आलेख
“विश्व पर्यावरण दिवस”
( अगर हम प्रकृति के इस संगीत को सुन पाते तो आज इन प्राकृतिक आपदाओं को न झेल रहे होते,, समय समय पर चेताती रही हमें, समय है संभल जाओ,, मनुष्य हो जियो और हमें भी जीने दो,, हमारा दोहन करोगे तो प्रतिफल तुम्हें भी मिलेगा तुम्हारे विनाश से,,,)
” हमें यदि सफल होना है तो प्रकृति को समझना ,,उससे प्रेम करना सीखना होगा ,,उसके पास रहना होगा ,,,क्यूंकि सफलता के कई सबक हम प्रकृति से सीख सकते हैं,,और जो इसे समझ गया उसे यह प्रकृति कभी असफल होने नहीं देगी ,,”
पर यह सब तो समझ समझ का फेर है,, अगर हम प्रकृति के इस संगीत को सुन पाते तो आज इन प्राकृतिक आपदाओं को न झेल रहे होते,, समय समय पर चेताती रही हमें, समय है संभल जाओ,, मनुष्य हो जियो और हमें भी जीने दो,, हमारा दोहन करोगे तो प्रतिफल तुम्हें भी मिलेगा तुम्हारे विनाश से,,, पर हम इंसान हैं न सुनकर भी अनसुना करना प्रकृति हमारी,,
अगर ऐसा न हुआ होता तो पहाड़ में 2013 में केदारनाथ की आपदा और कुछ माह पहले चमोली में आये विनाशकारी सैलाब कितना बड़ा उदाहरण थी हमारे सामने,, प्राकृतिक खूबसूरती से भरपूर चारों और सिर्फ खुशियां ही दिखती थी पर उस एक क्षण ने विनाश का जो तांडव मचाया वो हमारी ही भूल का नतीजा था,, ज्यादा की चाहत ने शून्य पर ला खड़ा किया और देखिये सिर्फ वहाँ के लोग नहीं उस वक़्त ऐसा माहौल था कि देश के कोने कोने से लोग वहाँ उपस्थित थे तो प्रकृति ने पूरे देश को चेताना था तो चेताया उसने,, सबको उस आपदा का दंश दे गई।
पर सोचिये अब भी कितने लोगों कि स्मृति में ऐसी आपदाएं,, कुछ वक़्त बाद हम सब भूल फिर वही गलतियां दोहराने लगते हैं,,, इंसान हैं न इंसानियत ही भूलने लगे हैं,,
हाँ कुछ कर नहीं सकते अपनी प्रकृति के लिए तो जो है उसको ही बचा कर रख लो,, और आजकल सबूत सामने कि हम इंसानों कि वजह से ही हमारी प्रकृति कराह रही थी,, क्यूंकि इस वक़्त जब हम घरों में हैं तो हमारे पूरे हिमालय को सेहत का टॉनिक मिला है,, आबोहवा साफ सुथरी हुई हैं,, और गंगा फिर अपने आदि स्वरुप में बह रही है,,,कितना खूबसूरत सब कुछ,,प्रकृति खुश और उसका इस वक्त हम दोहन नहीं कर पा रहे इसलिए हम बेचैन घरों में,,
अभी भी न संभले तो खुद के अस्तित्व को खोने की कीमत चुकानी होगी,, ये कोरोना तो शुरुआत भर है,, आगे न जाने कितने विनाश लिखें होंगे ऐसे ही,,
और हाँ इस वक़्त उन्हें विशेषकर पर्यावरण दिवस की बधाई दूंगी जो कुछ वक़्त पहले तक गर्मी से राहत के लिए मेरे स्वर्ग से पहाड़ पर आकर वहाँ कई टन प्लास्टिक और शराब की बोतलें फेंक मेरे पहाड़ को दर्द में छोड़ उसके दर्द पर मुस्कुराते हुए गाते गुनगुनाते फिर अपनी नर्क की दुनियां में लौट आते थे,,वो अभी ये सब करने के लिए कसमसा रहे होंगे,, पर उनको जरूर श्राप लगेगा प्रकृति का,, अगर कोरोना से बच निकले तो जरूर इस पर ध्यान देना अगली बार से,,
“दीप “