योग कोई ट्रेंड नहीं, यह एक जीने की विधि है और यह विधि जितनी पुरानी है, उतनी ही आज भी ज़रूरी।
✍️✍️✍️【राघवेंद्र चतुर्वेदी】
हर दिन की भागदौड़, तनाव और उलझनों के बीच एक मौन साधना है योग। यह कोई तड़क-भड़क वाला आयोजन नहीं, बल्कि भीतर उतरने की एक सरल प्रक्रिया है। और आज, जब योग दिवस है, तो यह बात और भी गहराई से महसूस होती है कि योग सिर्फ शरीर को मोड़ने का नाम नहीं, बल्कि खुद को समझने का माध्यम है।
【रोहिता राना】
“शुरुआत में योग को चुनने की सबसे बड़ी वजह थी कि सब कुछ होते हुए भी मन को शांति नही थी, पर जब योग की तरफ मुड़ी तो मन को शांति और सुकूँ मिलने लगा ।योग करने के बाद ही मैंने खुद को खुद से जोड़ा,और उसके बाद ही मैने पाया कि अब मेन्टल हेल्थ, शाररिक स्वास्थ्य के साथ ही सोशल रिश्ते भी सही होते चले गए,,और तब से खुद को पूर्ण महसूस करने लगी,,, जब खुद में आये बदलाव को देखा तो सोचा क्यों न इन सबसे जूझ रहे लोगों की मदद की जाए और इसी का परिणाम रहा रोहितांजली योग स्टूडियो की शुरुआत करना।“ 【रोहितांजली योग स्टूडियो की ऑनर रोहिता राना】
आज के इस शोरगुल भरे युग में जहां हर कोई दौड़ रहा है, कभी करियर के पीछे, कभी रिश्तों के पीछे, कभी खुद से दूर, वहाँ योग एक विराम की तरह है। एक ठहराव, जो न थकाता है न उलझाता है, बस भीतर का दरवाज़ा धीरे से खोल देता है।
योग का मतलब है जोड़ना और यह जोड़ बाहर से नहीं होता, यह भीतर से होता है। जब सांस पर ध्यान टिकता है, तो मन के सारे विक्षेप धीरे-धीरे शांत होने लगते हैं। शरीर की गति और मन की स्थिरता जब एक साथ आती है, तो भीतर एक अलग ही ऊर्जा का संचार होता है। यही ऊर्जा धीरे-धीरे जीवन के हर पहलू में उतरती है, सोच में, व्यवहार में, रिश्तों में।
आज जब लोग anxiety, depression, insomnia, और emotional breakdown जैसी समस्याओं से घिरे हैं, वहाँ योग उनके लिए एक थामने वाली डोरी बन सकता है। पर शर्त यही है कि उसे प्रदर्शन नहीं, अपनापन बनाकर जिया जाए। सोशल मीडिया पर फोटो डालकर आसन दिखाना आसान है, पर उस एक आसन में गहराई से उतरना कठिन है। योगासन का उद्देश्य शरीर की लोच या ताक़त नहीं, मन की सुलझन और भीतर की स्थिरता है।
बच्चे हों या बुज़ुर्ग, गृहस्थ हों या सन्यासी, योग किसी एक वर्ग की संपत्ति नहीं। यह सबका है, यह सबमें है। बस ज़रूरत है उसे अपने जीवन का हिस्सा बनाने की। वो सुबह-सुबह की दो सांसों की सजगता, वो रीढ़ को सीधा करके बैठना, वो आँखें मूंदकर अपने भीतर की हलचल को देखना, यही असली योग है।
हम जब तक योग को केवल 21 जून का उत्सव समझते रहेंगे, तब तक हम उससे उतना ही दूर रहेंगे जितना कोई अजनबी होता है। योग दिवस हमें याद दिलाने का एक जरिया भर है, कि तुम्हारे भीतर जो उथल-पुथल है उसका समाधान तुम्हारे ही भीतर है।
आज की दुनिया में जहाँ हर समस्या का समाधान बाहर ढूंढ़ा जा रहा है, दवाइयों में, स्क्रीन पर, परामर्श में, वहाँ योग हमें खुद से मिलाने की सबसे सशक्त विधा है। यह हमें बताता है कि हम अपने शरीर के स्वामी हैं, मन के नहीं दास। यह हमें खामोशी से चीखती दुनिया में शांति का रास्ता दिखाता है।
इस योग दिवस पर कोई लंबा प्रण न लो, न ही दिखावे की कसमें खाओ। बस एक काम करो, एक दिन, एक आसन, एक सांस को सजगता से जियो। और धीरे-धीरे देखना, यही एक छोटी शुरुआत तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी यात्रा बन जाएगी।
योग कोई ट्रेंड नहीं, यह एक जीने की विधि है और यह विधि जितनी पुरानी है, उतनी ही आज भी ज़रूरी।