आलेख
एक तसले कोयले की कीमत तुम क्या जानो….?
(व्यंग्य) __
✍️©राजीव नयन पाण्डेय
छुट्टी के दिन घोडें बेच कर सोते रहेंगे हर बार की तरह यही सोच कर सोऐ थे कि..पर ऐसा होता कहा हैं, होता वही है जो सबके साथ होते आया है..छुट्टी के दिन की सुबह और जल्दी हो जाती हैं ऐसा लगता हैं कि सूरज को भी उसी दिन जल्दी निकलना होता हैं बाकि दिनो की अपेक्षा। सूरज बाकि दिन भले ही देर से निकले पर मजाल कि छुट्टी के दिन तनिक देरी हो जाऐ। अगर फिर भी बिस्तर से उठने का मन ना भी हो तो, फिर ना जाने किधर से अनायास ही दुसरे मुहल्ले के जन्मजात कुत्ते सुबह~सुबह हमारे ही मुहल्ले के कुत्ता बनने की भरपुर कोशिश करते हैं और मेरे मुहल्ले वाले कुत्ते भी साथ साथ अपने कुत्ते होने पर इतराना शुरु जरूर करते है। सब मिल कर भौ-भौ गुर्र गुर्र कर अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहते हो मानो उनका इंडियन_आईडल” चल रहा हो ..जिसका लय व स्वर सुन उनकी श्रेणी वाले जज मानो यह कह रहे हो “ये तो आग लगा देगा आग”।
अनमने ढंग से सिरहाने रखे.अधखुली आँखो से अखबार पर नजर पडी ….क्योंकि खबर ही खबर बन चुकी थी, जो छुपाना था वही छप गया था वो भी सार्वजनिक रूप से विज्ञापन दे कर। आमतौर पर ऐसे संकठ वाली ‘खबरो की खबर’ तब खबर बनती थी, जब वह खबर के रुप में आम जन तक खबरो में छपती थी।
“कोयला #खत्म” यह कैसी खबर.. मैने तो कई बार खबर की पुष्टि करने की कोशिश भी की, परन्तु खबर की सत्यनिष्ठा पर प्रश्नचिन्ह लगाया जाना सम्भव न था। यह खबर ऐसे ही थी जैसे फिल्म “बोल_राधा_बोल” में कादरखान ने रू0 5/- दे कर गाँव वालो को चिट्ठी लिखवाई थी “राधा_खो_गई”।
सोशलमीडिया पर अनवरत कोयला संकट वाले मैसेज आने भी शुरू हो चुके थे…”एक तसला कोयले की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू”, “मेरे करन-अर्जुन आऐंगे, धरती का सीना चिर कर कोयला लाऐंगें”, इसी बीच वो वाले मैसेज भी आनै लगे थे कि एक तसला कोयला दान कर भूत प्रेत,चुडैल, सौतन से छुटकारा पाऐ”, और तो और एक ने तो यहां तक दावा कर दिया कि काली कोयल के काले पंख से ढ़क कर काली टोकरी में काला कोयला दान करे मनोकामना तुरंत पुरी होगी। कृपा वही रूकी हुई है।
मन में जिज्ञासा का भाव लिऐ उत्सुकता थी कि क्या ऐसा सम्भव है ? बचपन के प्राईमरी स्कूल वाले पाठ याद आने लगे कि हमारे पू्र्वज बंदर थे …यद्यपि इस बात पर तबके गुरु जी से बहस भी हुई थी…”म्यारे पूर्वज बंदर थे”, वे पढाते रहे..पर मैं बाल सुलभ कहता रहा कि “नहीं, मेरे पूर्वज आदमी ही थे, मास्साब आपके पूर्वज की बात आप जानो”….तक मासाहब ने छड़ी टूटने तक तोड़ा था। हालांकि आज समझ आ रहा हैं कुछ अब भी बंदर ही है शक्ल से तो नहीं पर अक्ल से तो जरूर,यह अलग बात हैं कि पूँछ तो उनकी भी नहीं हैं।
काले कोयले के प्रति मन में श्रद्धा भाव अब भी आ जाते हैं कि किसी तरह इस कोयले ने खुद को जला कर हमारे पूर्वजों को बंदर से आदमी बनाने में महती भूमिका निभाई थी। अगर कोयला न होता तो आग का आविष्कार न होता और फिर सभ्यता, संस्कार व संस्कृति न तो सुधरती और ना सवरती। अब भी किसी गुफा में कंदमूल फल फूल खा कर पडे होते। मन.में सब के प्रति समान भाव रखने से कोयले के प्रति आत्मियता बढंती जा रही थी….कोयला न होता तो क्या होता,और आज उसी कोयले पर संकट आ गया है।
कोयला का संकट हुआ कैसे यक्ष प्रश्न तो यह था कि यदि धरती से कोयला खत्म हो जाऐगा तब तो समुद्र से पानी और आसमान से बादल भी खत्म हो जाऐंगे।
कोयला खत्म हो गया ? वो कैसे खत्म हो गया ? अब ना तो कोयले से चलने वाली रेलगाड़ी चलती हैं और ना ही कोई ऐसा कोई सच्चा प्रेमी ही धरती पर बचा है जिस पर यह आरोप लगाया जा सके कि उसने प्रेम में वशीभूत हो प्रेमिका का नाम कोयले से शहर भर की दरो दिवार पर लिख कर कोयले का अतिरिक्त उपभोग किया हो, जिससे कोयले का संकठ हो गया हो, वैसे ही जैसे #बाजीगर फिल्म में शाहरुख खान ने “दिल की दिवारो पे मैने नाम लिखा हैं तुम्हारा” काली स्याही से अपनी छाती पर “प्रिया” लिखा था।
कोयला जिस नाम से कालिख का आभास हो जाता हो भला उस कोयले का क्या कोई काला बाजारी कर सकता है उत्सुकता तो यह थी। कोयला और कालाबाजारी से फिल्म “चमेली_की_शादी” के सेठ कल्लूमल कोयले वाले की याद आ गयी, दिगर बात.यह बात याद कि याद तो पहले #चमेली की ही आई थी।
वैसे तो कोयला काला होता है परन्तु कोयला की कालाबाजारी करने वाले सफेदपोशों की नियत से कम ही काला होते है। सोच कर देखे कि कोयला न हो तो क्या क्या हो सकता है..यही सोच कर मन व्याकुल हो जाता हैं।
कही फिर से इस सरकार में भी बस कागजो पर ही “कोयला आवंटन” तो नहीं हो गया यह सवाल मन में उठ रहा था, परन्तु अगली खबर पढ़ कर मन शांत हुआ कि किसी ने मात्र खबरो में बने रहने के लिए देश भर के समाचार पत्रो में विज्ञापन दिया था कि “आपका एक तसला कोत्रला कोयला संकठ से मुक्ति दिला सकता हैं अतः कोयला दान करे, पुण्य कमाये।
कोयला संकट की खबर अफवाह मात्र थी और यह अफवाह क्यों थी इसके पीछे किसका हाथ है यह भी जांच हो रही हैं। कि कोयले की कालिख से किसके हाथ काले होने है..।
✍️©राजीव नयन पाण्डेय(देहरादून)