आलेख
एक फ़िल्म सिर्फ दर्शकों तक सीमित नहीं होती है,बल्कि एक अच्छी टीम और माहौल भी बनाती है।
गजेन्द्र रौतेला




संवादसूत्र देहरादून: उत्तराखण्ड के प्राकृतिक सौन्दर्य को फिल्मों के लिए बेहद खूबसूरत माना जाता है और सरकार भी बॉलीवुड में इसे खूब प्रचारित करती है।यहाँ तक कि उत्तराखण्ड में फिल्मों की शूटिंग करने पर आर्थिक छूट के साथ-साथ अतिरिक्त व्यवस्थाएं और सुविधाएं भी देती है। यह सुविधाएं दी भी जानी चाहिए ताकि यहाँ की नैसर्गिक खूबसूरती को फिल्मों के माध्यम से एक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान भी मिल सके और फ़िल्म निर्माण सम्बन्धी नए द्वार भी खुल सकें।आज बॉलीवुड में उत्तराखण्ड की प्रतिभाएं हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं।वो चाहे गीत-संगीत हो एक्टिंग हो या फ़िल्म निर्माण सम्बन्धी अन्य कोई तकनीकी पक्ष,हर जगह उन्होंने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है और दखल भी दिया है।यह एक अच्छा संकेत भी है।लेकिन यह सब भी गौर करने लायक है कि यह सब उनकी अपनी व्यक्तिगत रुचि और क्षमताओं के बदौलत हासिल हुआ है।
उत्तराखण्ड सरकार ने बॉलीवुड के फ़िल्म निर्माताओं को आर्थिक छूट देने के अतिरिक उत्तराखण्ड के युवाओं को यहाँ विश्वस्तरीय फिल्मों के निर्माण के साथ-साथ तकनीकी ज्ञान और प्रशिक्षण देने के लिए अभी तक न कोई संस्थान बनाया है और न कोई संस्था ही इस पर काम कर रही है।यहाँ तक कि अभी एक छोटी-मोटी लाइब्रेरी तक उपलब्ध नहीं है जहाँ विश्वस्तरीय फिल्में देख सकें और किताबें पढ़ सकें।ऐसे में यदि ठेठ पहाड़ से हमारे दो युवा देश के ख्याति प्राप्त संस्थान FTI पुणे (फ़िल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया पुणे) में ऑल इंडिया रैंकिंग AIR में पहले और तीसरे स्थान पर अपनी जगह बनाते हैं तो हम सबके लिए बहुत गर्व की बात है।यह तब और भी महत्वपूर्ण हो जाता है जब हम लोगों की पृष्ठभूमि किसी भी प्रकार से फ़िल्म इंडस्ट्री की न हो।ऐसे ही दो युवा साथी जो ‘पताळ ती’ शार्ट फ़िल्म बनने के बाद ‘स्टूडियो UK13’ से जुड़े और एक टीम के रूप में लगातार फ़िल्म सम्बन्धी लंबी-लंबी चर्चाओं और बातचीत में बने रहे लिखते और पढ़ते रहे आज रुद्रप्रयाग जिले के प्रवीन सेमवाल ने एक साल के वीडियो एडिटिंग कोर्स के लिए ऑल इंडिया में पहली रैंकिंग और अल्मोड़ा जिले के प्रशांत उपाध्याय ने तीन साल के साउंड एडिटिंग कोर्स के लिए ऑल इंडिया में तीसरी रैंकिंग प्राप्त की है।यह हम सबके लिए गर्व की बात है कि सामान्यतः फ़िल्मी क्षेत्र हमारे लिए बहुत हद तक अनछुआ है लेकिन आज के इस दौर में जिस तरह से हमारे युवा तकनीक का उपयोग कर अपनी रुचियों और क्षमताओं का प्रदर्शन कर रहे हैं उसमें तकनीक के साथ-साथ कलात्मक दृष्टिकोण का परिपक्व होना और भी जरूरी हो जाता है जिसके लिए FTI जैसे प्रशिक्षण संस्थान हमारे राज्य में भी खुलने चाहिए और यहाँ की कथा-कहानियों और विषयों को फ़िल्म के माध्यम से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा सकें।
दरअसल जब कोई फ़िल्म बनती है तो सिर्फ फ़िल्म नहीं बनती है बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से फिल्मों को लेकर एक समझ और माहौल भी साथ-साथ तैयार करती है।ऐसे में स्टूडियो UK13 के संतोष सिंह इस दिशा में जिस तरह से युवाओं का एक अच्छा मार्गदर्शन कर रहे हैं जरूरी है कि सरकार भी आगे आकर इस दिशा में एक ठोस नीति बनाए,संस्थान खोले और युवाओं को इस फील्ड के लिए तैयार करे।शुरुआत में एक-दो लोगों से शुरू हुए स्टूडियो UK13 की टीम में आज रजत बर्त्वाल, बिट्टू रावत,दिव्यांशु रौतेला,राहुल रावत,अमित राणा आदि जैसे क्षमतापूर्ण 20 अन्य युवा जुड़े हैं तो उम्मीद की जानी चाहिए कि उत्तराखण्ड के सिनेमा में ‘पताळ ती’ जैसी और भी कलात्मक और यहाँ के लोक से जुड़ी हुई और भी फिल्में बनेंगी।

