आलेख
बर्फीली हवाएं जिस्म भेदती रही, पर बिना साधन ड्यूटी में डटे रहे चुनाव कर्मी।
दीपशिखा गुसाईं “दीप“
“सुदूरवर्ती हिमाच्छादित पहाड़ियों की तलहटी पर स्थित बूथ पर तैनाती के वक़्त जहां हाड़ कंपाने वाली ठंडी हवाएं जिस्म को भेदते हुए निकल रही थी वहाँ जाना सोचकर भी सिहरन पैदा कर देती है।“
चलिये पहाड़ों पर चलते हैं सुकूँ के लिए,,कुछ दिन घूम आएं इन्ही पहाड़ों पर कुछ बर्फीले किस्से कहानियां भी गढ़ लेंगे,,दूर दूर फैली हरियाली को थोड़ा निहार तो लें,,,अरे हाँ तुम तो मेहमान हो न कुछ दिन के,,कहोगे ही ऐसा,,सुकूँ तलाशने आये थे,,कुछ दिन मन शांत करके चले फिर।
चलिये पहाड़ों पर सुकूँ की बात फिर कभी करेंगे,,,जुमा जुमा 3 दिन हुए लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार मतदान का और राज्य में 65.37 फीसद मतदान भी हुआ ,,पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में भी लोगों में अपनी नई सरकार बनाने को लेकर भरपूर उत्साह देखने को मिला,,जी हमारा अधिकार भी,,,और इस बार तो कुछ पहाड़ी जिलों में मतदान का प्रतिशत मैदानी जिलों से भी बेहतर रहा।
जो सबसे बड़ी ड्यूटी होती है इस त्यौहार को सौहार्द और पूरी तंमस्यता से सम्पन्न कराने की वो मतदान केंद्रों में ड्यूटी देते मतदान कर्मियों की,,एक जिम्मेदारी वाला कार्य,,कुछ भी ऊंच नीच हो तो उनकी जवाबदेही ही होती,,,पर कभी सोचा आपने बर्फीले रास्तों पर चलकर पूरी तैयारी के साथ 36 किलोमीटर का सफर तय करके सुदूर गांवों में भी अपनी ड्यूटी निभाते ये लोग इन दिनो में कैसे पूरी ब्यवस्था कर पाते होंगे रहने की।
माना कि जीवन वहां रहने वालों का बेहद कठिन पर वो पूरे साल इन बर्फीले मौसम में रहने की तैयारी कर लेते,,परंतु जब ड्यूटी देने ऐसे वक्त में शिक्षकों या अन्य कर्मचारियों को जाना पड़ता तो बेहद मुश्किल होती,,बहुत बुरी स्थिति रहती है, ऐसी ही विकट परिस्थितियों के साक्षी बने कई कर्मी,सुदूरवर्ती हिमाच्छादित पहाड़ियों की तलहटी पर स्थित बूथ पर तैनाती के वक़्त जहां हाड़ कंपाने वाली ठंडी हवाएं जिस्म को भेदते हुए निकल रही थी वहाँ जाना सोचकर भी सिहरन पैदा कर देती है।
आमतौर पर पूरी टीम को एक या दो कमरे दिए जाते,,सोचिए इस तरह की परिस्थिति में घर से बिस्तर ले जाने की ब्यवस्था नही,,गांववालों से लेना पड़ता,,सीमित साधनों में रहने वाले गांववासी कितनी मदद आखिर कर पाते,,के बार ड्यूटी के वक़्त भूखा भी रहना पड़ता,, साथ ही सोचिए मतदान के बाद मतपेटियां जमा करने की चिंता।
चमोली के कई इलाकों में ड्यूटी देने गए चुनाव कर्मचारियों में से शिक्षक आलोक नोटियाल जी ने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि, “चमोली के कलगोठ-डुमक्क (जोशीमठ ) ,बहत्तरा (देवाल) भी चुनाव केंद्र रहा। बहत्तरा जहां मेरी ड्यूटी 2007 के विधान-सभा सामान्य निर्वाचन में लगी थी । इस जगह का नाम बहत्तरा इसलिए पड़ा क्योंकि ये ब्लॉक मुख्यालय से बहत्तर (72)किलोमीटर पैदल था लेकिन जब हमारी ड्यूटी लगी थी तब तकरीबन 36 किलोमीटर पैदल था और हमें वहां पहुंचने में 2 दिन लगे थे ,उस वर्ष भी फरवरी में ही चुनाव हुए थे और उन दिनों भारी बर्फबारी भी हुई थी। रहने खाने से लेकर बर्फ में वो दिन भी बेहद मुश्किलों में काटे,, इस साल भी वही स्थिति रही।” यह तो एक क्षेत्र की बात ऐसे ही कई अन्य क्षेत्रों की स्थिति भी रही।
लगातार खबरें भी आती रही कि चुनाव कर्मचारी फंसे रहे पूरी टीम और वाहनों के साथ बर्फ में,,मौसम की वजह से वक़्त रहते अगर वो अपने बूथों पर नहीं पहुंच पाते तो कई लोग अपने मत का प्रयोग ही नही कर पाते,,हर बार यह घटना घटित होती पर कभी केंद्र सरकार या फिर कोई शासन प्रशासन इस तरफ ध्यान नही दे पाता,, हल कुछ ऐसा हो जिससे लोकतंत्र के इस त्यौहार का आनंद सभी ले सके न कि सजा की तरह इसे भुगतें।।