आलेख
तुम संग सँवरता है एक आईना…
“लघु कथा“
【हरदेव नेगी】
छज्जे पर आकर जब तुम अपने गीलों बालों पर जोर जोर से टावल मारती हो, पता है उनसे छिटकती बूँदे बारिश की नयीं फुवार सी लगती है,,, कभी जोर से गर्दन हिला कर तुम दायने गाल की तरफ अपने केसुओं को करती हो तो कभी बाएं,,,,
और इसके बाद जब तुम आईने के सामने बैठती हो तब सिर्फ तुम खुद को नहीं सजाती- सँवारती, “तुम संग सँवरता है एक आईना” तुम अपने माथे की बिंदी निकालकर आईने पर लगाती हो,,, और दराज से नयीं बिंदी के पैकेट से वो बिंदी निकालती हो जो आज के गेटअप से मैच करे और उसी ढंग से माथे पर लगाती हो जैसे आईने पर पुरानी बिंदी लगाती हो,,,और आईने की तरफ चेहरा और क्लोज ले जाती हो और बिंदी को फिक्स कर देती हो,,,,ठीक आईने पर लगी बिंदी भी वैंसे ही खुद को मैच करती है।।।
वो बड़ा वाला कंघा उठाती हो और बालों को बनाने लग जाती हो,,,, बालों को सैंटर से थोड़ा आगे की तरफ पकड़ती हो और उल्झे हुए बालों को सुलझाने लग जाती हो, और तभी तुम खुद में ही कोई गाना गुनगुनाने लग जाती हो,,,, तुम्हारी हल्की सी मधुर आवाज़ हमेशा आईने के सामने ही सुनाई, इस वक्त तुम अपना सबसे पसंदीदा गाना खुद में ही गाती हो,,, माथे से थोड़ा दायीं और बायीं और ठीक कानों के उपर एक – एक क्लिप लगाती हो और रबड़ लगाने के बाद हल्का सा लटों को कसती हो,,,,, कुछ टूटे हुए बालों को फैंकती नहीं हो वहीं श्रृंगार वाले आईने के दराज में रखती हो और बाद में मिट्टि मे दबा देती हो या कहीं घर के पास ही फेंक देती हो,,,,,,,,,,काजल या आईलाईनर जब आँखो के घेरो पर लगाकर तुम आईने से फिर क्लोज हो जाती हो और आँखें बड़ी करके परफैक्ट लाईन में सेट करती हो,,,, पहले राईट आईज को फिर लैफ्ट आईज को क्लोज करके देखती हो,,,, दूसरी तरफ तुम्हारा गाना कंटिन्यू चलता रहता है,,,,,
फिर फेरती हो तुम नजर अपनी नेल पॉलिश पर,, और नेल पॉलिस को लगाने बाद सारी ऊंगलियों पर हल्के से फूंक मारती हो जिससे कि जल्दी सूख जाए,,,, साड़ी पहनते समय थोड़ झिझक जाती हो परफैक्ट लेवल में लगी कि नहीं,,, दो सेफ्टी पिन लेती हो,, साड़ी के किनारे को जब पीठ तक तरफ डालती हो तब सेफ्टी पिन से ब्लाउज़ पर लगा देती हो,,,,, दूसरे छोर से आगे हाथ की तरफ साड़ी का पल्लु कर देती हो,,, थोड़ा सा आईने के सामने आगे को चलती हो और पैरों की तरफ देखती हो,,, कहीं साड़ी उपर नीचे तो नहीं हो गई,,, अगर बराबर न हो नीचे से तो हल्का सा पैरों की तरफ सी खींचती हो,,,,, फिर आईने में देखती हो,,,, फिर भी ना हो तो घर में ही माँ, बेटी, बड़ी-छोटी बहना, देवरानी या ननद को बुलाती हो ठीक करने के लिए,,,,, या पड़ोस की महिला को,,,,,,, और जब वो कहदे हाँ, अब सही लग रही है
,,,,,, फिर भी तुम दरवाजे की तरफ आते आते एक बार फिर आईने में देखती हो और तभी दायिनी छोर से नजरें पीठ पीछे करती हो तो तभी बायीं छोर से,,, और जब आईना परमिशन देता है तुम निकल जाती हो,,,,,!
और फिर एक आवाज़ आती है अभी और कितना टाईम लगेगा तैयार होने में,,, और तुम कहती हो हाँ आ गई,,,, बस हो गई तैयार,,,, फिर भी तुम बाहर आकर कहती हो कैंसी लगी आज साड़ी? सब कहते हैं ठीक लगी है 👌👌👌,,,, पल्लू को ढंग से करले बस
जैंसे – जैंसे श्रृंगार से तुम्हारा चेहरा निखरता है वैंसे- ही आईना निखरने लगता है,,,, क्यूँकि हर आईने का भी अपना एक मेकअप किट होता है।।। जो तुम संग सँवरता है।।।
हरदेव नेगी, गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग)