उत्तराखण्ड
हाई कोर्ट ने मांगा विधानसभा सचिवालय से वर्ष 2000 से 2021 तक हुई नियुक्तियों का ब्योरा।
संवादसूत्र देहरादून/ नैनीताल: वर्ष 2000 से 2021 तक विधानसभा सचिवालय में हुई अवैध नियुक्तियों के विरुद्ध दायर जनहित याचिका पर हाई कोर्ट ने शुक्रवार को सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता अभिनव थापर व विधानसभा सचिवालय से पूरा ब्योरा मांग लिया। कोर्ट ने पूछा कि किसके कार्यकाल में सचिवालय में कितनी नियुक्तियां हुईं, सभी की पहचान कर वर्षानुसार रिपोर्ट रिकार्ड के साथ तैयार करें और शपथपत्र के साथ तीन सप्ताह में प्रस्तुत करें। मामले की अगली सुनवाई चार अगस्त को होगी।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में देहरादून के सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। अभिनव के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने कोर्ट को अवगत कराया कि सरकार के छह फरवरी 2003 के शासनादेश में तदर्थ नियुक्ति पर रोक संविधान के अनुच्छेद 14, 16 व 187 (हर नागरिक को सरकारी नौकरियों में समान अधिकार व नियमानुसार भर्ती होने का प्राविधान) का उल्लंघन है। नियुक्तियों में उत्तर प्रदेश विधानसभा की 1974 की सेवा नियमावली व उत्तराखंड विधानसभा की 2011 नियमावलियों का भी उल्लंघन किया गया है।
याचिका में कहा गया है कि सचिवालय में नियम विरुद्ध नियुक्तियों की जांच के लिए विधानसभा ने समिति बनाई। उसकी जांच रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2016 के बाद की भर्तियों को निरस्त कर दिया गया। इससे पहले की नियुक्तियों को बरकरार रखा गया। हालांकि सचिवालय में राज्य बनने से अब तक भर्तियों के नाम पर घोटाला होता रहा है, जिस पर सरकार ने अनदेखी की है। ऐसे में सचिवालय भर्तियों में भ्रष्टाचार करने वालों के विरुद्ध उच्च न्यायालय के सीटिंग जज की निगरानी में जांच कराने व उनसे सरकारी धन की वसूली करने की प्रार्थना की गई है।