूसरे स्कूल में कर दिया कुछ दिन बाद बता चला की बहुत सारे स्कूलों ने मिलकर एक विज्ञान मेले का आयोजन किया है जिसमे की बच्चों को कुछ क्रिएटिव मॉडल्स बना कर लाने थे, जो प्रथम आता उसके लिए एक चमचमाती ट्रॉफी और बहुत से उपहार रखे गए थे,
सभी मॉडल्स देखने के बाद जितने भी जज थे उन्होंने विजेता का नाम मंच संचालक को सौंपा, सभी स्कूलों के प्रिंसिपल वही मंच पर बैठे थे, तभी मंच संचालक ने प्रथम पुरूस्कार के लिए राहुल का नाम लिया, राहुल बहुत खुश हुआ उसने लेंस का प्रयोग करके एक बेहतरीन मॉडल तैयार किया था,
राहुल को ट्रॉफी देने के लिए राहुल पहले जिस स्कूल में पढ़ता था वहां की प्रिंसिपल मैंम को बुलाया गया, मैंम राहुल को देखकर हैरान भी थी और उन्हें शर्मिन्दगी भी महसूस हो रही थी कि जिस बच्चे को उन्होंने नालायक बोल कर स्कूल से निकाला था, वो आज उसी को प्रथम पुरूस्कार दे रही थी.
कार्यक्रम निपटने के बाद प्रिंसिपल मैंम राहुल की मम्मी के पास आयी और बोली- ” आपके बच्चे में इतना परिवर्तन कैसे मुझे तो विश्वास ही नहीं था ये ऐसा कुछ कर पायेगा “. राहुल की मम्मी ने आज भी बहुत कम बोला लेकिन वो सुनकर प्रिंसिपल मैंम का सर झुक कर नीचे हो गया, उन्होंने कहा- ” मुझे विश्वास था और आपको भी करना चाहिए था”.
संजीत ‘समवेत’, नरेंद्रनगर (टिहरी गढ़वाल )