आलेख
एक और एक ढाई: रिश्तों का बेढब गणित।
【पुस्तक समीक्षा】
✍️✍️【सुनीता भट्ट पैन्यूली】


एक और एक दो होते हैं यदि इसमें आधा और जोड़ दिया जाये तो सांख्यिकीय ढाई हो जाता है। विस्मय बोधक लगा लेखक गौरव शर्मा की किताब के शीर्षक “एक और एक ढाई” को पढ़कर। मन में तीव्र जिज्ञासा उपजी.. रिश्तों के अंकगणित की ऐसी बेजोड़,गहन समीक्षा पढ़ने को मिली जहां किताब के लेखक गौरव शर्मा के अनुसार एक और एक का गणित दो नहीं ढाई होता है। किताब का सार यही दर्शाता है कि एक जमा एक में अतिरिक्त आधा रिश्तों के पोषण के लिए वह संजीवनी है जिसके बंध हम अपना नये सिरे से विकास और विस्तार करते हैं।यही नहीं, रिश्तों में पड़कर हम सही मायने में अपने व्यक्तित्व व दृष्टिकोण का पुनरीक्षण करते हैं।दो रिश्तों का जब गठबंधन होता है विचार प्राकृतिक रूप से परस्पर घुलनशील होते हैं यदि रिश्ता मरणासन्न या खत्म होने के कगार पर हो तो भी तत्व स्वरूप एक-दूसरे में विद्यमान रहते हैं।“एक और एक ढाई”किताब की एक प्रासंगिकता यह भी है कि किताब बनी बनाई पृष्ठभूमि और परिपाटी से विलग, भावना,विचार, दृष्टिकोण और मन का परोक्ष दर्शन कराती है ।
गौरव शर्मा की सात कहानियों का संग्रह “एक और एक ढाई ”किताब में रिश्तों का कोई जटिल समीकरण नहीं अपितु रिश्तों की नींव का सशक्त निर्माण करने वाले अतिरिक्त कारक हैं जो एक और एक को दो नहीं ढाई बनाते हैं।यह गहन कारक दो रिश्तों की परस्पर उम्मीदें,व्यक्तित्व एक-दूसरे में अतिक्रमण की नियमित सीमा, पहचान, अपना-अपना दृष्टिकोण और सामूहिक दृष्टिकोण हैं।
गौरव शर्मा की कहानियों के पात्रों की बेढब जीवन शैली में उद्दाम होने की छटपटाहट तो है किंतु ढब में जीने की भी उनको कोई त्वरा नहीं है। यह लेखक की आंतरिक चेतना एवं सुविचारित दृष्टिकोण की हठधर्मिता ही है कि उनकी कहानियों के चरित्र विभिन्न परिस्थितियों से आक्रांत आदिम स्वभाव के मनोसंसार से परिचित होने और उनका विश्लेषण करने का मौका देते हैं।गौरव शर्मा की कहानियां दरअसल बेढब रिश्तों की मनोवृत्ति ही नहीं अपितु जीवन के खटराग से उत्पन्न होने वाली विषम विचारधारायें हैं जिनका सीधा,सरल प्रवाह होना नितांत आवश्यक है।
यह लेखक का सुचिंतित प्रयास भी है कि उनकी सुसंगठित कहानियां पाठकों से मायने ढूंढने का अनुग्रह करती हैं।
“एक और एक ढाई” कहानियों के पीछे जो चरित्रों का मनोविज्ञान है मेरी समझ से वह यह सिखाता है कि हम कौन सी ऐसी ऊष्मा अपने भीतर उत्पन्न करें जो दूसरों को भी ऊष्मित ऊर्जा दे ।कैसे अपने आसपास संवेदनाओं और मौन की भाषा को पढ़ें?कैसे अपना और दूसरों का जीवन संवारें? हम कैसे अपने आसपास दूसरों को अच्छा महसूस करायें?
पहली कहानी ने यही छाप छोड़ी है कि मन की कोई सरहद नहीं होती जब मन के तारों के सिरे एक दूसरे से जुड़ते हैं तो मन के तटबन्ध टूटते हैं देह के नहीं अपनी सीमाओं का अतिक्रमण किये बिना जहां हैं वहीं ठहरकर एक क्या बहुतों से प्यार किया जा सकता है।
किताब की पहली कहानी “अजीब लड़की” में बानगी देखिये,
“ मन से प्यार करो तो चार क्या,चालीस लोगों से भी प्यार हो सकता है।ये जो शरीर वाला प्यार होता है ना,वो एक से ज्यादा करो तो घिनौना काम है।”
मेरे मन को बहुतों ने छुआ पर शरीर को नहीं।ज्यादातर लोग प्यार को समझते ही नहीं।”
“समर्पण कुछ नहीं होता क्या?”
