उत्तराखण्ड
जौनसार बावर की दीपावली क्यों है खास?जानिए कैसा है रिवाज।

संवादसूत्र:
जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर में हर त्योहार अलग ही अंदाज में मनाया जाता है। क्षेत्र में 39 खत हैं, जिनमें से नौ खतों में नई दीपावली मनाई जाती है। अन्य 30 खतों में नई दीपावली के एक माह बाद पुरानी दीपावली मनाने का रिवाज है।
नई और पुरानी दीपावली पूरी तरह पर्यावरण अनुकूल होती है। इसमें पटाखों का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं होता है। चीड़ की लकड़ी के होले बनाकर उन्हें जलाकर दीपावली मनाई जाती है। पांच दिन तक नई और पुरानी दीपावली का उत्सव चलता है।
जौनसार बावर के महासू देवता मंदिर हनोल, माता देवलाड़ी, बाशिक महासू मंदिर मैंद्रथ, शेडकुडिया महाराज मंदिर रायगी, अणू व हेडसू में पहले से नई दीपावली मनाने की परंपरा रही है। उसके बाद इन गांवोंं के आसपास की खतों में भी नई दीपावली मनाने की परंपरा शुरू कर दी गई।
मौजूदा समय में बावर खत, देवघार खत, बाणाधार खत, लखौ खत, भरम खत, मशक, कैलो, धुनोऊ और दसऊ खत के करीब 100 गांवों में नई दीपावली मनाई जा रही है। पशगांव खत के दसऊ में चालदा महाराज विराजमान है, यहां भी लोग नई दीपावली ही मनाएंगे।
19 से 23 अक्तूबर तक पांच दिवसीय दीपावली का उत्सव शुरू हो गया। पहले दिन जिशपिशा, दूसरे दिन रणदियाला, तीसरे दिन औंसा रात चौथे दिन भिरुड़ी व पांचवें दिन जंदोई मेला होगा। उत्सव के समापन पर काठ से बने हाथी और हिरण का नृत्य किया जाएगा। पुरुष और महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में पंचायती आंगन में पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ हारूल, तांदी, रासो आदि नृत्य करेंगे।
30 खतों के 260 गांवों में मनेगी पुरानी दीपावली
नई दीपावली के एक माह बाद 30 खतों के 260 गांवों में विशायल खत, समाल्टा, उदपाल्टा, फरटाड, कोरु, विशलाड, शिलगांव, बोंदूर, तपलाड, उपलगांव, बाना, बमटाड, लखवाड़, अठगांव, द्वार, बहलाड, सिली गोथान, पंजगांव समेत अन्य खतों से जुड़े करीब 260 गांवों में पुरानी दीपावली मनाई जाएगी। इसमें भी पांच दिन तक दीपावली का उत्सव चलता है।

