उत्तराखण्ड
अलौकिक श्रीनगर गढ़वाल हमारा।
कविता
“हरदेव नेगी“
ये प्रकृति की सतरंगी चाल
दूर चमकता नन्दा हिवांळ,
वो बदल रहा अनोखा स्वरूप,
कितना अलौकिक श्रीनगर गढ़वाल।।
विद्या का है यह भव सागर,
धन्य हो जाता यहाँ शिक्षा पाकर,
गढ़ देवो की यह भूमि है,
जय धारी माँ, जय कमलेश्वर।।
ऊँचे नीचे पहाड़ों की ढाल,
अलकन्दा का है शीतल छाल,
पावन पर्व वैकुंठ महोत्सव,
गढ़ संस्कृति का है यह उत्सव।।
हरदेव नेगी गुप्तकाशी(रुद्रप्रयाग)