उत्तराखण्ड
निषिद्ध अनुनय
मंजुला बिष्ट
एकांत में
रोने का सबसे अहमक तरीका यह है
चीखे इतनी जोर से
कि आत्मा न्यूनतम रीत जाये
लेकिन बगलगीर दीवार भी बेख़बर रहे;
नही,नहीं !
मैंने किसी को कपड़ा मुँह में ठूँसकर रोने की सलाह बिल्कुल न दी है।
महफिलों में
हँसने की सबसे संकोची घटना वह है
मद्धम लय में ऐसी हँसी झरती रहे
कि आप देहातीत हो खिल उठें
लेकिन निराशा को भी गफ़लत होती रहे
उसके दुःखों पर हँसना अभी भी अभेध काम है;
नहीं,नहीं!
मैंने अट्टहास पूर्व किसी गलदश्रु की तरफ पीठ करने को नहीं कहा है।
नफ़रतों के मध्य
प्रियस बनने का सबसे निष्ठुर प्रयास यह है
प्रेम करें इतना मंदबुद्धि होकर
कि स्वयं की पहचान के प्रति भी कौतुक बनें रहें
भूखा-प्यासा भेड़िया आपको हमशक़्ल न पुकारे कभी
नहीं,नहीं
मैंने आपको प्रेम में अधिक शील-नागरिक होने की विनती नहीं की है।
शिक्षालयों में
बेस्ट-टीचर अवार्ड को चूमने से पहले
उठा लें एक बहिष्कृत छात्र का झुका सिर
रोक दें किसी चपल मासूम की तरफ
आपके मार्फ़त फुसफुसाए हतोत्साहन मन्त्र को;
नहीं,नहीं!
मैंने आपको व्यक्तिगत कुंठाओं तज अधिक शिक्षित होने को ताक़ीद नहीं किया है।
वाचनालयों में
सर्वविदित कृति की उबाऊ प्रतीक्षा से पहले
उस दराज़ की तरफ़ अवश्य टहल आएं
जहाँ किसी पदचिह्न अंकित होने की सूचना न हो
सृजन की उन बन्द यज्ञशालाओं पर वातायनों से रोशनी न गिरी हो
नहीं,नहीं!
मैं अपठित रही अभिव्यक्तियों हेतु सदाशय बने रहने की गुंजाइश नहीं बता रही हूँ।
कवि परिचय
मंजुला बिष्ट
स्वतंत्र -लेखन। कविता व कहानी लेखन में रुचि।
उदयपुर (राजस्थान)में निवास
हंस ,अहा! जिंदगी,विश्वगाथा ,पर्तों की पड़ताल,माही, स्वर्णवाणी, दैनिक-भास्कर,राजस्थान-पत्रिका,सुबह-सबेरे,प्रभात-ख़बर समाचार-पत्र, समालोचन ब्लॉग,हस्ताक्षर वेब-पत्रिका ,वेब-दुनिया वेब पत्रिका, हिंदीनामा ,पोशम्पा ,तीखर पेज़ व बिजूका ब्लॉग में रचनाएँ प्रकाशित हैं।