उत्तराखण्ड
कार्बेट में छह हजार पेड़ कट कार्यवाही क्यों नहीं हुई? हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव को फटकारा।
संवादसूत्र देहरादून/नैनीताल: हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव को फटकार लगाते हुए पूछा है की एक ओर कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में अवैधानिक अतिक्रमण तथा पेड़ो का पातन किया गया, पर सरकार की ओर से इस गंभीर मामले में दोषी अफसरों और अन्य के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई है?
अक्टूबर 2021 में इस मामले का न्यायालय का स्वतः संज्ञान लिया लेते हुए पीसीसीएफ राजीव भरतरी की अध्यक्षता में कमेटी गठित की थी। कमेटी को निर्देशित किया गया था की दोषी कौन है? क्या कार्रवाई की गई, यह शपथपत्र देकर बताएं। जिसके बाद राजीव भरतरी को पीसीसीएफ पद से हटा दिया गया था और आईएफएस वीके सिंघल को पीसीसीएफ हॉफ बनाया गया।
देहरादून निवासी अनु पंत ने जनहित याचिका दाखिल कर, कई अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज न्यायालय के समक्ष रखे, जिसको गंभीरता से लेते हुए न्यायालय की खंड पीठ ने 6 जनवरी को मुख्य सचिव को कार्रवाई करने के लिए कहा था।
मुख्य सचिव की ओर से फरवरी 2022 में दाखिल शपथपत्र में कहा गया था कि समय समय पर न्यायालय को की जा रही कार्यवाही के बारे में अवगत कराते रहेंगे, लेकिन एक वर्ष बीत जाने के बावजूद भी उन्होंने किसी भी तथ्य के बारे में न्यायालय को अवगत नहीं कराया गया।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने यह दलील दी कि उच्चतम न्यायालय ने यह स्पष्ट किया था की कॉर्बेट टाइगर रिजर्व का एक भी वृक्ष नहीं काटा जा सकता लेकिन वर्तमान में तो फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार 6000 से ज्यादा पेड़ काट दिए गए हैं, जो देवभूमि उत्तराखंड के लिए एक काला धब्बा है। उन्होंने यह भी बताया गया की विभागाध्यक्ष की ओर से बनी समिति ने इसके लिए कई अफसरों को जिम्मेदार ठहराया गया है, लेकिन शीर्ष अफसरों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई है।
न्यायालय ने मुख्य सचिव को पुनः एक शपथपत्र दाखिल कर यह बताने को कहा है की दोषी अफसरों के खिलाफ क्यों कार्यवाही नही की जा रही है, देरी का कारण क्या है। अगली सुनवाई शीतकालीन अवकाश के समाप्त होते ही 22 फरवरी को नियत की गई है।
शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी को खंडपीठ में सुनवाई के दौरानसरकार की ओर से मुख्य स्थाई अधिवक्ता सीएस रावत ने कहा कि यह याचिका एक व्यक्ति विशेष को लाभ देने के लिए दाखिल की गई है, इसीलिए इसपर कोई सुनवाई नहीं होनी चाहिए लेकिन न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता की, जो भी मंशा हो, मगर याचिका जनहित में एक प्रमुख मुद्दा उठा रही है, इसीलिए सरकार को दोषियों पर कार्यवाही करनी चाहिए।