Connect with us

“पाती तेरे नाम की”

आलेख

“पाती तेरे नाम की”

लघु कथा

सृजिता सिंह

“तुम्हें याद था वो पेड,, और उसके बाद हर साल इसी दिन जब वो पारिजात अपने पूरे शबाब पर होता तुम मुझे ले जाते और जोर से पेड हिलाते मुझे उसकी खुशबू में सरोबार कर जाते थे,,”

……आज सुबह उठते ही हर जगह कुछ अलग सी खामोशियाँ पसरी थी अजीब सी घुटन महसूस होने लगी पर तब ऐसा न था,, उन दिनों सुबहें कितनी जल्दी हुआ करतीं थीं, शामें भी कुछ जल्दी घिर आया करती थीं तब… फूलों की महक भीनी हुआ करती थी और तितलियाँ रंगीन,और इन्द्रधनुष के रंग थोड़े चमकीले, थोड़े गीले हुआ करते थे, आँखों में तैरते ख़्वाब,,सुबह होते ही चीं-चीं करती गौरैया छत पर आ जाया करतीं थीं दाना चुगने, उस प्यारी सी आवाज़ से जब नींदें टूटा करती थीं तो बरबस ही एक मुस्कुराहट तैर जाया करती थी होंठों पर…

…….यूँ लगता था जैसे किसी ने बड़े प्यार से गालों को चूम के, बालों पर हौले से हाथ फेरते हुए बोला हो “उठो… देखो कितनी प्यारी सुबह है… इसका स्वागत करो….
क्यूंकि प्रेम में थी,, हर वक़्त हर जगह सिर्फ खूबसूरती दिखती थी,,,

……याद है न तुम्हें उस दिन भी आज की तरह पूरा शहर लाल गुलाबों की खुशबू से सरोबार था,, पर तुम जानते थे मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्यूंकि मुझे उन सुर्ख गुलाबों की पंखुड़ी से अधिक स्वेत पारिजात ज्यादा लुभाते थे,, पर पूरा बाजार छान लिया था तुमने पर कहीं उन धवल पुष्पों का निशां न मिला,,

…..और फिर तभी याद आया तुम्हें कि एक दिन हम यूँ ही दूर रेल की सुनसान पटरी से निकलते हुए चले जा रहे थे एक दूसरे में खोये हुए,, तभी अचानक मेरा ठिठककर रुकना तुम्हें चौंका गया,, मैं ख्वाब से जगी सी चिल्लाई अरे देखो पारिजात का पेड और उसमें खिले उन पुष्पों को देख झूमने लगी,, तुम सिर्फ एक शब्द कहे थे, “ओये झल्ली”,,, ऐसे कोई चिल्लाता है सांस रोक दी थी,,

…..तुम्हें याद था वो पेड,, और उसके बाद हर साल इसी दिन जब वो पारिजात अपने पूरे शबाब पर होता तुम मुझे ले जाते और जोर से पेड हिलाते मुझे उसकी खुशबू में सरोबार कर जाते थे,,

आज फिर उसी पगडण्डी से होते हुए चलती उस सुनसान पड़ी ट्रेन की पटरी को घंटों निहारती में उन यादों में खो गई,, एक आस थी कि अभी वही ट्रेन तेरे शहर से होते हुए फिर मेरे प्रेम के उन पलों की गवाह बनती शोर मचाते आ धधकेगी पर उसे नहीं आना था न,और वो नहीं आई,, और साथ ही वो पारिजात भी अब शायद मुरझा गया था क्यूंकि आज शायद इन सुर्ख गुलाबों ने उस पर अपना रंग चढ़ा दिया था,,

और हाँ जानती थी हमारे इस प्रेम की नियति…. तुम्हें तो जाना ही था वहाँ जहाँ तुम्हारे सपने तुम्हारी हर ख्वाहिशें इंतजार कर रही थी,, और मुझे तो यही अपने इन पहाड़ों पर लौटना था,, पर आज फिर वो यादें मुझे बेचैन कर जाती हैं और मैं फिर भटकने लगती हूँ दूर बादलों संग अपने क़दमों के निशा छोड़ने की कोशिश में,,,पर न उनको छू पाई और न तुम्हें,,……

…….सिर्फ तुम्हारी…..
।। …….”सिया”……।।

सृजिता सिंह (शिमला हिमांचल)

Continue Reading
You may also like...

More in आलेख

Trending News

आलेख

मोक्ष

Follow Facebook Page

About Us

उत्तराखण्ड की ताज़ा खबरों से अवगत होने हेतु संवाद सूत्र से जुड़ें तथा अपने काव्य व लेखन आदि हमें भेजने के लिए दिये गए ईमेल पर संपर्क करें!

Email: [email protected]

AUTHOR DETAILS –

Name: Deepshikha Gusain
Address: 4 Canal Road, Kaulagarh, Dehradun, Uttarakhand, India, 248001
Phone: +91 94103 17522
Email: [email protected]