उत्तराखण्ड
समाज की विडंबनाओं को रेखांकित करती कहानी “भेड़िया धसान”।
- 14 अगस्त से ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में शुरू होने वाले फिल्म फेस्टिवल में दिखाए जाने के लिए चयनित।

“भेड़िया धसान अर्थात भेड़िया बाड़ा“
उत्तराखण्ड के कुछ जुनूनी युवा अलग-अलग कई क्षेत्रों में ख़ामोशी से कुछ काम कर रहे हैं तो कुछ अभिनव प्रयोग भी कर रहे हैं | वो रोजगार के क्षेत्र हों,तकनीक हो या कला के | उम्मीद और नाउम्मीदी के द्वन्द के बीच कुछ ऐसा हो जाता है कि उस पर हम सभी गौरवान्वित महसूस करते हैं | ऐसे ही गढ़वाल और कुमाऊं के दुसांद (साझा) क्षेत्र ग्वालदम के एक युवा हैं भरत परिहार जिन्होंने उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश की सीमा से जुडी एक सच्ची कहानी का आधार लेकर एक फीचर फिल्म बनाई है भेड़िया धसान अर्थात भेड़ियों का बाड़ा | दरअसल यह बाड़ा कुछ समाज की विडंबनाओं को रेखांकित करता है तो कुछ सत्ता और व्यवस्थाओं की पोल भी खोलता |
पहाड़ के खाली हो चुके एक गाँव में एकाकी जीवन जी रहे एक पिता-बेटे और पोते के जीवन की मानवीय संवेदनाओं से जुडी यह कहानी कुछ झकझोरती भी है तो कुछ सवाल भी खड़े करती है | व्यवस्था का सार्वभौमिक भ्रष्टाचार एक कड़वी सच्चाई है तो समाज का भी एक अंधेरा पक्ष है जिसे फिल्म में बेहद खूबसूरती दिखाया गया है | फिल्म के सभी कलाकारों ने अपने बेहद जीवंत अभिनय से और शानदार सिनेमेटोग्राफी ने इस पूरी कहानी को सार्थक किया है | अभी तक यह फिल्म भारत के सबसे प्रतिष्ठित ‘केरल फिल्म फेस्टिवल’ में दिखाई जा चुकी है और आगामी 14 अगस्त से ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में शुरू होने वाले फिल्म फेस्टिवल में दिखाए जाने के लिए चयनित हुई है यह भी एक बड़ी उपलब्धि है | फिल्म की पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई शुभकामनाएं |

