Connect with us

प्रेयसियों के मन बसता है वसन्त….

आलेख

प्रेयसियों के मन बसता है वसन्त….

राकेश राज…..✍️✍️


जब फागुन की पहली लहर नें गांव के खेतों को पीले आवरण से आच्छादित किया….. जब सरस् परिमल से लदी..माघ की मतवाली चांदनी धवल किरणों से नहा उट्ठी… जब भोर की हवाओं नें सर्दी का लिहाफ़ ओढा…जब अमल धवल चन्द्रिका तुषार से घनीभूत होने लगी…जब कोयल नें उसके स्वागत में मङ्गल गाया…और जब भौरों नें गुनगुनाकर कानाफूसी शुरू की…
तब….प्रेम की ड्योढ़ी पर हौले से दस्तक देती हुई…अल्हड़….बावले वसन्त का आगमन होता है…

सारी सृष्टि मुस्कुराने लगती है…!!!

और तब….सजती है…मधुमास में भीगी चांदनी का निभृत रंगमंच…
मणिदीपों पर लटकती है…मुकुलित मालाएँ…..
पुलकित वृक्षों फूलों पर प्रारम्भ होती है…मधु-मक्खियों की भन्नाहट…!!!
और तब….प्राची से बादलों की यवनिकाओं से झांकते अरुण की किरणें सुन्दर वेदियों और लता-कुंजों से आ लिपटती हैं…और तब फूलों और खीलों पर थिरकती इन नन्ही वीचियों का चुम्बन लेनें एकत्रित होते हैं तमाम मधुकर…!!!

किसकी आंखें यह सब देखकर नशे में आरक्त न हो जायेंगीं…..??
कौन होगा…जिसका हृदय पागल…इन्द्रियां विकल न होंगीं..??

शायद इसीलिए हजारी बाबा नें ऋतुराज वसन्त को अनुराग का मादक महोत्सव और सौंदर्य उपासना का विह्नगम काल कहा है..!!!

न जानें कितने बरस बीत चले…अबकी वसन्त में न जाने कितनी स्मृतियाँ जवान हो उठी…
प्राणों का सितार फिर से झंकृत हो उठा…सतरंगी ख़्वाब आंखों के जज़ीरों से झांकने लगे….!!!

याद है मुझे….

ऐसी ही वासन्ती दुपहरी में सामना हुआ था तुमसे…..जब गङ्गा की धाराओं को प्रणाम कर अंजुरी भर पानी अपने माथे पर उछाला था तुमने…जिसकी कुछ एक बूंदें मुझपे भी आ गिरी थी….

क्या ही अद्भुत सौन्दर्य…..पीले पैरहन में लिपटा देह….गालों पर यौवन की अद्भुत आभा…यूँ के जैसे नीले बादलों के खण्ड के अंदर स्वर्ण-किरण अरुण का उदय…हृदय में वसन्त का वास…आंखों में कुसुमोत्सव…. मादकता, बरसाती नदी की तरह वेगवती…ध्वनियां इतनी मधुर…मानो कंठ में वनस्थली की काकली…

और तुम्हे अपलक नेत्रों से निहारता हुआ……विस्मित सा मैं…!!
धूप, गङ्गा के वक्ष पर उजली होकर नाच रही थी…और साथ में नाच रहा था मन मयूर मेरा भी…!!!
और तुम इनसब से बेख़बर…. अपने जुड़े में करौंदे के फूलों की माला लपेटे… चली आ रही थी मेरी ही ओर…!!!

नैन समागम न हो सका…,लेकिन क्षितिज के अंतिम छोर तक मेरी नजरें छोड़ कर आयी थी तुम्हे…!!!
काश…के इस वसन्त भी मिल जाओ तुम..काश, के तुमसे कह पाऊं…वो जो बीते वसन्त न कह सका..!!!
काश…


राकेश राज….रांची(झारखंड)

Continue Reading
You may also like...

More in आलेख

Trending News

Follow Facebook Page

About Us

उत्तराखण्ड की ताज़ा खबरों से अवगत होने हेतु संवाद सूत्र से जुड़ें तथा अपने काव्य व लेखन आदि हमें भेजने के लिए दिये गए ईमेल पर संपर्क करें!

Email: [email protected]

AUTHOR DETAILS –

Name: Deepshikha Gusain
Address: 4 Canal Road, Kaulagarh, Dehradun, Uttarakhand, India, 248001
Phone: +91 94103 17522
Email: [email protected]