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अद्वितीय अभिनेता के अनसुने किस्से….अलविदा दिलीप साहब।

सिनेमा

अद्वितीय अभिनेता के अनसुने किस्से….अलविदा दिलीप साहब।

सृजिता सिंह ……

आज पुरानी राहों से, कोई मुझे आवाज़ न दे…
दर्द में डूबे गीत न दे, गम का सिसकता साज़ न दे…

हाँ आज आप हमें उसी दर्द में छोड़कर अनंत यात्रा पर चले गए हो.. आपके जाने से अभिनय की दुनियां का एक युग चला गया.. आपने कलाकार और कला को नया आयाम दिया.. आपके ही पद चिन्हों पर चलकर यह फ़िल्मइंडस्ट्री आगे बढ़ी,, पर आपके मूल्यों को सहेजकर न रख सकी… इसका दुःख कहीं न कही आपको भी रहा… जी कुछ किस्से आपके जो अनसुने, अनकहे से.. याद आये फिर बहुत..

जी हाँ दुनिया जिन्हें दिलीप कुमार के नाम से जानती है, जिनके अभिनय की मिसालें दी जाती हैं, उनकी ना तो फ़िल्मों में काम करने की दिलचस्पी थी और ना ही उन्होंने कभी सोचा था कि दुनिया कभी उनके असली नाम के बजाए किसी दूसरे नाम से याद करेगी,, दिलीप कुमार के पिता मुंबई में फलों के बड़े कारोबारी थे, लिहाजा शुरुआती दिनों से ही दिलीप कुमार को अपने पारिवारिक कारोबार में शामिल होना पड़ा. तब दिलीप कुमार कारोबारी मोहम्मद सरवर ख़ान के बेटे यूसुफ़ सरवर ख़ान हुआ करते थे.

एक दिन किसी बात पर पिता से कहा सुनी हो गई तो दिलीप कुमार पुणे चले गए, अपने पांव पर खड़े होने के लिए. अंग्रेजी जानने के चलते उन्हें पुणे के ब्रिटिश आर्मी के कैंटीन में असिस्टेंट की नौकरी मिल गई.वहीं, उन्होंने अपना सैंडविच काउंटर खोला जो अंग्रेज सैनिकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय हो गया था, लेकिन इसी कैंटीन में एक दिन एक आयोजन में भारत की आज़ादी की लड़ाई का समर्थन करने के चलते उन्हें गिरफ़्तार होना पड़ा और उनका काम बंद हो गया.अपने इन अनुभवों का जिक्र दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा ‘द सबस्टैंस एंड द शैडो’ में बखूबी किया है.यूसुफ़ ख़ान फिर से बंबई लौट आए और पिता के काम में हाथ बटाने लगे. उन्होंने तकिए बेचने का काम भी शुरू किया जो कामयाब नहीं हुआ.

पिता ने नैनीताल जाकर सेव का बगीचा ख़रीदने का काम सौंपा तो यूसुफ़ महज एक रुपये की अग्रिम भुगतान पर समझौता कर आए. हालांकि इसमें बगीचे के मालिक की भूमिका ज़्यादा थी लेकिन यूसुफ़ को पिता की शाबाशी ख़ूब मिली.ऐसे ही कारोबारी दिनों में आमदनी बढ़ाने के लिए ब्रिटिश आर्मी कैंट में लकड़ी से बनी कॉट सप्लाई करने का काम पाने के लिए यूसुफ़ ख़ान को एक दिन दादर जाना था। वे चर्चगेट स्टेशन पर लोकल ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे तब उन्हें वहां जान पहचान वाले साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर मसानी मिल गए. डॉक्टर मसानी ‘बॉम्बे टॉकीज’ की मालकिन देविका रानी से मिलने जा रहे थे.उन्होंने यूसुफ़ ख़ान से कहा कि चलो क्या पता, तुम्हें वहां कोई काम मिल जाए. पहले तो यूसुफ़ ख़ान ने मना कर दिया लेकिन किसी मूवी स्टुडियो में पहली बार जाने के आकर्षण के चलते वह तैयार हो गए.देविका रानी ने दिखाया था भरोसा, तब देविका रानी ने दिलीप कुमार से पूछा था कि तुम फलों के कारोबार के बारे में कितना जानते हो, दिलीप कुमार का जवाब था, “जी, मैं सीख रहा हूं.”

