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प्रतिभा की कलम से गणतंत्र दिवस पर विशेष

उत्तराखण्ड

प्रतिभा की कलम से गणतंत्र दिवस पर विशेष

लेखिका : प्रतिभा नैथानी

हर साल 26 जनवरी की सुबह , सुबह-सुबह ही हल्ला हो जाता था – “उठो-उठो रे बच्चों ! चलो नहाओ, धोओ, स्कूल के लिए तैयार हो जाओ । आज 26 जनवरी है” !
बच्चे भी बिना देर लगाए फट-फट तैयार हो जाते थे। अन्य दिनों के मुकाबले उस दिन सुबह जल्दी जाना होता था, इसलिए यूनिफॉर्म पहली शाम को ही इस्त्री करके रख दिया जाता था। विद्यालय पहुंचकर फिर अपने-अपने कक्षा-अध्यापकों के साथ स्कूल के सारे बच्चे प्रभात फेरी पर निकलते थे। देशभक्ति के नारे लगाते बच्चों की आवाज से गांव,कस्बे,शहरों में सबको खबर हो जाती थी कि आज 26 जनवरी है।
लौटकर विद्यालय आए तो फिर मचती थी रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम। लोक नृत्य, देशभक्ति का गीत, वाद-विवाद प्रतियोगिता या कि फिर खेल प्रतियोगिताएं ! पुरस्कार वितरण समारोह तक दो-तीन घंटे विद्यालय में खूब चहल-पहल रहती। स्कूल के आसपास के लोग और कई बार तो अभिभावक भी इन कार्यक्रमों को देखने उस दिन विद्यालय पहुंच जाते थे। वाकई एक उत्सव सा माहौल बन जाता था उस दिन। लगता था कि सच में गणतंत्र दिवस राष्ट्रीय त्यौहार है। स्कूल में तो लड्डू बंटते ही थे, स्कूल के आस-पास भी उस दिन जलेबियां और मिठाई बनाने वाले हलवाई अपनी भट्टी और कड़ाह लेकर जमा हो जाते थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम के बाद घर लौटते लोग और विद्यार्थी घर के बुजुर्ग और अपने से छोटे भाई-बहनों के लिए भी लड्डू या जलेबी लेकर जाते थे। “यह 26 जनवरी की मिठाई है” कहकर सबका मुंह मीठा करवाया जाता था।
धीरे-धीरे जब टेलीविजन हर घर का अनिवार्य अंग होने लगा तो लोगों का विद्यालयों में जाना कम होने लगा, लेकिन उत्साह में कोई कमी नहीं आई। सुबह नाश्ता चाहे देर से बने मगर 26 जनवरी की परेड जरूर देखनी है। अपने-अपने राज्य की झांकी देखे बगैर कोई टीवी के आगे से हिलता नहीं था। युद्ध में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान हो या शांति काल में सर्वोत्कृष्ट कार्यों के लिए दिए जाने वाले सम्मान जैसे परमवीर चक्र, अशोक चक्र, महावीर चक्र के विजेताओं को देखना,उनके बारे में सुनना सबको रोमांचित कर जाता था। फिर हाथी पर बैठकर आने वाले वीरता पुरस्कार पाने वाले बच्चों तक ये सिलसिला चलता।
आसमान में तिरंगा रंग उड़ाते हेलीकॉप्टरों को देखकर होती गर्व की सिहरन। थल सेना वाले जांबाजों के करतब देख-देखकर सबके दिल में उठती रोमांच की लहरें ! कुल मिलाकर राष्ट्रीय त्यौहार वाला ज़ज़्बे और जोश में साल दर साल इजा़फा ही हुआ, कमी कहीं नहीं आई।
यह पहला मौका है जब बच्चे समय से पहले नहीं जागे। ना उन्होंने यूनिफार्म प्रेस करवाया। लड्डू की मिठास भी सब के मुंह से गायब है,क्योंकि जन गण मन के समूह गान और 26 जनवरी के लड्डूओं से ज्यादा ‘दो गज दूरी मास्क है जरुरी’ के नियम का पालन ही राष्ट्रहित और जनहित है।
टीवी पर परेड देखने का उत्साह भी कम हुआ है। किसानों के आक्रोश, आंदोलन में शहीद हुए कई-कई किसानों की मौतों ने “जय जवान-जय किसान’ के नारे को भी कानों में शीशे पिघलाने जैसा कर दिया है।
आजादी के बाद नए-नए राज्यों का गठन कर जब उन्हें भारतीय गणतंत्र में शामिल किया जा रहा था तो इसी क्रम में वर्ष 1966 में आसाम से अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड को अलग कर नये राज्य बनाए गए। गणतंत्र दिवस पर जब इन राज्यों को भी दिल्ली आने का मौका मिला तो राजपथ पर नागालैंड की झांकी प्रस्तुत करने वाले वहां के आदिवासी मुखिया ने तत्कालीन राष्ट्रपति को प्रेमसहित एक भेंट भी देनी चाहिए। भेंट थी – पांच नर कपाल ।
राष्ट्रपति भौचक रह गए। असमंजस में पड़े राष्ट्रपति ने मुखिया को समझाया कि भारत अब एक स्वतंत्र राष्ट्र है और हमारे संविधान के मुताबिक नरभक्षी होना अपराध। इसलिए यह नरकपाल राष्ट्रपति भवन की शोभा नहीं बन सकते। किंतु यदि आप संकल्प लेते हैं कि स्वयं और अपने समस्त आदिवासी समूह को इस अपराध से मुक्त रखेंगे तो मैं यह भेंट स्वीकार करता हूं। भारत और भारत के राष्ट्रपति के सम्मान में तुरंत मुखिया ने वादा किया कि अब कभी हमारे राज्य में नरभक्षण जैसा जघन्य कृत्य नहीं होगा।
यह है हमारे गणतंत्र की आत्मा जो ‘जन गण’ की मन:स्थिति और परिस्थिति को पढ़ने के बाद कानून को अमल में लाने की पैरवी करती है।
कोरोना महामारी के इस दौर में एक बिन बनाए कानून का भी जमकर पालन हुआ। वह था हमारे पुलिसकर्मियों और स्वास्थ्यकर्मियों का अपनी जान की परवाह किए बगैर नागरिकों के स्वास्थ्य के हित में रात-दिन मुस्तैदी से काम करना। नागरिकों ने भी लॉकडाउन के दिनों में गरीब और जरूरतमंदों की मददकर मानवता की नई मिसालें कायम की। साल बीतते न बीतते हमारे डॉक्टर और वैज्ञानिकों ने भी रिकॉर्ड समय में भरोसेमंद वैक्सीन बनाकर देश को गणतंत्र दिवस की सौगात दे दी। विकसित देश हों या गरीब देश वैक्सीन का अमृत बांटने में भारत ने सबके प्रति सदाशयता दिखाई है। विश्व पटल पर भारत ही भारत छाया हुआ है ।
“भगवान करे ये आगे बढ़े, आगे बढ़े और फूले-फले” ।

हमें गर्व है कि हम इस गणतंत्र के नागरिक हैं।

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