आलेख
“फॉल ऑफ ए स्पैरो”
विश्व गौरेया दिवस
प्रतिभा की कलम से
– जब तक वह नहीं लौटते, क्या उन्हें गया हुआ मान लिया जाए? गौरेया के खातिर ! … सालिम अली ! तुम लौट आओगे ना ?
जिन्होंने पक्षियों की चहचहाहट बचाने को ही अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया था,उन्हें मालूम था कि बाँध के शोर के बाद इस ‘साइलेंट वैली’ से इंसानों के सिवा फिर कोई और न बँधा रह जाएगा । उन हजारों किस्म के फूल, तितली ,पक्षियों और पशुओं की आवाज बनकर तब डॉक्टर सालिम अली तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी से मिले । बिहार विधान परिषद के सभापति जाबिर हुसैन अपने संस्मरण ‘सांवले सपनों की याद’ में लिखते हैं कि ‘चौधरी साहब गांव की मिट्टी पर पड़ने वाली पानी की पहली बूंद का असर जाने वाले नेता थे’ । पर्यावरण के संभावित खतरों का जो चित्र सालिम अली ने उनके सामने रखा,उसने उनकी आंखें नम कर दी थी । आगे वह लिखते हैं कि आज सालिम अली नहीं है । चौधरी साहब भी नहीं है।कौन बचा है जो अब सौंधी माटी पर उगी फसलों के बीच एक नए भारत की नींव रखने का संकल्प लेगा ? कौन बचा है जो अब हिमालय और लद्दाख की बर्फीली जमीनों पर जीने वाले पक्षियों की वकालत करेगा?
अपने नौ भाई-बहनों में सबसे छोटे सालिम मोईनुद्दीन अब्दुल अली के सर से मां-बाप का साया तभी छिन गया था जब वह सिर्फ एक वर्ष के थे । उनकी परवरिश मुंबई में उनके मामूजान के की । एक बार मामूजान ने उन्हें एक एयरगन भेंट की क्योंकि सालिम की ख़्वाहिश एक बहुत बड़ा शिकारी बनने की थी । और इसी क्रम में एक दिन उनकी बंदूक के निशाने से एक गौरैया मर कर जमीन पर आ गिरी । गोरैया,गोरैया जैसी ही थी लेकिन उसकी गर्दन पीली थी । गर्दन के उस पीले रंग को स्पष्ट करने की जिज्ञासा के उत्तर में उनके मामूजान ने उन्हें डब्ल्यू एस मिलार्ड के पास भेज दिया , जिन्होंने नन्हे सालिम को पक्षियों से संबधित ‘कॉमन वर्ड्स ऑफ मुंबई’ नामक किताब दी । हाथ में पक्षियों की किताब आई तो एयरगन छूट गयी और फिर शुरू हुआ सालिम अली का पक्षी विज्ञानी बनने का सिलसिला, जिन्होंने अपनी मशहूर किताब ‘द फॉल ऑफ ए स्पैरो’ में इस घटना का विवरण दिया है । जीवन और स्वास्थ्य की तमाम विसंगत परिस्थितियों के कारण उनकी पढ़ाई-लिखाई में भी अनेक बाधाएं आईं। लेकिन पक्षियों के विज्ञान पर उनके नजरिए को विकसित होने से उन्हें कुदरत भी ना रोक सकी । बर्मा के घने जंगल हो या बर्लिन यूनिवर्सिटी,लंदन प्रवास हो या मुंबई ! तमाम उम्र दुनिया की सैर में उन्होंने सिर्फ प्रकृति और पक्षियों के लिए ही काम किया। उन्हीं पर पढ़ा,उन्हीं पर लिखा । पर्यावरण और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबें हर प्रकृति प्रेमी को उनका कर्ज़दार बनाती हैं । कभी मशहूर शिकारी बनने की चाह रखने वाले सालिम अली ने घायल किए बिना ही पक्षियों को पकड़ने की सौ से भी अधिक विधियां ईज़ाद की । जिन्हें हर पक्षी विज्ञानी अपनाता है । उनकी मृत्यु पर जाबिर हुसैन साहब ने लिखा कि – जब तक वह नहीं लौटते, क्या उन्हें गया हुआ मान लिया जाए? गौरेया के खातिर ! … सालिम अली ! तुम लौट आओगे ना ?