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“वजह तुम ही हो”

आलेख

“वजह तुम ही हो”

अन्तरराष्ट्रीय मित्रता दिवस

✍️✍️राघवेंद्र चतुर्वेदी

कुछ रिश्तों को परिभाषित नहीं किया जा सकता, उन्हें सिर्फ जिया जा सकता है। मित्रता भी एक ऐसा ही रिश्ता है, जिसे न तो किसी सामाजिक ढांचे की ज़रूरत है, न ही किसी रस्म की। यह वो रिश्ता है, जो ज़िंदगी के सबसे अकेले क्षणों में तुम्हारे पास चुपचाप बैठता है और कुछ कहे बिना तुम्हारी टूटन को बाँट लेता है। कभी बिना दस्तक दिए हँसी ले आता है, और कभी चुपचाप आकर तुम्हारी आँखों में उतर आई नमी को अपनेपन से सोख लेता है। वो कोई नायक नहीं होता, न कोई आदर्श। कई बार वो खुद भी टूटा होता है, लेकिन तुम्हें जोड़ने के लिए अपने हिस्से का हर समर्पण दे देता है।

मित्रता बचपन की धूल सनी दोपहरों में लुका-छिपी खेलते हुए शुरू होती है, किसी गुल्लक की खनक में, एक टूटी साइकल की सवारी में, आधा-आधा खाया हुआ समोसा और बिना बात के हँसी के ठहाकों में पलती है।

बड़े होते-होते ये वही दोस्त होता है जिसके सामने हम अपने डर खोलते हैं, अपने सपनों की ऊँचाई बताते हैं, और कभी-कभी अपनी नाकामियों पर सिसकते हैं। वो तुम्हारी कामयाबी पर उतना ही गर्व करता है, जितना शायद कभी तुम खुद भी नहीं कर पाते। और तुम्हारी नाकामी पर अगर कोई सबसे सच्चा सहारा देता है, तो वही होता है तुम्हारा दोस्त।

ज़िन्दगी की भीड़ में, जब सब अपने-अपने रास्तों पर भाग रहे होते हैं, एक सच्चा दोस्त वही होता है जो तुम्हारी थमी हुई चाल में भी साथ चलता है, जो जानता है कि तुम्हारा मौन क्या कहता है, जो समझता है कि तुम्हारी हँसी कितनी नक़ली है, और तुम्हारी आँखें कितनी थकी हुई हैं। कई बार ये दोस्त तुमसे बेहतर तुम्हें जानता है क्योंकि उसने तुम्हारे अनकहे हिस्सों को भी सुना है।
वो हिस्से जो तुम कभी किसी से नहीं कह पाते, लेकिन उसके सामने खुद-ब-खुद बह जाते हो।

मित्रता का कोई रंग नहीं होता, फिर भी यह जीवन की सबसे खूबसूरत तूलिका है। यह हर रिश्ते को नया अर्थ दे सकती है एक भाई को सबसे अच्छा दोस्त बना सकती है, एक प्रेमिका को सबसे गहरा हमराज़ बना सकती है, यहाँ तक कि माँ-बेटे या पिता-पुत्र के रिश्ते को भी मित्रता के धरातल पर खड़ा कर सकती है। मित्रता का मतलब बराबरी है वहाँ कोई ऊँच-नीच, कोई बड़ा-छोटा नहीं होता। वहाँ बस एक खुलापन होता है, जहाँ हर भावना, हर असुरक्षा, हर संदेह और हर जिद को जिया जा सकता है।

कभी एक पुराने दोस्त की तस्वीर देखकर आँखें भर आती हैं, कभी कोई पुरानी चिट्ठी या मैसेज पढ़कर दिल एक बार फिर उसी बीते पल में लौट जाता है। वो कॉल जो अब नहीं आता, वो आवाज़ जो अब नहीं सुनाई देती,
लेकिन जिसकी गूँज अब भी मन के किसी कोने में ज़िंदा है वो भी मित्रता है, और उसका वजूद अब भी हमारे भीतर है।