“ होता है ना।तभी तो शरीर और ज़िंदगी एक शख़्स के नाम कर दी।”
कहानी का उपरोक्त अंश पढ़कर तर्कहीन तो हो जाते हैं किंतु संतृप्त नहीं हुआ जा सकता है। हम सभी समाज हैं समाज का एक प्रबंधन है।मेरा अपना व्यक्तिगत विश्लेषण है कि भटकाव कभी स्थाई नहीं होते भ्रम क्रांतिकारी हो सकता है किंतु फलीभूत नहीं भटकाव से वापस अपने स्वरूप में लौटकर आना ही सुखद होता है।
प्रेम की एक अलग ही नज़ीर पेश करती है गौरव शर्मा की “एक और एक ढाई ” किताब की यह पहली कहानी।एक बेचैन कूद,अलग ही दृष्टिकोण पनपता है पहली कहानी को पढ़कर।
पांचवीं कहानी “लाल साड़ी वाला आदमी” में निम्न पंक्तियां लेखक की अद्भुत सूक्ष्मदर्शिता प्रदर्शित करती है।
“ हम अलग-अलग क्षणों में जो महसूस कर रहे होते हैं,हम वो बनना चाहते हैं।संवेदना,भावना अभिव्यक्ति ना हो तो जीवन मात्र गिनती रह जाता है।”
”एक और एक ढाई किताब” की संपूर्ण कहानियां रिश्तों का यही उपरोक्त मनोविज्ञान खोजने का सतत प्रयास हैं।
गौरव शर्मा की कहानियों में यही परिलक्षित है कि रिश्ते समय के साथ गतिशील और परिवर्तनशील हैं परिस्थितीजन्य अपना दृष्टिकोण बदलकर संवर्धित और संपोषित होते हैं।
लेखक गौरव शर्मा की और किताबों को भी पढ़ा है अप्रचलित शब्दों को गहन वाक्यांश में गढ़ने की इनको महारथ हासिल है।इनके द्वारा लिखे गये छोटे-छोटे वाक्य बड़ी छाप छोड़ते हैं जैसे कि
संवेदनाओं की भाषा में समर्थन और समर्पण की महिमा अपरम्पार होती है।
“आदतें बदल लेने से आदमी नया हो जाता है न,?
मूर्त वस्तुओं की कथानक में जीवंत उपस्थिति गौरव शर्मा की कहानीयों की विशेष ख़ासियत हैं।लेखक के हर किरदार का अपना एक विशिष्ट चरित्र है उस चरित्र के पीछे के गहन मनोविज्ञान की पड़ताल करना यूं तो संभव नहीं है चूंकि, कथानक रिश्तों को केंद्रबिंदु बनाकर बुना गया है तो किरदारों की मनोवृत्ति का चित्रण खुदबखुद पाठकों के समक्ष होता चला जाता है।
“एक और एक ढाई” किताब पढ़कर मुझे ऐसा महसूस हुआ कि प्रत्येक कहानी हर घर के चूल्हों में पकने वाली खिचड़ी है जिसका धुंआ चिमनियों से सरसराकर समाज के मोटे धुंए में मिल जाता है। इन धुंओ का जन्मदाता जीवन के विभिन्न कथानक हैं जिनके अपने -अपने संदर्भ और विमर्श हैं। कहने का तात्पर्य है कि गौरव शर्मा की कहानियां मन के प्रकारों का विछिन्न दर्शन है।
मैं कोई मनोचिकित्सक नहीं किंतु गौरव शर्मा सर की कहानियां हमें कब हर किरदार का मनोअध्यन करने में जुटा देती हैं हमें पता ही नहीं चलता है।
कहानियां यह तथ्य भी संप्रेषित करती हैं कि नियंत्रित मात्रा में आनंद लेना हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए अच्छा हो सकता है।किंतु अनियंत्रित एवं बेढब जीवनशैली मानव स्वभाव एवं चरित्र पर कुठाराघात है।
गौरव शर्मा की कहानियां मानवीय स्वभाव और जीवनमूल्यों को जीने के लिए विचारों को नया केंद्र-बिंदु प्रदान करती हैं। “एक और एक ढाई” किताब के कथ्य और तर्क से गुजरते हुए जीवन जीने का दृष्टिकोण ही परिवर्तित होता हुआ महसूस हुआ मुझे।
लेखक अपने अनुभव में अपने लेखन को निखारता है अपनी मनोवृत्ति को अभिव्यक्त करता है इसलिए
कहानियां उसके साथ-साथ चलती हैं और विचारों के विभिन्न आदर्श प्रतिरूपों को रचती हैं।कुछ कहानियों का मनोविज्ञान समाज एवं स्वयं को शिक्षित करने की यदि उत्कंठा पैदा करती हैं तो इससे ज़्यादा कहानियां क्या प्रेम और भरोसा पायेंगी?
लेखक गौरव शर्मा की कहानियां स्वयं को समझने,भयावह स्थितियों में नियंत्रण,संभावित कठिन परिस्थितियों से निपटने का समाधान प्रदान करती हैं,अर्थात हमारे जीवन जैसी ही कहानियां हैं “एक और एक ढाई ” किताब की कहानियां।यानि कभी हम कहानियों में हैं कभी कहानियां हममें हैं।
संवेदनशील कहानियों को पढ़कर यह तो तय है कि मनोवृत्ति दुरूस्त होती है।रिश्तों का मनोविज्ञान संवेदनाओं के खरसान पर पैना होकर इतने परिष्कृत रूप में अपनी परिणति पा सकता है ये किताब पढ़कर महसूस किया जा सकता है। सभी कहानियां जीवन मूल्यों को संवारने के साथ हमें अपनी धारणाओं से ऊपर उठने के लिए चुनौती भी देती हैं।
अजीबो-गरीब मनोवस्था और सुलझी हुई विचारधारा के परिणाम से उपजी उत्कृष्ट कहानियों का संग्रह है लेखक गौरव की “एक और एक ढाई” किताब।
सुनीता भट्ट पैन्यूली (देहरादून)

