उत्तराखण्ड
पश्मीना…प्रेम का💜
राकेश राज
तुम रोज चले आना यूँ ही
मेरे प्रेम का पश्मीना …
अपने काँधे लिए……!!!
मैं वहीँ मिलूंगी रोज
तुम्हारे इंतज़ार में….!!!
थोडा रुकना….
सकुचाते हुआ मुझे साथ चलने को कहना
थाम कर हाथ मेरा…
ले आना खुद के करीब…….!!!
निःशब्द से तुम ……
मैं भी चुप्पियों को अपने ज़ेवर कर लुंगी…
हम और तुम
साथ साथ …
गूंथ कर तुम्हारे नज़र की लड़ियों में
अपने नैनों के मोती..
रात के घरौंदे में….
सितारों के झरोखे झांकेंगे….
अच्छा सुनो…
जब जाना..तो यूँ ही न चले जाना
सहला जाना तुम….
मेरी यादों के श्वेत पखेरुओं को…
कह जाना…
हृत्पिंड में उठते अनकहे भाव
तरंगा जाना…
दिव्य संतूर मधुराग….!!!
समेट लेना….
मेरे आतुर शब्धों की कतार को..
बिठला जाना इन्हें..
काव्यसरिता के द्वार….
सुगन्धित कर जाना….
मन प्राण अणिमाओं को…
ललचा जाना….
प्रेरणा के नवबिम्ब….!!!
सरका जाना
मेरे स्वप्नों को….
मेरे नींदों के लिहाफ़ में….
तृप्ता जाना….
मेरे रोम रोम रमी प्यास को…
सुनों…
तुम रोज चले आना यूँ ही…
मेरे प्रेम का पश्मीना…
अपने काँधे लिए…!!!!
मैं वहीं मिलूंगी रोज…
तुम्हारे इंतज़ार में….!!!
रचनाकार :राकेश राज
देओघर झारखण्ड