आलेख
तुम लड़के भी ना…
हरदेव नेगी
तुम लड़के भी ना आजतक अपनी आदते सुधार नहीं पाए, बच्चपन से लेकर बड़े होने के बाद भी कितने लापरवाह हो जाते हो,,, आख़िर कब सुधरोगे तुम,,,,,!
स्कूल हो, या दफ्तर हो, कहीं से भी आते हो तो, ना जूते सही ढंग से रखते हो ना मौजे, ना बैग, आते ही ऐसे फैंक देते हो जैसे कल फिर इनकी जरूरत ही नहीं पड़ेगी,,,,,,। मतलब हद कर देते हो किसी भी चीज की,,,,। कितनी बार कहा है तुमसे कि कहीं से भी आते हो एक बार अपनी चीजों को सही से रख लो, पर नहीं, कोई अनुशासन ही नहीं,,,,,!
टेबल पर किताबें बिखरी रहती हैं, सुबह उठते हो तो रजाई कंबल फोल्ड करते नहीं,,, तुमने अपना कमरा ऐसा बना रखा है जैसे स्टोर रूम,,,,कपड़ों को ढंग से अलमारी, या हैंगर पर टांक कर नहीं रखते, कुर्सी बैठने के लिए होती है कपड़ों को रखने लिए नहीं,,,,,,,! ना फिर भी रखेंगे कुर्सी पर,,,! गीला तावल बाहर धूप में सुखाने के लिए डाल दो पर नहीं वो जो कुर्सी पर ढेर सारे कपड़े हैं ना उसके उपर डाल देंगे,,, फिर बोलेंगे कपड़े गीले हो गये,,,,, पर हर घर में एक कुर्सी कपड़ों के लिए होती है ना,,,,, हां जिस घर में तुम जैसे लड़के हों उस घर की एक कुर्सी कपड़ों के लिए होती है,,,,
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आज तक तुम्हें कोई चीज सही जगह पर रखी है,,, कि जिससे ढूंढनी ना पड़े,, थक जाती हूँ मैं तुम्हारे साथ, तुम्हारी इन आदतों से,,,, परसों अपने सारे कपड़े खुद छत से ले आया,,, और अलमारी में ऐसे ही रख दिए,,,, भला कोई ऐसा रखता है क्या? मुंजियां पड़ जाती हैं उन पर,,,, सुबह उठा तो सारा घर सब्जि मंडी सा बना देता है चिल्ला चिल्लाकर,,,, कि माँ तुमने मेरी टाई, मौजे, अंडरवियर देखा,,, कहाँ रखे तुमने,,,,, रखे खुद हैं अलमारी में और अब खुद को ही नहीं मिल रहे,,,, मैं किचन से आई और उन्हीं बिखरे कपड़ो में से उसके मौजे, टाई, अंडरवियर उसकी आंखों के सामने से निकालर उसको दिया, उसको नहीं दिखाई दिये पर मुझे दिख गये,,,, जानबूझकर परेशान करने की आदत है।।।
कभी तो खुद की जिम्मेदारी समझो, हर जगह माँ थोड़ी आयेगी,,,, कि माँ ये दे दो, वो दे दो,,,, ऐसा लगता है जैसे सीबीआई वाली हो गई हूँ तुम्हारे साथ,,,,,,।
हे राम क्या होगा तुम लड़कों के साथ?
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किचन से आवाज आई,,, नाश्ता तैयार है, दो रोटी खाले, टाईम है अभी,,,,,,!
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माँ पैक कर दे चलते – चलते खा लूंगा,
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नहीं यहीं पर खा,,,,
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माँ तुम भी ना लेट करा देती हो मुझे, हां टाइम पर तुम ना उठो, आधी सुब्ह तुम्हारी चीजें ढूंढने में निकल जाती है और देर मैं करवाती हूँ,,,! रात भर जागा रहता है जुगनू की तरह, पता नहीं क्या है उस फोन में ? पाँच बजे सुबह से किचन से तेरे रूम तक के बीस चक्कर लग जाते हैं मेरे,,,, तुम्हारे साथ कुछ और नहीं कर पाती मैं,,,,,! कितनी बार बोला है आदत सुधार ले,,, जब शादी होगी ना बीवी सुधारेगी ढंग से,,,,, माँ कहां की बात कहां लाती है,
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ठीक है मैं चलता हूँ,,,,,, हां ठीक है ढंग से जाना,,,,
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पर सच मैं क्या शादी के बाद लड़कों की आदत सुधरी है क्या?
हरदेव नेगी, रुद्रप्रयाग (गुप्तकाशी)