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दो जून की रोटी…..

आलेख

दो जून की रोटी…..

व्यंग

हरदेव नेगी

मंहगाई अपने चरम सीमा पर है,,,, ऐंसे में दो जून की रोटी 12 रुपये की मैगी के साथ ही खाई जा सकती है,,।
रोजमर्रा की बढ़ती कीमतों ने आम इंसान की जेब ढीली कर दी है,,, तनख्वा दो साल से बड़ी नहीं और मंहगाई ने बचत खाते पर चपत लगा दी है।।।
छोटी कंपनियों को बड़ी कंपनियाँ खरीद रही हैं, विधायकों के दैनिक भत्ते में हर साल इजाफा हो रहा है,,,, जो युवा प्रशासनिक अधिकारी बन कर सबके प्रेरणादायक होते हैं वो बाद में जनता के पैंसों से अपनी मवासी चमका रहे हैं,, गाँव का बड़ा किसान छोटे किसानों को खेतों में वोडा (जमीन हड़पना) सरका रहा है,,,, मिडिल क्लास टैक्स के नीचे कुचल रखा है,, फ्री – फ्री खिलाकर जनता को निठल्ला आलसी व कामचोर बनाया जा रहा है,,
ऐंसे में हाॅस्टल के दिनों से आज तक किसी ने साथ दिया है वो है मैगी और रोटी 😄😄।।

क्योंकि पगार नहीं है अपनी मोटी,,,, ना लाखों का पैकैज है ना शहर में प्लौट – लड़की वाले भी बोल रहे हैं तुम शादी के ट्रैंड हो चुके हैं Out Off..।।। फिर अपनी किस्मत को हमने भी बोला WTF.
अब बस एक दो कप चाय और भुजि ( सब्जी) के बदले मैगी व रोटी परोस दी जाये तो फिर क्या कहने,,
दो जून की रोटी के साथ सरील का ध्यान रखें,,,,

हरदेव नेगी गुप्तकाशी (रुद्रप्रयाग)

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