आलेख
हाँ, अभी ये रोटी जरूर जुटा लेना।
संजीत ‘समवेत
………
ऐ दोस्त,
अधूरे शायर लेखक रचनाकार
बनने चले हो जो तुम,
तो सुनो
पहले एक कामकाजी इंसान बनना।
वाह वाही से
पेट नही भरा करते,
तो कर लेना इंतजाम
दो वक्त की रोटी का।
भूख में जो विचार आएंगे
वो न तुम्हे मजबूत बनाएंगे
और ना ही जमाने को।
तो पहले करना इंतजाम
अपना और अपनों कि भूख का।
जिस वक्त कर बैठते हो
मोहब्बत किसी से,
वो वक़्त खुद से मोहब्बत का होता है।
सपनों से मोहब्बत का होता है।
तो ऐ कल्पनाओं से सागर में गोते लगाते हुए
मेरे युवा दोस्त।
मोहब्बत करना उससे
जिससे पेट पलता है
तुम्हारे परिवार का।
ना कि उससे,
जो तुम्हारे यही हाल रहे तो
कही जाएगी,
तुम्हारी अधूरी मोहब्बत।
तो शायर दोस्त
इतना कमा लेना,
कि किसी मुशायरे तक पहुंच सको।
मैने विज्ञान और गणित को
बसा रखा है अपनी एक एक कोशिका में।
क्योंकि ये मेरी कोशिकायें भी जानती हैं
की वो फल फूल पा रही है तो बस
इसी काम से।
माँ हो या पिता
दोनो की
पीड़ा का कारण होता है
एक अपाहिज सन्तान
और एक बेरोजगार बच्चा।
तो दोस्तों खुद को मत खोना
जीवन के भंवर में,
ज़िन्दगी आगे चल कर सवाल जरूर पूछेगी
जवानी में क्या किया।
या तो जम कर मेहनत करना
की तुम्हारा शौक बन सके
तुम्हारी रोजी रोटी।
अगर अधूरी करनी तो
शायरी कर लेना बुढापे में कभी
किसी बुढ़िया के पास बैठकर,
अभी ये रोटी जरूर जुटा लेना।।।
– संजीत ‘समवेत–
नरेंद्रनगर, टिहरी गढ़वाल(उत्तराखंड )’