उत्तराखण्ड
विवाह के बाद नहीं बदलती महिला की जाति: हाई कोर्ट।
संवादसूत्र देहरादून/नैनीताल: हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने एक मामले में महत्वपूर्ण निर्णय पारित किया है। निर्णय में एकलपीठ ने कहा है कि किसी व्यक्ति की जाति उसके जन्म से निर्धारित होती है, ना कि वैवाहिक स्थिति से। यह निर्णय एक गुज्जर महिला से जुड़े मामले में किया गया था, जिसने पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के निवासी एक सामान्य जाति के पुरुष से विवाह किया है।
न्यायालय ने हरिद्वार जिले के भगवानपुर तहसीलदार के निर्णय को रद कर दिया और अधिकारी को आठ सप्ताह के भीतर जाति प्रमाण पत्र जारी करने के उसके दावे की जांच करने का आदेश दिया।याचिकाकर्ता महिला के अनुसार वह उत्तराखंड की स्थायी निवासी है और उसका जन्म एक गुज्जर परिवार में हुआ था, जिसे यहां अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के रूप में मान्यता प्राप्त है। उसने जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था, लेकिन उसके अनुरोध को तहसीलदार ने केवल इस आधार पर खारिज कर दिया कि वह अब विवाहित है।
सरकारी अधिवक्ता की ओर से ने तर्क दिया कि महिला के पति उत्तर प्रदेश के निवासी हैं, इसलिए महिला को ओबीसी प्रमाणपत्र जारी करना संभव नहीं है।
इस पर न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करने के लिए जो आधार अपनाया गया है, वह कानून की नजर में टिकाऊ नहीं है। कोर्ट ने निर्णय में कहा है कि इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि जाति जन्म से निर्धारित होती है और अनुसूचित जाति के किसी भी व्यक्ति के साथ विवाह से जाति नहीं बदली जा सकती। कोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ता का जन्म अग्रवाल परिवार में हुआ था, जो सामान्य श्रेणी में आता है, ना कि अनुसूचित जाति। केवल इसलिए कि उसका पति अनुसूचित जाति वर्ग से है, अपीलकर्ता को उसकी जाति को अनुसूचित जाति के रूप में दर्शाने वाला जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं किया जाना चाहिए था, इस संबंध में अधिकारियों के आदेश के साथ-साथ न्यायालय का निर्णय को भी न्यायालय को दोष नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए तहसीलदार भगवानपुर का का 21 मार्च का जाति प्रमाण पत्र के लिए आवेदन निरस्त करने का आदेश रद करते हुए तहसीलदार को आदेश की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करने की तारीख से आठ सप्ताह के भीतर, कानून के अनुसार याचिकाकर्ता के जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए याचिकाकर्ता के दावे की जांच करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि ओबीसी प्रमाणपत्र देने से इनकार करने के लिए विपक्षियों की ओर से अपनाया गया रुख टिकाऊ नहीं है। किसी व्यक्ति की जाति की स्थिति उसके जन्म से निर्धारित होती है, ना कि विवाह से। विवाह से किसी व्यक्ति की जाति नहीं बदलती, जैसा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 में सुनीता सिंह बनाम यूपी राज्य के मामले में साफ किया है।