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विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में हटाये गए कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं।

उत्तराखण्ड

विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में हटाये गए कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं।

संवादसूत्र देहरादून: उत्तराखण्ड विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में हटाये गए तदर्थ कर्मियों को सुप्रीम कोर्ट से भी कोई राहत नहीं मिली। गुरुवार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में न्यायाधीश ने हाईकोर्ट की डबल बेंच के फैसले को बरकरार रखते हुए तदर्थ कर्मियों की याचिका को खारिज कर दिया।

तदर्थ कर्मियों की ओर से वकील विमल पटवालिया ने कोर्ट में पेश याचिका पेश की। न्यायाधीश संजीव खन्ना व सुंदरेश ने मात्र 2 मिनट में ही याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही वकील की ओर से 2016 से पहले की गई नियुक्तियों का मसला उठाने पर न्यायाधीश ने बेहद कड़े शब्दों का प्रयोग किया।इस मामले में तदर्थ कर्मियों की ओर से मनु सिंघवी को भी पैरवी करनी थी। लेकिन वो कोर्ट पहुंच नहीं पाए।

विधानसभा सचिवालय की ओर से वकील अमित तिवारी ने पैरवी की। इस पूरे मामले में भारत सरकार में सालिस्टर जनरल तुषार मेहता ने कई पहलुओं पर सटीक राय दी। सुप्रीम कोर्ट के आज के इस फैसले के बाद 228 तदर्थ कर्मियों को गहरा झटका लगा है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पुष्टि करते हुए स्पीकर ऋतु खंडूडी ने कहा कि उन्होंने तदर्थ कर्मियों के मामले में किसी भी प्रकार का पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर निर्णय नहीं लिया था। वे सिर्फ न्याय के सिद्धांत पर चल रही थी। और कोटिया कमेटी ने एक एक पहलु पर विचार करके ही रिपोर्ट बनाई थी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्याय की जीत बताया।

गौरतलब है कि बीते 24 नवंबर को हाईकोर्ट ने स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी के 228 तदर्थ कर्मियों को हटाने सम्बन्धी फैसले को सही ठहराते हुए सिंगल बेंच द्वारा तदर्थ कर्मियों को दिए गए स्टे को खारिज कर दिया था

इसके बाद तदर्थ कर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली थी। गुरुवार को आये सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद 228 तदर्थ कर्मियों को भारी झटका लगा। इन तदर्थ कर्मियों की नियुक्ति 2016 से 2021 के बीच हुई थी। पूर्व विस अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल व प्रेम चंद अग्रवाल के कार्यकाल में हुई थी।

कुंजवाल ने अपने करीबी रिश्तेदारों की बैकडोर से भर्ती कर दी थी। भाजपा,कांग्रेस समेत अधिकारियों ने भी नियमों के विपरीत अपने रिश्तेदार व करीबी विधानसभा में नियुक्त करवा दिए थे।

इसी साल जुलाई में uksssc भर्ती घोटाले के साथ ही विधानसभा भर्ती घोटाला भी खूब चर्चाओं में रहा। इस घोटाले में भाई भतीजावाद व दलाली की खबरें भी खूब चर्चाओं में है।

गड़बड़ी उजागर होते ही सीएम धामी ने स्पीकर को पत्र लिख सभी नियुक्तियां रद्द करने को कहा था।

हटाये गए तदर्थ कर्मियों को आज सुप्रीम कोर्ट से झटका लगने के बाद अब कई ढकी छिपी कहानियां बाहर आने की पूरी पूरी संभावना जताई जा रही है।

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश के अंदर पूर्व विधानसभाध्यक्ष कुंजवाल व मंत्री प्रेमचन्द अग्रवाल की स्थिति भी विकट होने की संभावनाहै।

हालांकि बीजेपी ने अभी तक तो कोई कार्यवाई भर्ती करने वालों पर नहीं की हैं साफ हैं नैतिकता RSS ने दिखाई लेकिन बीजेपी ने कोई नैतिकता नहीं दिखाई मंत्री कुर्सी पर बरकरार हैं संगठन महामंत्री भी पद पर बने हुए हैं क्या बीजेपी इन्हें पद से हटाएगी

उच्चतम न्यायालय का फैसला अधूरा न्याय -गरिमा मेहरा दसौनी

उत्तराखंड विधानसभा में बैकडोर से की गई भर्तियों के प्रकरण में आज सर्वोच्च न्यायालय ने भी उच्च न्यायालय के निर्णय को सही ठहरा दिया है।
उपरोक्त फैसला आने पर उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने प्रतिक्रिया दी है ।
दसौनी ने कहा कि निश्चित रूप से उच्चतम न्यायालय के फैसले का पूरा सम्मान है परंतु कांग्रेस पहले दिन से यह कहती आई है की यह लड़ाई कानूनी या वैधानिक नहीं थी ,यह लड़ाई नैतिकता की लड़ाई थी।
दसौनी ने विधानसभा स्पीकर के भ्रष्टाचार पर एक तरफा चोट करने पर सवाल उठाया है ।

दसोनी ने कहा कि निश्चित रूप से यह न्याय अधूरा है, पक्षपातपूर्ण है ।
दसोनी ने कहा कि यदि बैक डोर नियुक्तियां पाने वाले गलत हैं तो बैक डोर नियुक्तियां करने वाले सही कैसे हो सकते हैं? दसोनी ने कहा कि नैतिकता के आधार पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तो विधानसभा में अपने सगे संबंधियों को बैक डोर से नियुक्ति दिलाने वाले अपने दो शीर्ष पदाधिकारियों को उत्तराखंड से बेदखल कर दंडित कर दिया परंतु भाजपा संगठन अभी भी अपने नेताओं जिनका नाम सीधे तौर पर इन नियुक्तियों में आ रहा है उन पर कार्यवाही करने में असक्षम साबित हुई है।

