आलेख
सिर्फ अक्षर ज्ञान नहीं,जो आत्मा को भी गढ़े वो ही शिक्षक।
【शिक्षक दिवस स्पेशल】
✍️✍️राघवेंद्र चतुर्वेदी
“शिक्षक सिर्फ पढ़ाने वाले नहीं होते, वे हमारी आत्मा को गढ़ते हैं। वे जीवन की कठिनाइयों को ऐसे सहज बना देते हैं कि हमें कभी एहसास ही नहीं होता कि हम किस तपस्या से गुज़र रहे हैं।“

आज का दिन जैसे साधारण होते हुए भी असाधारण है। सुबह की हल्की धूप जब खिड़की से भीतर आई, तो उसने मुझे यह याद दिलाया कि आज तो शिक्षक दिवस है। अचानक ही भीतर एक अनजानी हलचल उठ गई। जैसे कोई अदृश्य हाथ मेरे दिल को छूकर मुझे उन गलियारों में ले गया हो, जहाँ कभी मेरी दुनिया किताबों, ब्लैकबोर्ड और चॉक की धूल से सजी रहती थी।
आज जब मैं ये लिख रहा हूँ, तो मन बार-बार एक ही बात सोच रहा है। शिक्षक सिर्फ पढ़ाने वाले नहीं होते, वे हमारी आत्मा को गढ़ते हैं। वे जीवन की कठिनाइयों को ऐसे सहज बना देते हैं कि हमें कभी एहसास ही नहीं होता कि हम किस तपस्या से गुज़र रहे हैं।
बचपन की यादें किसी चलचित्र की तरह आँखों के सामने उभर आती हैं। सुबह-सुबह बस्ता टाँगे, किताबों का बोझ उठाए, तेज़ कदमों से भागता मैं, और स्कूल की घंटी बजते ही कक्षा में पहुँच जाने का जुनून। वही मासूम सा जीवन, जहाँ सबसे बड़ी चिंता होमवर्क पूरा न होने की होती थी। और वही क्षण भी जब अध्यापक की डाँट दिल को चुभ जाती थी। उस समय समझ नहीं आता था कि ये क्यों ज़रूरी है, पर आज जब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो समझ आता है कि वह डाँट असल में जीवन की सबसे बड़ी सीख थी।
अब समझ आता है कि शिक्षक वह दीपक हैं, जो खुद जलकर दूसरों को रौशनी देते हैं। वे अपने सुख-दुख, अपनी थकान और अपनी तकलीफ़ को भुलाकर हमें आगे बढ़ाना चाहते हैं। उनकी मुस्कान में जो अपनापन होता है, उसकी बराबरी कोई और रिश्ता नहीं कर सकता। वे हमें सिर्फ किताबों की बातें नहीं सिखाते, बल्कि जीवन में कैसे गिरने के बाद उठना है, कैसे मुश्किल हालात में भी डटे रहना है ये जीने की कला भी सिखाते हैं
मुझे याद है मेरे एक अध्यापक हमेशा कहा करते थे “गलती करना बुरा नहीं है, गलती से सीख न लेना बुरा है।” तब लगता था कि ये बस कहने की बातें हैं, लेकिन आज समझ आता है कि जीवन की असली सफलता उसी से शुरू होती है।
आज शिक्षक दिवस पर मेरे दिल में हर उस अध्यापक का चेहरा कौंध रहा है, जिसने मुझे सही राह दिखाई। कोई मुझे पढ़ाई में आगे बढ़ाता रहा, कोई मेरी लेखनी को सँवारता रहा, कोई मेरी चुप्पी को पहचान कर मुझे बोलने की ताक़त देता रहा। और कई ऐसे भी रहे, जिनकी डाँट ने मुझे और मज़बूत बनाया।
कभी-कभी लगता है कि अगर जीवन एक अधूरा चित्र है, तो शिक्षक उसके रंग हैं। अगर जीवन एक कविता है, तो शिक्षक उसकी लय हैं। अगर जीवन एक नदी है, तो शिक्षक उसका किनारा हैं, जो हमें बहाव में बह जाने से रोकते हैं।
आज के दिन लिखते हुए मेरे भीतर गहरी भावनाएँ उमड़ रही हैं। आँखों में आँसू भी हैं, और होंठों पर मुस्कान भी। आँसू इस बात के कि शायद कभी उन सबको दिल की गहराई से धन्यवाद कहने का मौका नहीं मिला, और मुस्कान इस बात की कि उन्होंने मुझे ऐसा बनाया कि आज मैं अपने शब्दों से ही उनकी महिमा का गुणगान कर पा रहा हूँ।
शिक्षक दिवस दरअसल एक अवसर है अपने भीतर झाँकने का, यह समझने का कि हम जितना भी जानते हैं, जितना भी समझते हैं, उसके पीछे कितनी आत्माएँ अपना जीवन समर्पित कर चुकी हैं।
आज मैं उन सबके नाम एक मौन प्रार्थना करता हूँ। मेरी कलम चाहे जितना भी लिखे, वह कभी उनके ऋण से मुक्त नहीं हो सकती। मेरे जीवन का हर कदम, हर निर्णय, हर सफलता उनकी छाया के बिना अधूरी है।
मैं धन्यवाद करता हूं मेरे गुरुजनों का। क्योंकि उनकी डाँट, उनका प्यार,उनकी शिक्षा, ये सब मेरे जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति है। उन्होंने कुम्हार की तरह मिट्टी को संवारकर एक सुंदर रूप देते हुए जिम्मेदार इंसान बना दिया।
राघवेन्द्र चतुर्वेदी ✍️

