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“ये बगतन भी बीति जांण”
गढ़वाली कविता
लिख्वार :-हरदेव नेगी
ये बगतन भी बीति जांण,
अबार जु कैकु साथ द्योलू,
वेका गुंण सभ्यून गांण.
ईं कोरोना मामारी मा,
यनै तनै कखि नि डबड्यांण।।।
हाथ साफ ध्वोंण,
अर गिच्चा पर मास्क जरूर लगांण।।
कोरोना से जादा मनखि यख मनस्वाग व्हेग्या,
मनख्यात तौंकि मरीगे,
दवै की काळाबाजारी का सि सच्चा द्यबता व्हेग्या,
हौसपीटलों मा भी लूट चा मची,
या साजिस तौंकी मनख्यों तैं मनौ चा रंची,
व्यवस्था कखि सरकारै छोयी नी,
सरकारे या बात गिच्चा भितर चा रखी,
आरोप प्रत्यारोप सि एक हैंका पर छन लगौंणा,
अपड़ी कु व्यवस्था सि नि छन बथौंणां,
बीमार मनखी लाचार व्हेकि चा तड़फड़ू,
कति मरिन आज सि ब्यखुनि दों टीबी पर छन गिणौंणा,,
जौं पर जनता कु भरोसु छो,
सि चुनौं मा डूब्यां रेन,
कनक्वे बचलि कुर्सी सि हवै हवा मा उडड़ा रेन,
जनि लीनि फ्येर कोरोनान विकारल रूप,
होस्पीटलों मा व्यवस्था पूरी चा सि
झूठी बात जनता तैं बतौंणा रेन।।
चौदहा मैना बटी सरकार कुछ ज्यादा चिते नी,
करखाना बंद पड़या और रोजगारे क्वे छ्वीं नी,
फिरी फिरी बांटी सि मैंगे तैं न्यूतणां छिन,
कख बटि उंदकार होलु येकु क्वी बिचार कना नी।।
जन भी होलु जु भी होलु अब सब अपड़ा हाथ चा,
द्यो द्यबता भी हरची गेन अब सारू कै पर कन चा।।
हेक हैंकों विस्वास बड़ा ये से बड़ु क्वे उपचार नी,
धीत बांधा, भला कर्म करा, ईं बिमारिन भी जादा रौंण नी
हरदेव नेगी, गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड)
हरदेव नेगी, उखीमठ (रुद्रप्रयाग )