आलेख
“बारिश की बूंदें”
(लघु कथा)
✍🏻राजीव नयन पाण्डेय
गजेन्द्र को उसके साथ पढ़ने वाली मीनाक्षी हद से ज्यादा पसंद थी जैसी थी, जहाॅ थी और जो भी थी.. हर हाल में ..उसे पसंद थी। गजेन्द्र यानि गज्जू को ना जाति से, ना धर्म से ना, रंग से.. किसी भी तरह से आपति नहीं थी… उसे बस इस बात की आपत्ति दी कि ..उसकी मीनाक्षी यानि मीनू को कोई और न देखे, ना तारीफ करे, ना चर्चा करे… यानि मीनू पर वो अपने बंधन में बांधे रखना चाहता था, जो सम्भव न था.. पर करता भी क्या.. पुरूष की मानसिकता ही ऐसी होती है कि वो जिसे चाहता है ..वो नहीं चाहता कि कोई और भी देखे या उसकी चर्चा करे।
हाॅलाकि गज्जू की सोच समाज में फैले कई भ्रांतियो से जुडी खबरे पढ़ कर बनी थी…जो ना तो पूर्णरूप से सत्य थी और ना ही पूर्णरूप से असत्य।
कहते हैं कि स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ्य मन बसता है, बस इसी सोच से मीनू अपनो को योग विद्या से तन मन स्वस्थ्य रखना चाहती थी। अख़बारों में बडें बडें आकर्षक विज्ञापन को देख कर “मै भी योग करना चाहती हूॅ.”..
मीनू ने गजेन्द्र की राय जानने की कोशिश की थी, पर गजेन्द्र मानो सुन कर अनसुना कर रहा था उसदिन.. . .. गज्जू नही चाहता था मीनू योग सीखे… क्योंकि कुछ ऐसे योग सिखाने वालो को जिनका काम योग करने से ज्यादा ध्यान कही और रहता है, और वो भी खबरें आये दिन अखबार में बडे बडें अक्षरो में ही छपती रहती हैं।परन्तु अपनी मृगनयनी मीनू की खुशी की खातिर गजेन्द्र, मीनू को योग सीखने के लिए बेमन से, पर हाॅ बोला था।
“सतर्क रहना”, “अच्छे से करना”, “समय से आना जाना”, “साथ में और कितनी हैं योग करने वाली”, “कौन सिखाऐगा” .. “अपना फोन नम्बर न देना किसी को भी”, “योग सीखाने वाले का नाम पता पूछ लेना”… “जाति क्या हैं, धर्म क्या है..”.. और बहुत सी बाते… जैसे कोई पिता अपने बच्चो को कही भेजने से पहले सब जाॅच परख कर लेना चाहता हो।
बस यही स्थिति थी, इतनी पूछताछ, इतनी बंदिश… परन्तु यह मृगनयनी मीनू को अच्छा लगा था कि.. “कोई तो हैं जो इन छोटी छोटी बातों का ध्यान तो रखता हैं।”
रेडियो पर आस-पास में भारी बारिश की चेतावनी लगातार प्रसारित हो रही थी। खिड़की के बाहर बारिश की बूंदे लगातार तेज हो रही थी ..पर गजेन्द्र यानि गज्जू के मन में अभी भी जलन सी महसूस हो रही थी.. और यह जलन होती भी क्यों नहीं .. उसकी मृगनयनी की चिंता थी उसे, और चिंता हो भी क्यो न.. बेसिर पैर की फिक्र जो रहती थी उसे, क्यों कि अभी मीनू के योग क्लास का समय था।
रेडियो की धीमी आवाज खिड़की के बाहर बारिश की तेज बौछार के बीच… “तुम्हे कोई और देखे तो जलता हैं दिल, बड़ी मुश्किलों से सम्भलता है दिल..” कर्ण प्रिय गाना शुरू हुआ था… मानो जैसे प्रकृति भी नील के भावनाओं को आत्मसात कर रही हो।
उधर योग गुरू कभी कपाल भाति की उतार चढाव, तो कभी भ्रामरी तो कभी अनुलोम विलोम, साॅसो की लय ताल, मिलाने… की कोशिश करा रहे थे, परन्तु मीनू का मन आज योग करने में तनिक भी नहीं था ..मीनू का मन की कशमकश बाहर हो रही बारिश से और बढ़ रही थी,बारिश के बाद मौसम ऐसा हो ही गया था …
बारिश की बौझारें मीनू को उन पलो को याद दिला रहे थे.. जब ऐसे ही बारिश में गजेन्द्र और मीनू काॅलेज की कैंटिन में रूक गये थे। काॅलेज के कैम्पस में कैंटिन होने से बाहरी छात्र छात्राऐं नहीं आते थे… जिससे कैंटिन लगभग खाली ही रहती थी और शाम की बारिश में तो ..एक दो हाॅस्टल वाले छात्र छात्राऐं और खाली।
कोने की खाली टेबल पर दोनो बैठे थे… कैंटिन का छोटू..रोज की तरह. बिना पूछे कड़क गरम चाय एक छोटे गिलास और एक बड़े गिलास में रख गया था.. क्योकि गज्जू को छोटे गिलास की चाय पसंद थी और मीनू को बडें गिलास की अदरक व काली मिर्च वाली “चाह” पसंद थी.. ..वो भी जो इत्मीनान से पी सके
नजरे झुकाऐ बाहर के शांत मन से दोनो चाह से चाय पी रहे थे, पर मन अशांत था.. और वो दोनो जानते थे कि दोनो के मन में क्या चल रहा है…
कैंटिन के कोने की टेबल, सन्नाटा और बाहर बारिश हर संयोग ऐसा था मानो कायनात भी साथ दे रही हो.। ईश्वर की भी मानो सहमती हो.. अचानक जोर की कडकी बिजली से बिजली कट गयी… चहुओर अंधेरा छा गया… शाम में बारिश से अंधेरा घना महसूस हो रहा था।
चाय की गिलास अब टेबल के ऊपर.. दोनो एक दुसरे के हाथों को हाथो में थामे…और टेबल के नीचे दोनो के पैर मानो एक दुसरे को छूने की कोशिश में थे..यह देखते हुऐ कि कोई और न देख ले… दोनो ऑखे बंद अपने को एक दुसरे के समीप ला कर जल्दी से इस पल की समीप्ता का महसूस करना चाहते हो….. । मीनू के मनपसंद इत्र की भीनी सुगंध अपनी उपस्थिति बता रही थी कि गजेन्द्र को इस पल का एहसास था…।
तभी योग गुरू की आवाज सुन मानो मीनू नींद से जागी हो…एहसास हुआ कि ये तो ख्वाब था.. .. खिड़की के बाहर अब भी बारिश की बूंदे धीमें हो गयी थी… इधर मीनू सोच रही थी और उधर हाॅस्टल की खिड़की से बाहर एक टक बारिश की गिरती बूंदो को देखते हुऐ गज्जू भी शायद कुछ ऐसा सोच रहा था।
✍🏻राजीव नयन पाण्डेय, उत्तराखंड सचिवालय
(सम्प्रति लेखक उत्तराखण्ड सचिवालय में अनुभाग अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं।)
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