आलेख
भू-कानून क्यों जरूरी?
देवेश आदमी
० अंतराष्ट्रीय सीमाओं से लगे उत्तराखण्ड के तीन जिले इसलिए भू-कानून जरूरी हैं।
० तेजी से पहाड़ों में बढ़ रहे बाहरी राज्यों के लोगो को रोकने में भू-कानून कारगर सिद्ध होगा।
० खण्डूरी राज में भू-कानून में हुए बदलाव से पहाड़ में कई परिवर्तन।
पृथक राज्य के साथ ही उत्तराखण्ड में भू माफियाओं ने जमीन के सौदे शुरु कर दिए देहरादून, रामनगर, ऊधमसिंह नगर, हल्द्वानी, रुद्रपुर सहित सभी तराई के उपजाऊ जमीनें रातों रात खरीदें गए। सिडकुल के लिए बेहद कम दामों की जमीन सोने के भाव बिकी। जिस से नारायण दत्त तिवारी की साख पर प्रश्नचिन्ह लगा। कुछ वर्षों बाद यह व्यापारी पहाड़ों की ओर चले और 2007 तक पहाड़ बिकने लगे। आखिर 7 वर्ष तक माफिया पहाड़ों में क्यों नही आये इसकी वजह भुवनचंद्र खण्डूरी का 2 वर्ष का कार्यकाल रहा। भुवनचंद्र खण्डूरी ने अपने कार्यकाल में भू-कानून में जबरदस्त बदलाव किया जिस से पहाड़ों में जमीनें खरीदनी आसान हुई और माफियाओं ने पहाड़ का रुख किया। नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में इंडस्ट्री क्षेत्र के लिए भू-कानून में बदलाव किया गया किंतु मसौदा सिर्फ 3 तराई के जिलों के लिए बना जिस को भुवनचंद्र खण्डूरी ने पहाड़ों में भी लागू कर दिया। वर्ष 2013 आते-आते त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार ने भू-कानून में जबरदस्त बदलाव कर डाले। लगातर जमीनों के सौदों में बदलाव किए गए जिस से बड़े माफिया पहाड़ की ओर अग्रसर हुए। रावत सरकार ने पहाड़ो में रोजगार के साधन का हवाला दिया पर रोजगार पैदा नही हुए। जिस से जनमानस में आग भड़की ओर हवा दिया आम आदमी पार्टी ने। किंतु यह जायज मांग सभी पहाड़ियों को रास आरही हैं। चकबंदी भू-कानून गैरसेंण शिक्षा चिकित्सा रोजगार मुद्दों को लेकर आम आदमी पार्टी पहाड़ नाप रही हैं जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा अनेकों मुद्दे जन्म ले रहे हैं।
उत्तराखण्ड के लिए भू-कानून इसलिए भी जरूरी हैं कि 20 वर्षों में पहाडो में मुस्लिम आबादी 13% बढ़ी हैं। लीज के नियमों में बदलाव के कारण बाहरी लोगों ने पहाड़ लीज पर लिए जिस कारण जगह-जगह झुग्गियां बन गई हैं पहाड़ियों को रोजगार नही मिला और भूमि अधिग्रहण के नाम पर अनेकों उद्योगों का जन्म हो गया। पहाड़ी नगरों पर जनसंख्या का दबाव बन गया जिस का भार सहन नही हो रहा। यह पहाड़ों की संस्कृति में घुसपैठ हैं पहाड़ों को आत्मनिर्भर बनाने के लॉलीपॉप ने पहाड़ियों को चौकीदार बना डाला। उत्तरकाशी चमौली पिथौरागढ़ अंतराष्ट्रीय सीमा से लगे तीन जिले अतिसंवेदनशील घोषित हैं जहां घुसपैठियों ने जमीने हड़प लिए हैं। भू-कानून उद्योगों के लिए नही माफियाओं के लिए सुगम बनाया गया जिस से लगातार अपराध बढ़ रहे हैं। लब जेहाद गैंग रेप धर्मपरिवर्तन हत्या लूट जैसे मामलों में वर्ष 2007 के बात तेजी आई हैं। पलायन एक मुद्दा बन गया हैं किंतु इस से भू-कानून का कोई मतलब नही। राज्य अपनी खूबसूरती संस्कृति शांति को पृथक राज्य के बाद गहरी चोट पहुची हैं। जिस को हांसिल करने की सुगबुगाहट सुरु हो गई हैं। आम आदमी पार्टी के साथ कोंग्रेस उत्तराखंड क्रांति दाल भी मैदान में कूद गई हैं जिस से आंदोलन को बल मिल रहा हैं। बुद्धजीवी जानते हैं बिना राजनीतिकरण के मामला हल नही होगा इस लिए गेंद जनता के पाले में रख कर बुद्धजीवी राजनीतिक पार्टियों को हवा दे रहे हैं। देश विदेश में बसे पहाड़ी समाज इस मुद्दे में हस्तक्षेप कर रहे हैं। विश्वस्तरीय खिलाड़ी अभिनेत्रियों अभिनेताओं ने भी अब अपना समर्थन देना सुरु कर दिया हैं जिस की गूंज केन्द्र तक पहुच गई हैं। नेशनल tv पर डिवेट सुरु हो चुके हैं सत्तारूढ़ अपनी पूंछ बचाने के लिए जल्द कोई ठोस कानून की खबर आसकती हैं।
(यह लेखक के अपने निजी विचार हैं)