दसोनी ने कहा की उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय एक तरफ विधानसभा कर्मचारियों के लिए तो झटका है ही वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा इन नियुक्तियों में विचलन के प्रयोग पर भी सवाल उठाता है।
दसौनी ने कहा कि जो नियुक्तियां आज निरस्त हुई हैं वह मुख्यमंत्री के आदेशों पर हुई हैं वही लगातार विधानसभा स्पीकर का मुख्यमंत्री के आदेश पर ही सवाल खड़ा करना बताता है कि भारतीय जनता पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई अपने चरम पर है।
दसोनी ने कहा कि जिन नेताओं ने अपने रसूख और संबंधों के आधार पर इन कर्मचारियों को नियुक्त किया था वह आज सत्ता की मलाई चाट रहे हैं और उनका बाल भी बांका नहीं हुआ।
भाजपा राज में कर्मचारियों पर तो भ्रष्टाचार के नाम पर गाज गिराई गई है परंतु अपनों को बड़ी सफाई से बचा लिया गया है यह निश्चित तौर पर अनैतिक है।
दसौनी ने कहा की जिस कोटिया कमेटी की जांच रिपोर्ट के बाद स्पीकर ने अलग-अलग समय पर असंवैधानिक तरीके से भर्ती हुए 228 कर्मचारियों को बर्खास्त किया था उसने शायद आधी ही रिपोर्ट तैयार की।
दसौनी ने कहा की कोटिया कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक की जानी चाहिए ताकि पता चल सके कि क्या जांच सिर्फ असंवैधानिक तरह से नियुक्ति पाए हुए लोगों पर हुई है या नियुक्ति करने वालों पर भी कोटिया कमेटी ने कोई होमवर्क किया?

दसौनी ने कहा कि आज राज्य को जिस तरह से बेरोजगारी के दंश ने जकड़ा हुआ है उसमें ना चाहते हुए भी कर्मचारी नौकरी देने वालों के बहकावे में फंस गए।
दसौनी ने कहा की निश्चित ही गलत को सही नहीं ठहराया जा सकता परंतु जिन लोगों ने भी इन कर्मचारियों को नियुक्ति दी थी वह लोग भी इस अपराध में बराबर के हिस्सेदार हैं ।
आज विधानसभा कर्मचारी जीवन के उस दौराहे पर खड़े हैं जहां वह नौकरी से तो हाथ धो ही बैठे हैं परंतु नौकरी पाने के लिए उन्होंने पता नहीं अपना और क्या-क्या गंवा दिया।
जिन लोगों ने नियुक्तियां दी उन लोगों की तो पौ बारह हो रखी है जो कि निश्चित तौर पर निरस्त हुए कर्मचारियों के साथ एक भद्दा मजाक है।

24 नवंबर 2022- डबल बैंच ने स्पीकर के फैसले ओर लगाई मुहर

विधानसभा बैकडोर भर्ती मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने तदर्थ कर्मियों को मिले स्टे पर रोक लगा दी थी।

विधानसभा से तदर्थ कर्मचारियों को हटाने के आदेश पर हाईकोर्ट की सिंगल बैंच द्वारा रोक लगाने संबंधी आदेश को हाईकोर्ट की डबल बैंच ने बीते 24 नवंबर को निरस्त कर दिया था।

सितम्बर महीने में विधानसभा सचिवालय में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा की गई 150 और प्रेमचंद अग्रवाल द्वारा की गई 78 तदर्थ नियुक्तियों को वर्तमान विधासनभा अध्यक्ष ऋतु खंडूड़ी की सिफारिश पर शासन ने रद कर दिया था, जिसके बाद इन कर्मचरियों को नौकरी से हटा दिया गया था।

इस फैसले के खिलाफ ये कर्मचारी हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट में न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने विधानसभा सचिवालय से हटाए गए कर्मचारियों की बर्खास्तगी पर अग्रिम आदेश तक रोक लगा दी थी। इस आदेश के खिलफ सरकार डबल बैंच में गई थी।

गौरतलब है कि हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने तदर्थ कर्मियों को हटाए जाने को गलत बताते हुए स्टे दे दिया था। एकल बैंच के स्टे सम्बन्धी फैसले के विरोध में विधानसभा प्रशासन ने डबल बेंच में अपील की थी।

इस अपील पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर ऋतु खंडूडी के फैसले को सही ठहराते हुए स्टे खारिज कर दिया। उल्लेखनीय है कि पूर्व आईएएस कोटिया की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट के बाद विस अध्यक्ष ऋतु खण्डूड़ी ने सितम्बर माह में 2016 से 2021 तक विधानसभा में नियुक्त हुए 228 तदर्थ कर्मियों को हटा दिया था।

इस फैसले के विरोध में तदर्थ कर्मी हाईकोर्ट से स्टे ले आये थे। लेकिन उन्हें विधान सभा में जॉइन नहीं करवाया गया। हाईकोर्ट की डबल बेंच ने स्टे पर रोक लगाते हुए तदर्थ कर्मियों को झटका दे दिया।

उत्तराखंड विधानसभा में हुईं भर्तियों की जांच के लिए बनी तीन सदस्यीय विशेषज्ञ जांच समिति की रिपोर्ट की सिफारिश के आधार पर 2016 में हुईं 150 तदर्थ नियुक्तियां, 2020 में हुईं छह तदर्थ नियुक्तियां, 2021 में हुईं 72 तदर्थ नियुक्तियां और उपनल के माध्यम से हुईं 22 नियुक्तियां रद्द की गई थी।

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