देविका रानी ने तब दिलीप कुमार को कहा कि जब तुम फलों के कारोबार और फलों की खेती के बारे में सीख रहे हो तो फ़िल्म मेकिंग और अभिनय भी सीख लोगे, साथ ही उन्होंने यह भी कहा, “मुझे एक युवा, गुड लुकिंग और पढ़े लिखे एक्टर की ज़रूरत है. मुझे तुममें एक अच्छा एक्टर बनने की योग्यता दिख रही है.”

एक सुबह जब वे स्टुडियो पहुंचे तो उन्हें संदेशा मिला कि देविका रानी ने उन्हें अपने केबिन में बुलाया है.,, इस मुलाकात के बारे में दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “उन्होंने अपनी शानदार अंग्रेजी में कहा- यूसुफ़ मैं तुम्हें जल्द से जल्द एक्टर के तौर पर लॉन्च करना चाहती हूं. ऐसे में यह विचार बुरा नहीं है कि तुम्हारा एक स्क्रीन नेम हो.”

“ऐसा नाम जिससे दुनिया तुम्हें जानेगी और ऑडियंस तुम्हारी रोमांटिक इमेज को उससे
जोड़कर देखेगी. मेरे ख़याल से दिलीप कुमार एक अच्छा नाम है. जब मैं तुम्हारे नाम के बारे में सोच रही थी तो ये नाम अचानक मेरे दिमाग़ में आया. तुम्हें यह नाम कैसा लग रहा है?”और इस तरह एक ख़ान कुमार होकर दिलीप कुमार के नाम से कालजई अभिनेता बन गए..

और हाँ जहाँ यह इंडस्ट्री नित नये रिश्ते टूटने बिखरने के लिये बदनाम रहीं वही एक ऐसे ही प्यार की मिसाल भी देखने को मिली.. जो ताउम्र सिर्फ एक दूसरे के लिये जिए… बिना शायरा के दिलीप की कहानी कभी पूरी नहीं हो सकती…

प्यार की मिसाल के तौर पर लोग आज भी हीर-रांझा, लैला मजनू और सोनी-महिवाल की जोड़ियों को किस्से सुनाते हैं और कहते हैं कि उनके जैसा प्यार इस दुनिया में किसी ने भी नहीं किया। लेकिन दिलीप कुमार और सायरा बानो की जोड़ी भी एक ऐसी जोड़ी है जिससे सच्चे और निस्वार्थ प्रेम के लिए हमेशा याद किया जाएगा। सायरा बानो 12 साल की कमसिन उम्र से ही दिलीप कुमार को चाहने लगी थीं। तभी से उन्होंने मन बना लिया था कि उनका हमसफर कोई होगा तो वह हैं

आंधी-तूफान नहीं तोड़ पाया दिलीप कुमार-सायरा का रिश्ता, गजब है प्रेम कहानी, शादी के 55 सालों में सायरा बानो और दिलीप कुमार ने कभी भी एक-दूसरे का साथ नहीं छोड़ा था, लेकिन मौत ने एक पल में यह जोड़ी तोड़ दी। सायरा और दिलीप कुमार का निस्वार्थ प्रेम और कहानी हर किसी के लिए प्रेरणा है।

आज यह जोड़ी तो अलग हुई ही साथ ही उनके चाहने वालों के लिये एक काला दिन भी रहेगा.. भले वो अपनी एक पूरी जिंदगी जी लिये पर हाँ कलाकार मरा कला और उनके जिए किरदार हमेशा जीवित रहेंगे हमारे दिलों मैं भी…….

“सिया”( झल्ली पहाड़न)

शिमला (हिमांचल)

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