उत्तराखण्ड
आज से पर्यटकों के लिए खुलेगी विश्व धरोहर फूलों की घाटी,500 से अधिक दुर्लभ प्रजाति के फूल यहां।
संवादसूत्र देहरादून/ गोपेश्वर: यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल ‘फूलों की घाटी’ पर्यटकों के लिए खोल दी गई है, इसे 1982 में एक राष्ट्रीय उद्यान घोषित की गई थी , फूलों की घाटी 87.50 वर्ग किमी के विस्तार में फैली हुई है । फूलों की घाटी हर वर्ष एक जून को खुलती है, तथा 31अक्टूबर को बंद की जाती है। घाटी में 500 से अधिक फूलों की प्रजातियों के फूल खिलते हैं। नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क के प्रभागीय वनाधिकारी नंदाबल्लभ जोशी ने पर्यटकों को घांघरिया से घाटी के लिए रवाना किया। पहले दिन 75 पर्यटकों को घाटी के लिए रवाना किया गया।
उत्तराखंड के चमोली जिले में तीन हज़ार मीटर की ऊंचाई पर, फूलों की घाटी स्थित है , फूलों की घाटी में शीतकाल में बर्फ की चादर से ढका रहता है। यह एक उत्साही ब्रिटिश पर्वतारोही और एक वनस्पतिशास्त्री, फ्रैंक एस स्मिथ द्वारा एक आकस्मिक खोज थी, जब वह 1931 में कामेट पर्वत आरोहण के दौरान रास्ता भटक जाने से इस क्षेत्र से गुजरें।घाटी आज 5000 से अधिक फूलों की प्रजातियों का घर है, जिसमें ब्रह्मकमल शामिल हैं, जो कि उत्तराखंड का राजकीय पुष्प है, अन्य किस्मों में ब्लू पोस्पी शामिल हैं, जिन्हें फूलों की रानी, ब्लूबेल, प्रिमुला, पोटेंटिला, एस्टर, लिलियम, हिमालयन ब्लू पोपी, डेल्फीनियम और रैनुनकुलस के रूप में वर्णित किया गया है। इस क्षेत्र में तेंदुए, कस्तूरी मृग और नीली भेड़ जैसी प्रजातियों के साथ एक समृद्ध जीव विविधता भी है। 1982 में एक राष्ट्रीय उद्यान घोषित, फूलों की घाटी 87.50 वर्ग किमी के विस्तार में फैली हुई है। इसे 2005 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया था। केवल पैदल ही पहुँचा जा सकता है, यह ट्रेकर्स के लिए एक स्वर्ग है। इस साल फूलों की घाटी में अधिक पर्यटकों की पहुँचने की उम्मीद है पार्क प्रशासन को।
फूलों की घाटी दुनिया का इकलौता पर्यटन स्थल है, जहां पर 500 से अधिक प्रजाति के प्राकर्तिक फूल खिलते है। इसे देखने के लिए भारतीय पर्यटकों को 150 और विदेशी पर्यटकों को 600 का शुल्क देना होता है।घाटी में 17 किमी लंबा ट्रेक है जो 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
यहां जाने के लिए उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर गोविंदघाट से 14 किलोमीटर पैदल चढना होता है।खास बात तो यह है कि वैली आफ फलावर में हर पन्द्रह दिनों में अलग रंगों के फूल नजर आते हैं। फूलों की इस प्राकृतिक घाटी को देखकर पर्यटक मानो कभी न भुलाये जाने वाले इन क्षणों में खोकर रह जाता है। प्रकृति की अनोखी देन फूलों की घाटी की खोज 1931 में अंग्रेजी पर्यटक फ्रेंकएस स्मिथ ने की थी। वे कामेट पर्वतारोहण के दौरान रास्ता भटककर यहां पहुंच गए थे। यहां से अपने वतन वापसी के बाद उन्होंने वैली आफ फलावर नामक पुस्तक में यहां के अनुभवों का जिक्र अपनी किताब वैली आफ फ्लावर में किया तो देश दुनिया ने प्रकृति के इस अनोखे तोहफे को संसार ने जाना।
विश्व धरोहर का दर्जा मिलने के बाद तो फूलों की घाटी में आने वाले पर्यटकां का तांता ही लग गया। अपनी अलग खूबी के कारण 1982 में सरकार ने इसे राष्ट्रीय उद्यान और 2005 में इसे विश्व धरोहर घोषित किया गया। फूलों की घाटी में रात्रि विश्राम के लिए किसी को भी अनुमति नहीं है। फूलों की घाटी का बेस कैंप घांघरिया है। यहां से तीन किलोमीटर पैदल चलकर फूलों की घाटी पहुंचा जाता है। घाटी का दीदार कर पर्यटकों को दोपहर के बाद लौटना पड़ता है