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सरकारी सेवाओं में महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण को चुनौती।

उत्तराखण्ड

सरकारी सेवाओं में महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण को चुनौती।

संवादसूत्र देहरादून/नैनीताल: हाई कोर्ट ने राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से डिप्टी कलक्टर सहित अन्य पदों के विज्ञापन में राज्य मूल की महिला अभ्यर्थियों को 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण के विरुद्ध दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है।
बुधवार की मुख्य न्यायाधीश ऋतु बाहरी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में मेरठ उत्तर प्रदेश निवासी सत्यदेव त्यागी की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में उत्तराखंड लोक सेवा (महिलाओं के लिए क्षैतिज आरक्षण) अधिनियम, 2022 की धारा 3(1) को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि उत्तराखंड में रहने वाली महिलाओं के लिए सार्वजनिक सेवाओं एवं पदों में 30 प्रतिशत आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद-16 के विरुद्ध है।
कहा कि उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की ओर से 14 मार्च को डिप्टी कलक्टर, पुलिस उपाधीक्षक, जिला कमांडेंट होमगार्ड आदि के 189 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया है। विज्ञापन में खंड 10 (डी) उत्तराखंड की मूल निवासी महिला उम्मीदवारों के लिए 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण प्रदान करता है।

याचिकाकर्ता ने इन पदों के लिए जारी विज्ञापन के खंड 10 (डी) को भी चुनौती दी है। न्यायालय से प्रार्थना की है कि उक्त भर्ती प्रक्रिया में उत्तराखंड की महिलाओं के लिए अधिवास आधारित क्षैतिज आरक्षण प्रदान न किया जाए। यह भी दलील दी है कि उक्त अधिनियम उत्तराखंड राज्य विधानमंडल की ओर से विधायी क्षमता के बिना अधिनियमित किया गया है। अधिनियम भारत के संविधान के भाग तीन का उल्लंघन करता है, इसलिए असंवैधानिक है। खंडपीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर अगली सुनवाई की तिथि पांच मई नियत की है।

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