मित्रता वो रिश्ता है जिसमें कोई हिसाब नहीं होता।तुम कितना दोगे, कितना लोगे इसका कोई मोल नहीं। वो तुम्हारे सबसे बुरे दिन में भी बिना शिकवा किए तुम्हारे साथ खड़ा होता है, और तुम्हारे सबसे अच्छे दिन में भी किसी तमगे की उम्मीद नहीं करता। वो तुम्हारी जीत पर तालियाँ बजाता है, और तुम्हारी हार पर तुम्हें गले लगाकर कहता है “ये भी गुज़र जाएगा।”

और क्या चाहिए एक इंसान को? शायद सिर्फ इतना कि जब दुनिया उसे न समझे, तो कोई एक हो जो बिना शर्त कहे “मैं समझता हूँ।” बस वही एक मित्रता है।

वक़्त बदलता है। लोग दूर हो जाते हैं। रास्ते अलग हो जाते हैं। लेकिन एक सच्चा दोस्त तुम्हारी स्मृतियों में, तुम्हारी आदतों में, तुम्हारी सोच में, और कई बार तो तुम्हारी सांसों में बस जाता है। वो फिर भले ही सामने न हो, पर उसके कहे शब्द, उसकी हँसी, उसका मज़ाक, उसकी डाँट सब तुम्हारे जीवन का हिस्सा बन जाते हैं।

कभी कुछ दोस्त उम्र भर के लिए साथ होते हैं, तो कभी कोई कुछ पल के लिए आता है लेकिन पूरी उम्र में बस जाता है। दोस्ती समय नहीं देखती, वो बस दिल का राग पहचानती है। और जब दो दिल एक ही राग पर झूम उठें तो बस वही क्षण मित्रता कहलाता है।

मित्रता दिवस मनाने के लिए अगर तुम्हारे पास एक भी ऐसा इंसान है, जिससे तुम बेझिझक अपनी ज़िंदगी की सच्चाई कह सको, जो तुम्हारी चुप्पियों को पढ़ सके,जो तुम्हें तुम्हारी सबसे कमजोर हालत में भी थाम सके तो तुम दुनिया के सबसे भाग्यशाली इंसान हो।

आज, इस दिन, मैं उन सभी दोस्तों को स्मरण करता हूँ जो रहे, जो हैं, जो कहीं दूर चले गए, और जो बिना कहे भी साथ हैं। उनसे कोई औपचारिक वादा नहीं था, पर वो हर बार वक़्त से पहले आकर खड़े हुए। जो मुझे सुनते रहे जब मैं खुद से भी नहीं बोल पा रहा था, जो मुझे थामते रहे जब मैं गिरता गया, और जिन्होंने मेरे जीवन को वो रंग दिया, जिसे शायद मैं कभी खुद से नहीं पा पाता।

उनके लिए ये शब्द बहुत छोटे हैं, लेकिन फिर भी, आज के दिन इतना कह सकूँ, कि “तुम्हारे बिना मैं अधूरा था, और तुम्हारे साथ मैंने खुद को पाया।” शुक्रिया…मेरे जीवन में दोस्त बनकर आने के लिए।शुक्रिया…बस यूँ ही बने रहने के लिए।

अगर इस जीवन में मुझे फिर से शुरुआत करने का मौका मिले, तो मैं यही चाहूँगा कि मेरी झोली में सबसे पहले वो लोग आएँ जिन्होंने मुझे मेरे सबसे कमजोर और सबसे सच्चे रूप में अपनाया था। क्योंकि वही तो मेरे सच्चे दोस्त हैं। और वही मेरी सबसे कीमती पूँजी हैं।

आज का दिन उनके नाम जो बिना शोर किए मेरे जीवन की सबसे मधुर ध्वनि बने।

राघवेंद्र चतुर्वेदी

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