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खाद्य सुरक्षा पर गंभीर न रही सरकारें।

आलेख

खाद्य सुरक्षा पर गंभीर न रही सरकारें।

खाद्य सुरक्षा दिवस (7 जून )

(नीरज कृष्ण)

दुनिया के अविकसित देशों की तरह भारत में भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिन्हें जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं मिलता है। इतना ही नहीं, उन्हें जो भोजन मिलता है उसमें पोषक तत्वों की भी कमी होती है। इस खाद्य समस्या ने देश की बड़ी आबादी पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है। आज भी बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक लोगों के भूख से मरने की खबरें आ रही हैं। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ ) के अनुसार, भारत की लगभग 14.8 प्रतिशत आबादी कुपोषित है। प्यू रिसर्च सेंटर ने बताया था कि भारत में ऐसे लोगो की संख्या पिछले एक साल में तीव्र गति से बढ़ गई हैं जो 150 रुपये प्रति दिन (क्रय शक्ति के आधार पर आय) नहीं कमा सके। सालभर में ऐसे लोगों की संख्या में छह करोड़ की वृद्धि हुई है, जिससे कुल गरीबों की संख्या 13.4 करोड़ हो गई है।

1974 के बाद पहली बार देश में गरीब लोगों की संख्या बढ़ी है लेकिन 45 साल बाद भारत फिर से अत्यधिक गरीबी का देश बन गया है। नीति आयोग ने हाल ही में बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई ) जारी किया हैं जिसमें कहा गया है कि हर चार में से एक भारतीय बहुआयामी गरीब है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, खाद्य सुरक्षा, पोषण और खाद्य बचत का अटूट संबंध है।

द स्टेट ऑफ फूड सिक्‍योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2019 के अनुसार, दशकों की लगातार गिरावट के बाद, 2015 से वैश्विक भूख लगातार बढ़ रही है। 2018 में, दुनिया भर में अनुमानित 821 मिलियन लोग भूख से पीडति थे।
गरीबी उन्मूलन के लिए काम करने वाली संस्था ऑक्सफैम के मुताबिक, दुनिया भर में हर मिनट भूख से 11 लोगों की मौत हों जाती है। पिछले एक साल में दुनिया भर में सूखे जैसे हालात छह गुना बढ़ गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में लगभग 155 मिलियन लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा संकट का सामना कर रहे हैं, जो पिछले साल के आकडे से 20 मिलियन अधिक है।

खाद्य असुरक्षा समाज के हर तत्व को प्रभावित करती है, समाज में आर्थिक असंतुलन, कुपोषण, गरीबी, भुखमरी, बीमारी, मिलावटखोरी ये समस्याएं बढ़कर अन्य समस्याओं को जन्म देती हैं। देश का विकास बाधित होता हैं, आर्थिक तनाव बढ़ता है और मानवीय जीवन मूल्यों का ह्रास होता है। देश के हर नागरिक के लिए सरकार को खाद्य सुरक्षा की गारंटी के साथ युद्ध स्तर पर काम करने की जरूरत है। कुपोषण, गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, भूख, खाद्य असुरक्षा जैसी समस्याओं को नियंत्रित करने की जरूरत है। ताकि प्रत्येक नागरिक को उसका सही पौष्टिक आहार मिल सके, जिससे सभी को विकास के अवसर मिलेंगे, जीवन प्रत्याशा बढ़ेगी, बीमारी कम होकर उसपर खर्च कम होगा, आयात कम होकर निर्यात बढ़ेगा, देश आत्मनिर्भर बनेगा, देश की आय बढ़ेगी और देश समृद्धि के प्रगति पथ पर अग्रसर होगा।

नीरज कृष्ण
एडवोकेट पटना हाई कोर्ट
पटना (बिहार)

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